Vijay Dhiman   (Vijay Kumar)
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Joined 24 September 2019


Joined 24 September 2019
3 APR AT 18:56

बहुत से पत्थर उछालें गये आसमां पर
कुछ का सिर पर गिरना लाज़मी है ।

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3 APR AT 11:12

तेरे दर से निकला हूं ठोकर खाकर
फिर इस जमाने में कोई अपना ना मिला
ताउम्र कटी है जिंदगी सफ़र में
इस मुसाफिर को राह में कोई आशियाना ना मिला

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2 MAR AT 21:49

शुक्र है ख़ुदा का, पत्थर को ख़ुदा माना
मलाल है, जिसने क़ब्र खोदी, उसका एहसान नहीं माना।
ता उम्र कटी है ख्वाहिशें अंधेरों में
शुक्र है उजालों ने जिंदगी भर का हिसाब नहीं मांगा।

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16 MAR 2023 AT 8:27

एक अरसा गुजरा है किसी के इंतजार में
और मैं दौ ही कदम चला कि शाम हो गई
कुछ तो सब्र रखा होगा ऐ मुसाफ़िर तूने
वरना रास्तों को कब मंजिल की तलाश थी

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4 SEP 2022 AT 22:21

इंसान को इंसान ने बांटा, मज़हब के नाम पर बांटा।
हिंदू-मुस्लिम,सिख ,ईसाई ,पारसी और जैन के नाम पर बांटा।
हिंदू भी बांटा मुस्लिम भी बांटा, बांट दिए सिख ईसाई ।
लाल रंग है लहू का, लहू को कितने रंगों में बांटा
इंसान को इंसान ने बांटा, ऊंच-नीच जात-पात, अमीर-गरीब नस्लभेद के नाम पर बांटा ।
इस हाड-मांस के शरीर को किसने बांटा।
इंसान को इंसान ने बांटा, देशों के नाम पर बांटा
मैं भी मिट्टी तुम भी मिट्टी, आखिर इस मिट्टी को सरहदों में किसने बांटा ।
भारत विभाजन में न हिंदू मरा न मुस्लिम मरा,
मर गई थी इंसानियत, इंसान को सिर्फ इस कट्टरवाद की सोच ने मारा ।
धर्म तो पानी निभाता है बिना जात पात बिना भेदभाव, सबकी प्यास बुझाता है
अरे बांट दिया इस पानी को भी धर्म के ठेकेदारों ने
मार दिया मासूम को भी इसी सोच से भरे विचारों ने।
प्यास लगी थी पानी की प्यास बुझी ना बुझी,
बुझ गई लौ उस जिंदगानी की
कभी जो रहती थी चहल पहल जहां, अब खामोशी सी छाई है ।
अरे छीन लिया उस मासूम को, उस मां की कोख उजाड़ी है ।
क्या थी जो जाति उसकी जिसकी ख़ातिर जान उसने गवाई है
कितनी गहरी है जड़े जाति की जो 21वीं सदी तक छाई है।

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5 MAR 2022 AT 19:42

जंग खून मांगती है मैदान में
नफ़रत का बीज फैलाती है आवा़म में
यूं तो हासिल कुछ भी नहीं
सिर्फ पीछे छोड़ जाती है लाशें मैदान में
किसी का सायां उठ जाता है किसी का साथ टूट जाता
चिखती-बिलखती आवाजों के बीच इंसान छूट जाता है
बम के धमाकों से इमारते मलबे का ढेर बन जाती हैं
जीती-जागती जिंदगीयां लाशों में बदल जाती है
जंग तबाही का मंज़र साथ लाती है
कुछ नहीं बचता सिर्फ राख हाथ आती है
इंसान को इंसान होने पर शर्म नहीं आती
इतिहास उठाकर देख लो जंग रास नहीं आती।

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12 OCT 2021 AT 23:21

इंतजार की इंतहा तो देखिए
वक्त क़ैद है वक्त के आगोश में

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20 AUG 2021 AT 15:59

बसर जाने दे जिंदगी को रात के आशियाने में
उजाले ने कईयों के ख्वाब लुटे हैं

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15 JUL 2021 AT 23:26

एक उम्र गुजर रही है इश्क-ए-बाज़ार में
यह सज़ा मुकम्मल हुई है चाहत-ए-दीदार में

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14 JUL 2021 AT 22:15

वक्त वे वक्त जिंदगी की अदालत में फ़रमान सुनाया जाएगा
सज़ा मौत की देकर मुझे तुमसे नहीं खुद से रिहा किया जाएगा

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