मैं पुकारता हूं उन सभी दिल के हारों का,
त्याग कर दो, न दिए गए उन उपहारों का,
मरना क्या बेवफा की जुल्फों की लटकों पर,
अरे मरते क्यों हो फांसी खाकर पेड़ों पर,
वक्त आया है सर्वोच्च बलिदान देने का,
अपना नाम गोविंद सिंह के साथ लिखाने का,
मरना ही है अगर फैसला आखरी तो,
मर जाओ किसी बद जात को मार कर ।।
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डुबा दे जो खुद अपनी कश्ती, वो मल्लाह हो नहीं सकता,
सिखा दे निर्दोष को मारो, वो अल्लाह हो नहीं सकता ।।-
केसरिया पहन फिर से, तलवार नहीं, एके 47 उठा ले,
मुगल आया वेश बदल कर, तू अब क्यों सोया रे,
जाग दुख अपने पड़ोसी का समझ, मिलेगा घाव तुझे भी,
सोया जो रहा दूसरे का समझ, न छोड़ेगा तुझे भी,
भेड़िया कभी बदल सकता नहीं स्वभाव अपना, भरोसा न कर,
उठ तूफान बन कर, चमक सूर्य सा, अब और आलस्य न कर ।।
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मैं मुर्शिदाबाद हिंसा की निंदा करता हूँ, अपने सभी पाठकों से निंदा करने का आग्रह करता हूं, अब ये साबित हो चुका है कि मुल्ले किसी भी देश के सगे नहीं हो सकते । न न ये मत कहना कि सब ऐसे नहीं , सबके सब ऐसे ही हैं, जहां संख्या में कम हैं वहां ये शराफत का चोगा लगाए रहते हैं ।
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सफर हुआ न पूरा तेरा, किनारा नजर आता नहीं,
कश्ती भी थक गई चलकर, पतवार भी हारे,
अब चलके भी कहां जाना, हमसफर सब छूटे,
कहीं तो रुक ओ पगले, अगवानी को कोई आता नहीं ।।-
ये दुनिया है साहब, अकेले रह जाएंगे,
वफ़ाओ का हिसाब जब भी तुम मांगेंगे,
भले ही कटघरे में खड़े हों वो लेकिन,
उपाधि देकर दोषी तुम ही ठहराए जाएंगे,
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भेद सारे खुल जाएंगे, बहाने सौ याद आएंगे,
रातों को नींद न आएगी, आंसू सूख जाएंगे,
जान भी जा सकती, बचाने वो न आयेंगे,
जब भी तुम वफ़ा के बदले वफ़ा मांगने जाएंगे ।।-
तुझे सुन लूं और तुझे ही बुन लूं, तो कैसा हो,
बढ़ाया जो कदम आगे, पीछे लूं, तो कैसा हो,
सुना है रास्ता भूलने लगे वो, हमारी गली का,
मैं अपने मन से उनको ही भुला दूं, तो कैसा हो,
जाने लगे दर से मेरे वो, पुराने दोस्त भी...
मैं उनको बुलाना ही छोड़ दूं, तो कैसा हो,
ये दिल पर चिपका रखा है, उसका नाम जमाने ने,
दान कर दूं किसी टूटे दिल को, तो कैसा हो,
दिल का रिश्ता है, दिल से ही बात कर लो,
ज़ुबान ही ना रखूं मुख में, तो कैसा हो ।।-
रहेंगे तो सदा ही........ साथ तेरे ही रहेंगे,
वरना कफ़न तू ही नहीं, हम भी सजा लेंगे ।।-
यूं क्यूं नहीं कहते दीवाना हूं, परवाना हूँ,
साराँश हूं उस सबका, इश्क का मारा हूं ।।-