Vijay Golecha Sandeep   (Vijay Golecha Sandeep)
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Joined 12 June 2022


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Joined 12 June 2022
2 MAY AT 9:40

चल कदम आगे बढ़ा ,राहें तक रही हैं तुझें
दहलीज़ पे खड़ा ,क्या मुक़ाम देख रहा हैं

जो दिख नहीं रहा, वो भी शामिल हैं इसमें
अपनी नींवों से ही तो वो आसमान छू रहा हैं

यहाँ अब कोई सच-झूठ भी मानी नही रहा
वो ही बिकता हैं, जिसे बाज़ार तौल रहा हैं

विजय तू अपना ईमान ,अपने पास ही रख
अब ये वो नहीं ,ये उसका पैसा बोल रहा हैं

यें आईना भी उसका झूठा अक्स दिखा रहा
वो सामने हैं,मगर पीछे कोई और बोल रहा हैं

ज़मीन पे भी चलने का जिन्हें जरा भी नहीं सलीका
अब जिसके देखो वो बस आसमान में उड़ रहा हैं
-विजय गोलेछा संदीप

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23 APR AT 23:21

मगर फिर भी तन्हा रहा
ज़िंदगी तुझसे मैं रुसवा रहा
ना ज़िक्र तेरा किया
फिर भी तेरा ज़िक्र रहा
-विजय गोलेछा संदीप

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23 APR AT 23:18

फिर उसपर दिल की फ़रियाद
कैसे भूले तुम्हें
कैसे करे याद
-कोई वजह तो चाहिए जीने की
कैसे ना करे तुम्हें याद
ये ज़िंदगी और
हर पाल तुम्हारी याद
#vijay golecha

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23 APR AT 23:15

कभी वो पराया होकर भी
मुझे क्यूँ अपना सा लगता हैं
कैसे कह दूँ ग़ैर उसे मैं
वो मेरे ख़्वाबों जैसा दिखता हैं
विजय गोलेछा संदीप
instagram-vijay golecha

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23 APR AT 0:20




रिश्तों ने कभी उसे ज़िंदा नहीं रखा
वास्ता तो था, मगर रिश्ता नहीं रखा

बेख्याली से थे शायद वो सारे ख़्वाब मेरे
जिसे मेरी सुबह ने कभी याद नहीं रखा

आसान होता ग़र उसकी कोई जात होती
बच्चे के सिर पर किसी ने हाथ नहीं रखा

दर्द से भी रिश्ते गहरे हो जाते हैं कभी
किसी ने भी किसी पे ग़र एतबार ना रखा

ख़्वाइशों की फ़सलों पर कुछ एहसान ना रखा
मोहब्बत में बदनाम हुए मगर कभी इल्ज़ाम नहीं रखा
-विजय गोलेछा संदीप
Instagram -vijay golecha

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20 APR AT 23:10


मुझको कभी फ़क्र भी होता हैं ,अपने यूँ भी होने में
अपनी हर चीज़ खो दी मैंने ,तुमको अपना बनाने में

बात शायद तुम्हें यें अजीब लगे,तुम्हें कहने-सुनने में
ख़ुद की नज़र उतार ली हमने, तुमसे बात करने में

तुमसे रिश्ता शायद मेरा पिछले जन्मों का रहा होगा
इक पूरी उमर लगती हैं,किसी को यूँ अपना बनाने में

मेरी तक़दीर इतनी बुलंद होगी,इसका इख़्तियार ना था
तुमसे रूठना भी हक़ सा लगता हैं,खुद को ख़ुद से मनाने में

तुम मिलना कभी मुझसे फिर से उसी दिल के आँगन में
जहाँ हमने फ़ूल नहीं अपना दिल बिछाये था तेरे क़दमों में
-विजय गोलेछा संदीप

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17 MAR AT 9:11




ज़िंदगी का सफ़र हमने तो यूँ आसान कर लिया
किसी को भूला दिया,किसी को याद कर लिया

निभाया हमने कुछ फ़र्ज़ यूँ भी इंसानियत का
किसी को दुआएँ दी,किसी की दुआ बन गया

यही तो सच हैं ,यहाँ कोई कुछ भी हमेशा नहीं
मकान मलिक हो के भी,मैं किरायेदार बन गया

रखा हौंसला दबा के हमेशा अपने दिल के कोने में
ख़ुद से ही गिर के हमने संभलना जो सीख लिया

किसी और से कभी मैं माँगता भी तो क्या अपने लिए
अपनी ख़ुशियाँ बाँट के,पहले से ज्यादा ख़ुश हो गया
-विजय गोलेछा संदीप

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21 FEB AT 8:36


कभी-कभी बोझ से लगते हैं,अपने ख़ुद के साये भी
नींद आए भी तो कैसे, जागते फिरते हैं जो ख़्वाब भी

किसी तिलिस्म का शिकार लगती हैं हमें यें ज़िंदगी
कभी ठोकर से गिराए और रुलाकर , जो हँसाये भी

जिसको यहाँ अपना मानूँ और कैसे कह दूँ पराया भी
प्यार की आग़ोश में,पलती हैं मगर दिल में उलझने भी

कई लौटा दे मुझे मेरी वो पहली सी अल्हड़ मासूमियत
मुझमें कही राम भी हैं , मिलता कभी मुझमें रावण भी

मेरे होने ने ही मुझे रुसवा किया तो ख़ुद पे नाज़ भी
क्या कहूँ कभी वो मेरे हैं भी और कभी नहीं भी
——विजय गोलेछा संदीप

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29 JAN AT 21:54

चन्द लफ़्ज़ों में तेरे बारे में सब लिख दूँ
इतना हुनर मुझमें नहीं.....
सब लिख पाऊँ... इतना मैं काबिल नहीं.....
-कैसे लिखूँ वो बचपन का साथ हमारा
मेरे भाई वो सारा प्यार तुम्हारा
-हमारे लड़ने-झगड़ने में भी कुछ बात थी
तेरे साथ होने से ही तो होती मैं बड़ी थी
-अनगिनत वो सारे पल दिल में समाए हैं
हमने जीवन में वो रिश्ते ही जो कमाए हैं
-संदीप सिर्फ़ नाम ही नहीं तुम्हारा
मेरे जीवन के अंधेरों को मिला
तुमसे ही उजियारा
-अपने दोस्तों से पूछो ,क्या हो तुम
तुम्हारी हर अदा के क़ायल हैं हम
-वो घूमने-फिरने ,
वो ज़िंदगी जीने का अन्दाज़ तुम्हारा
-तू बस उमर से छोटा हैं मगर
मगर तू ही तो हैं अभिमान हमारा
-ऐसे ही तो नहीं रखा
संदीप नाम तुम्हारा
—विजय गोलेछा संदीप

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29 JAN AT 21:48

“थोड़े से हम
थोड़े से आप
उस पर हमारे
अनकहे जज़्बात
-कुछ तुम ने कही
बिना शब्दों के
जो मैंने सुना
-तुम्हारी हाँ मैं
हाँ ,हैं मेरी
-तुम मेरे हो मगर
लोग समझते नहीं
-कुछ रिश्तों के नाम
जो कभी होते नहीं
-विजय गोलेछा संदीप

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