VIJAY LAKHUJANI   (विजय)
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Joined 7 April 2019


Joined 7 April 2019
2 NOV 2021 AT 14:06

कुछ तो है हवा और पत्तों का रिश्ता
ऐसे ही नहीं ये पेड़ पर इतराते रहते हैं

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30 OCT 2021 AT 19:08

कुछ कहना है
तेरी रूह को मेरी रूह से
आओ गले मिलकर
इनका काम आसान कर दे

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17 OCT 2021 AT 0:56

आज फिर डायरी का वही पुराना पन्ना खोलकर बंद कर दिया जहा तुम्हारा दिया हुआ गुलाब का फूल सूखकर उस पन्ने पर अपनी अमिट छाप छोड़ गया है ...

जाने दो, तुम्हे याद नहीं होगा ...

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16 OCT 2021 AT 20:25

कभी कभी ऐसा होता है ना जैसे भरी दुपहरी में तुम कहीं से जा रहे हो और एक पेड़ के नीचे से गुजरते हुए एक ठंडी हवा का झोंका तुम्हें छू के निकल जाता है

कुछ ऐसे ही तुम्हारा आना हुआ है मेरी जिंदगी में ...

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9 MAY 2021 AT 22:29

कहा करती थी तुम मां
अब ज्यादा न चल पाऊंगी
पर मां मैं ही ना समझ पाई

तुम तो रूठ कर इतनी दूर चली गई
वक्त गुजरता रहा, तुम याद बहुत आती चली गई
सुना था आत्मा अमर है, कभी नहीं मरती, अर्थ कभी समझ नही पाई

कहते हैं लोग मां मेरी सूरत कुछ कुछ तुमसे मिलने लगी है
ये सुन मैने भी शीशे में गौर से देखा
सच कहती हूं मां, अपने ही अक्स में तुम्हे रूबरू पाया

तुमसे मिल पाऊं ऐसी कोई राह नहीं
कहते हैं ये शरीर पांच तत्वों से बना है
मरने पर सभी तत्व अपने पूर्वजों से मिल जाते हैं
गर यही सच है तो मां रुकी रहना
मैं फिर से तुम्हारी प्यारी बेटी बन आऊंगी
तुमसे मिल तुम्ही में समा जाऊंगी

- मनु

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6 MAY 2021 AT 17:21

बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम
बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम
कभी मैं जो कह दूँ मोहब्बत है तुम से
तो मुझ को ख़ुदा रा ग़लत मत समझना
कि मेरी ज़रूरत हो तुम
बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम
हैं फूलों की डाली पे बाँहें तुम्हारी
हैं ख़ामोश जादू निगाहें तुम्हारी
जो काँटे हूँ सब अपने दामन में रख लूँ
सजाऊँ मैं कलियों से राहें तुम्हारी
नज़र से ज़माने की ख़ुद को बचाना
किसी और से देखो दिल मत लगाना
कि मेरी अमानत हो तुम
बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम
है चेहरा तुम्हारा कि दिन है सुनहरा
है चेहरा तुम्हारा कि दिन है सुनहरा
और इस पर ये काली घटाओं का पहरा
गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है
ये लब हैं तुम्हारे कि खिलता चमन है
बिखेरो जो ज़ुल्फ़ें तो शरमाए बादल
फ़रिश्ते भी देखें तो हो जाएँ पागल
वो पाकीज़ा मूरत हो तुम
बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम
जो बन के कली मुस्कुराती है अक्सर
शब हिज्र में जो रुलाती है अक्सर
जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे
जो शाइ'र को दे जाए पहलू ग़ज़ल के
छुपाना जो चाहें छुपाई न जाए
भुलाना जो चाहें भुलाई न जाए
वो पहली मोहब्बत हो तुम
बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम

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12 JAN 2021 AT 14:31

Tumhe Ek Bat Kehni Thi,
Ijaazat Ho To Keh Du Main,
Ye Bheega Bheega Sa Mausam,
Ye Titali, Phool Aur Shabnam,
Chamakte Chaand Ki Baate,
Ye Boonde Aur Barsaate,
Ye Kaali Raat Kaa Aanchal,
Hawa Me Naachte Baadal,
Dhadakte Mausamo Ka Dil,
Mahekti Khushboowo Ka Dil,
Ye Sab Jitne Nazaare Hai,
Kaho Kis Ke Ishaare Hai,
Sabhi Baate Suni Tum Ne,
Phir Aankhe Pher Li Tum Ne,
Mai Tab Jaa Kar Kahi Smjha,
Tumhe Kuchh Bhi Nahi Smjha,
Mai Qissa Mukhtsar Kar Ke,
Zara Nichi Nazar Kar Ke,
Ye Kehta Huu Abhi Tum Se,
"MOHBBAT Ho Gayi Tum Se"

