Vijay Jha  
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Joined 30 April 2019


Joined 30 April 2019
18 MAR 2022 AT 19:03

ये जो हल्का सा मेरे चेहरे पे गुलाल है,
कुछ नही बस तुम्हारा ही खयाल है।

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18 MAR 2022 AT 19:02

मैंने भी आज तेरे खयालों के रंग से होली खेल ही ली।

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2 FEB 2022 AT 15:54

सर्द रातों से वसंत के बहारों की ओर ले जाती हुई,
ये फरबरी भी मुझे कुछ तुम सी ही लगती है।

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16 DEC 2021 AT 8:20

उलझने खयालों की एक आहट लाई है
बेचैन रातों के लिए सुगबुगाहट लाई है,
ओस की बूंदों से कोहरा छा रहा था,
वो चाय प्याले में भरकर गरमाहट लाई है।

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15 NOV 2021 AT 9:03

ज़हन के अपने जज़्बात देखता हूं,
मैं बैठकर तन्हा अकेले में ख्वाब देखता हूं,
सबको दीदार मुनासिफ है उसका
मैं जब भी देखूं चेहरे पे नकाब देखता हूं,
इतने सवाल किए है मैंने उससे,
वो कुछ भी बोले मैं जवाब देखता हूं,
अलग है फलसफा मेरा ज़माने से,
मैं दिन में महताब रातों को आफताब देखता हूं।

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15 OCT 2021 AT 12:16

आगाज़ मुहब्बत का जरा सोच कर करना,
मेरे लिए ये गलियां पुरानी है,
किस्सा कितने बन जाते है यहां इश्क के,
हर पल जिंदगी में एक नई कहानी है।


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12 OCT 2021 AT 13:35

ज़हर को जाम कहते हो,
मुझे बेनाम कहते हो,
जरा सी हो गई गलती
तो तुम इल्ज़ाम कहते हो,

ये कैसा फलसफा है
जो सुबह को शाम कहते हो,
जो तेरे हाथ न आया
उसे बदनाम कहते हो।

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7 OCT 2021 AT 21:03

चलो इतना तो करम हो गया,
तेरे होने का भरम हो गया,
तेरे आने से मैं यूं गुलज़ार हुआ,
होश खोकर के मदहोशी से भी हमें प्यार हुआ।

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2 OCT 2021 AT 0:06

एक ख़्वाब ने दस्तक दे दी है, एक याद पड़ा है कोने में, यूं नशा चढ़ा है किताबों का, की गुलाब पड़ा है कोने में।

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3 SEP 2021 AT 20:00

ज़रा ठहरो एक शाम तो होने दो,
इस आगाज़ का अंजाम तो होने दो,
पाऊंगा अपने मुकाम को भी मैं,
एक बार ज़रा नाकाम तो होने दो,

ज़हन में हर शख्स के नाम अपना भी होगा,
उससे पहले ज़रा बदनाम तो होने दो,
मिल जाऊंगा इस रास्ते के ही किसी मोड़ पर मैं,
तबतलक ज़रा गुमनाम तो होने दो।



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