इंसान को इंसान ने बांटा, मज़हब के नाम पर बांटा।
हिंदू-मुस्लिम,सिख ,ईसाई ,पारसी और जैन के नाम पर बांटा।
हिंदू भी बांटा मुस्लिम भी बांटा, बांट दिए सिख ईसाई ।
लाल रंग है लहू का, लहू को कितने रंगों में बांटा
इंसान को इंसान ने बांटा, ऊंच-नीच जात-पात, अमीर-गरीब नस्लभेद के नाम पर बांटा ।
इस हाड-मांस के शरीर को किसने बांटा।
इंसान को इंसान ने बांटा, देशों के नाम पर बांटा
मैं भी मिट्टी तुम भी मिट्टी, आखिर इस मिट्टी को सरहदों में किसने बांटा ।
भारत विभाजन में न हिंदू मरा न मुस्लिम मरा,
मर गई थी इंसानियत, इंसान को सिर्फ इस कट्टरवाद की सोच ने मारा ।
धर्म तो पानी निभाता है बिना जात पात बिना भेदभाव, सबकी प्यास बुझाता है
अरे बांट दिया इस पानी को भी धर्म के ठेकेदारों ने
मार दिया मासूम को भी इसी सोच से भरे विचारों ने।
प्यास लगी थी पानी की प्यास बुझी ना बुझी,
बुझ गई लौ उस जिंदगानी की
कभी जो रहती थी चहल पहल जहां, अब खामोशी सी छाई है ।
अरे छीन लिया उस मासूम को, उस मां की कोख उजाड़ी है ।
क्या थी जो जाति उसकी जिसकी ख़ातिर जान उसने गवाई है
कितनी गहरी है जड़े जाति की जो 21वीं सदी तक छाई है।
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