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14 NOV 2020 AT 20:53

एक अमावस की रात में, सारा जीवन जी लिया
उस छोटे से दीए ने सारा अंधियारा पी लिया

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9 AUG 2020 AT 8:47

जेट एयरवेज़ की दैनिक फ्लाइट, मुम्बई के छत्रपति शिवाजी विमान तल से उड़ान भर चुकी थी। हल्के उतार चढ़ाव के बाद कुछ ही मिनटों में विमान हवा से बातें करने लगा। थोड़े अंतराल के पश्चात विमान के सहायक कर्मियों ने जलपान परोसना शुरू किया। मेरे दाई ओर एक सज्जन बैठे थे। "वेज़" कहकर उन्होंने सामने की कुर्सी के पीछे लगी ट्रे को खाना रखने के लिए खोला।

खाने का पैकेट खोलते ही उनके चेहरे के हावभाव से मैंने अनुमान लगाया की उनको पैकेट के व्यंजन कुछ ख़ास पसंद नहीं आये।

उन्होंने ऊपर रखे अपने बैग से एक एक करके कई थैलिया निकाली और देखते ही देखते उनकी ट्रे अचार , जोधपुरी नमकीन और ऐसी कई चटपटी देसी चीज़ों से भर गयी। उनकी खोयी मुस्कान ऐसे लौट आई मानो जैसे किसी ऱोते बिलखते बच्चे को चॉक्लेट थमाँ दी हो|

तबियत से ट्रे के सभी पकवानों को चट करके एक डकार के साथ उन्होंने अपनी अंतर आत्मा को तृप्त किया। जोधपुर वासी के अपने देसी खान पान से ऐसे निस्वार्थ प्रेम को देखकर मन हर्षित हो गया।

"जोधपुर हवाई अड्डे पर आपका स्वागत है। बाहर का तापमान 26 डिग्री है, आपका दिन शुभ हो", इसी सन्देश के साथ कप्तान ने एक घंटे और दस मिनट की अल्प यात्रा के समाप्ति की घोषणा की।

बहार निकलते ही हवा के एक गर्म झोके ने मेरा स्वागत किया मगर सच मानिये, वो किसी माँ के अपने पुत्र को आलिंगन करने जैसी अनुभूती थी।

जोधपुर, मेरे दिल की धड़कन

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2 AUG 2020 AT 13:53

कभी हमसफ़र, कभी हबीब, कभी रहबर बनकर
मेरी ज़िन्दगी में आए हो तुम चिराग बनकर
मै शायद खुद को कभी समझ ही ना पाता
तुमने मुझे मुझसे मिलाया है आईना बनकर

मै रह गया था जैसे खुद में ही सिमटकर
बेजान सा खड़ा रहा पत्थर का बुत बनकर
ना रिश्ता किसी से ना वास्ता किसी से
नदी से ना जो मिल सके, तन्हा स्याह समंदर
कभी हमसफ़र, कभी हबीब, कभी रहबर बनकर
मेरी ज़िन्दगी में आए हो तुम चिराग बनकर

तुमसे मिले जो हम तो, ज़िन्दगी गई संवर
सब पा लिया ही हमने, हुए जो तुम मयस्सर
मिलोगे किसी मोड़ पे, कहां सोचा था मैंने
है ये खुदा की साज़िश, या मेरा हसीं मुकद्दर
कभी हमसफ़र, कभी हबीब, कभी रहबर बनकर
मेरी ज़िन्दगी में आए हो तुम चिराग बनकर

ना मंज़िल कोई मुकम्मल, अनजान हर एक रहगुज़र
भटका हुआ मुसाफिर और ठोकरें दरबदर
हर ख्वाब अधूरा सा, हर प्यास जो बुझी नहीं
किस्सा अनकहा सा, वो बात अनसुनी रही
तुम हो जो मुखातिब, तो सुनो इक बात कहूं
यूं तो हैं कई लेकिन, ना तुमसे है कोई मगर
कभी हमसफ़र, कभी हबीब, कभी रहबर बनकर
मेरी ज़िन्दगी में आए हो तुम चिराग बनकर

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