Vidhya Koli   (Vidhya Koli)
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Joined 1 July 2020


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13 HOURS AGO

चीनी को कर दरकिनार हम
उनके होंठों की मिठास
चख लेते है।

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7 MAY AT 21:28

एक चुटकी सिंदूर की कीमत
तुम क्या जानो...पाकिस्तान

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26 APR AT 22:49

नामों का कब्रिस्तान
दफन है
सीने में हमारे
कभी कोई तो
कभी कोई नाम
गढ़े मुर्दों-सा
उखड़कर निकलता है।

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24 APR AT 17:49

मुझ जैसे अंधेरें आसमान को
तुझ जैसा सितारा मिला है।

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15 APR AT 18:40

ट्रेन में सफर करते समय
जैसे-जैसे चीजें पीछे छूटती जाती हैं
वे सब धुंधला जाती है...
फिर वह आंखों से ओझल होती जाती है
पर ट्रेन अपने सफर पर सरपट दौड़ती रहती है
पीछे देखे बिना...

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14 APR AT 23:30

फूलों को संभालना
न तो माली के बस की बात थी
न किसी प्रेमी या प्रेमिका के
यहां तक कि...
भगवान भी उन्हें नहीं संभाल पाया
फूलों को सहेजना और
अपने में समेटे रखने का हूनर
बस...
किताबों में था
जो फूलों को अपने ह्रदय से
लगाकर रखती है।

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10 APR AT 13:41

क्या ही जलायेगी ये दुनिया
हमें चार कांधों पर ले जाकर,
हम बिखरे इतना है कि समेटना मुश्किल है।

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7 APR AT 23:26

उठी जो कसक सीने में
हर रात तन्हा हो गई
नींद न बची आँखों में
न जाने कब सुबह हो गई...!!

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7 APR AT 14:02

मन के काले अंधेरें को
उकेरकर
इन्द्रधनुष सा रंगीन कर देता है

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7 APR AT 13:59

अपनी जड़ों से टूटकर बिखरना
और
बिखरकर खुद को समेटना
बहुत सुंदर होता है।

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