घने बादल जुल्म के
पर बिजली जैसे अंगार तुम
छिप गया था भगवा रंग
पर उसके बने श्रृंगार तुम
छल कपट से चलता शासन
देवभूमि पे घूमे दुशासन
झुक रही थी गर्दन सारी
रो रही थी रयत नर नारी
जंग लगा था समशेरोंपर
पर समशेर तेरी रुकी नही
पैरोतले सल्तनतें तुम्हारे
गर्दन तेरी झुकी नही
बोकर बीज क्रांति का
निर्माण किया स्वराज तुम
हिंदुओं के रक्षक हो तुम
युगपुरुष हो 'शिवराज' तुम.....
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