ऐसे क्यों ख़फ़ा हो गये थे साहिब !
जो बिना गीले - शिकवे के ही हमें ठुकरा दिया ।
~श्रीमाली
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तेरी ना मौजूदगी में ही तेरे होने का एहसास छिपा है
जो तू नहीं अगर ज़िन्दगी में , तो वक़्त भी ख़फ़ा है ।
अब लौट भी आ ज़िन्दगी में फिर से
सवार दे आशिक़ी को मुहब्बत के रंग से ।
~श्रीमाली-
क्यों न हो इश्क़ मुक़म्मल तेरा ,
जो तू राहगीर है मुहब्बत का।
कायनात भी कह देगी तुझसे ,
जा कर ले इश्क़ मुक़म्मल तेरा ।
~श्रीमाली-
वक़्त का इंतज़ार करते करते ,
रह गया मैं तुमसे ये कहते कहते ।
कि अब ज़रा ख़्वाबो में भी न आना तुम ,
थक से गए हम ! अब गम सहते सहते ।
~श्रीमाली-
इश्क़ का जनाजा निकला है कैसा देखो !
रूह तक कांप उठे तमाशा ये देखो ।
कहता है ये शख्स ! ज़रूरत नहीं अब तेरे रहम की ,
बड़ी कीमत चुकाई है मुहब्बत के करम की ।
~श्रीमाली
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हमारी इंसानियत को वो अपनी तवज़्ज़ो समझ बैठे ।
पुराने दर्द से हमें मुखातिब कर बैठे ।
~विधुशेखर-
कह गए तुलसी सूर सब ,बिन गुरु घोर अंधार ।
हरी गावे महिमा थारी ,शेखर पूजे बारम्बार ।
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