रात तुम्हें मुस्कुराते हुए सपनें में देखा, मैं सुना रहा था कुछ पंक्तियां अपनी सोचा उठकर लिखता हूँ इन्हें अपने पन्नें में, पर... छोड़ा ना तुमनें हाथ मेरा सुबह उठा तो सब भूल गया, बता अब कैसे लिखूँ उसे अपने पन्नें में...!!🙂✍🏻
जब उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच जाओ विद्या जहां से हर कोई तुम्हारा साथ छोड़ने लगे, हारने लगो तुम स्वयं को तब मुझे याद करना, मुझ तक आना... मैं तुममें वो प्रेम सींचूंगा... जिससे तुम जीत सको जीवन की दौड़, तुम आना अपने सबसे हारे समय में, मैं रहूंगा सदा तुम्हारे लिए तुम्हारी प्रतीक्षा में...!!🙂✍🏻
कितना आसान होता है यह कहना कि- 'मैं ठीक हूँ' इसके लिए दबाना होता है हृदय के व्यथा को, शब्दों से लगे चोट को फिर लानी पड़ती है होंठों पर एक झूठी मुस्कान, अन्ततः हम पहुँच जाते हैं उस मंजिल पर जहाँ कह सकें:- 'ठीक ही तो हूँ मैं'.....!!🙂✍🏻