Vijay Seth   (Vij@y seth)
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एक अाशान्वित मनुष्य, प्रकृति प्रेमी, परिश्रमी, विद्यार्थी,शिक्षक ।।
Joined 21 May 2020


एक अाशान्वित मनुष्य, प्रकृति प्रेमी, परिश्रमी, विद्यार्थी,शिक्षक ।।
Joined 21 May 2020
12 MAY AT 8:12

ऐसा न हो जिसको भूलने की कोई भी वजह न हो उसे सिर्फ एक निश्चित दिवस ही याद करो।

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12 MAY AT 8:04

आपका आन्तरिक व बाह्य विकास सिर्फ इतना अवश्य ही हो कि जिसने आपको सँवारा हो आप उसके अन्त:पुर सँवारे उसके प्रदत्त मूल्य से।

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9 MAY AT 14:40

अच्छी बात करने के लिए न मुहूर्त, दिन और रात चाहिए
अच्छी बात के लिए केवल मन से शुरुआत चाहिए।
विषय की गम्भीरता स्वयं पर संयमता
आँख खुले न खुले बस जज्बात होनहार चाहिए।
गरीबी, लज्जा, जाति, धर्म की कई दबिश हो साथ
सबके दर्द को समझे कोई शख्सिय़त खास चाहिए।
बात जिहाद की हो या धर्म क्रांति की
जागकर उस भगवद् पर अटूट विश्वास चाहिए।
मामला दोनों का निपटे दोनों तार-तार होंगे
बस सहूलियत से दोनों एक साथ चाहिए।
काग़ज चाहे रंगीन हो या एकदम सादा
बस छपे हुए शब्द सच्चे तथा हिसाब का चाहिए
कलम से छपने वाला शब्द भी गम्भीर ज़ख्म देता है
बस कलम की चेतना मस्तिष्क के आसपास चाहिए
अच्छी बात........

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23 APR AT 21:58

समानता की चाहत सिर्फ उसे ही हो सकती है जिसने नवीनता का लगभग त्याग कर दिया हो और अनुपालन में विलीन होने लगा हो।

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22 APR AT 9:50

जिन्दगी'इश्क' है तोज़क से जन्नत तक आने की
अपनी कश्मकश में इसे मजबूर न कर।
ईमानदारी से हर पल चहकता हो दर- दर तू
केवल छद्म मकसद से इसे नासूर न कर।
अपनी शिकायत अपने बयानबाजी से पहले रख
अपनी किस्मत पर कभी अफसोस व गुरुर न कर।
यदा-कदा ही होती है धर्मसंकट की घड़ी
संकट के सब मेघ छटेंगे मजबूर न कर।

वापस नहीं आ सकता कटा हुआ घटा हुआ वक्त कभी
अपनी चैतन्यता में रह बेवजह जुलूस न कर।
कुछ जिम्मेदारियां भी होंगी अच्छे कर्तव्यों सहित
अपने को कभी भी अराजकता पूर्ण कबूल न कर।
मानस का वृहत भाग सबके वैशेषिकता से प्रसारित है
अपनी ओजस आत्मा से कोई काज बेवसूल न कर।
अपनी मर्जी भी हो जिसमें सामाजिकता संग
सिर्फ समाज के सानिध्य में सब कबूल न कर।

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16 APR AT 6:37

कर्तव्य ही धर्म की व्याख्या है जो कर्तव्य से विमुख हैं वे धर्म से विमुख हैं।

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5 APR AT 8:12

पहले स्वयं के होने का आभास स्वयं रखिए दुनिया आपका आभास रखेगी।

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2 APR AT 10:36

वास्तविकता सभी प्रतिबंधों को तोड़कर अपनी उपस्थिति का बोध कराती है।

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21 MAR AT 20:05

इस चर्चित हरित सुधी जीवन के
आत्म प्रयाण में आना सम्भव है
इस चर्चा का अनुशासित मार्ग
हित में अपनाना सम्भव है
देवतुल्य है पुरूष यहाँ
और देवियों सम हैं जननी
मूर्छित पड़ रहे इस जीवात्म का
आस जगाना सम्भव है
यदि बात बने सदेह अवस्था
कुछ चिन्तन अवसरवादी हो
जब इच्छा कुछ भी बाकी न हो।
इस पिण्ड में निवसित जीव सभी पर
जाल मोह का प्रसारित है
पड़ अनुमोदित भाव भंगीमा
मन के साज में प्रथम रंग है
उत्साही अपनी सदेह अवस्था से तब
अप्रतीम, शान्त और अनुयायी हो
जब इच्छा कुछ भी बाकी न हो।

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13 MAR AT 8:39

स्वप्रेरणा भी सर्वप्रथम कुछ करने के बाद ही आती है दूसरे का अनुपालन तो केवल तुलना जैसा है।

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