Vidhi Mishra  
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Joined 2 November 2018


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Joined 2 November 2018
28 MAR 2019 AT 11:31

Childhood was indeed an awesome phase. I used to draw and paint the beautiful images which I found whenever I dive into the ocean of my colourful mind. Everyone used to appreciate and teachers also used to give a remark. Life has turned completely upside down. Now I don't even complete my Art projects and no body even cares for that and the teacher who used to give me a good remark then, gives now as well but..........the late remark.😁

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14 FEB 2019 AT 17:19

Some of us are born with Empathetic Attitude to serve and give more Love and Care than we will ever get back.

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13 MAY 2020 AT 21:18

वहम था मेरा
जो आज टूट सा रहा है,
हमदर्द समझा था जिसे,
वो भी अब दर्द दे रहा है।
न सोचा था ऐसा भी होगा एक दिन,
पर हो यही रहा है,
आज मेरा दिमाग दिल का साथ छोड़ रहा है।
अपनी सच्चाई के हज़ारों सबूत दिए,
अपना हर ग़म छुपा दूसरों को खुशियाँ बांटी,
आज जब सहारे की ज़रूरत पड़ी,
हाथ थमने का दावा करने वाले भी साथ छोड़ कर चले गए।
पर अच्छा है टूट गया जो वहम था मेरा,
अकेले ही हर हाल में जीना है,
यह जीवन का सत्य बता गया।

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15 APR 2020 AT 0:22

हर ग़म मिटाते-मिटाते ग़मों का दरिया बन गए,
उनका हमदर्द बनते-बनते 'हम' दर्द बन गए।

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13 APR 2020 AT 23:35

शब्दों का खेल भी निराला होता है,
जब जज़्बात होते हैं तो बयाँ करने के लिए अल्फ़ाज़ नहीं मिलते,
और जब अल्फ़ाज़ मिलते हैं तो जज़्बातों की कदर करने वाले नहीं मिलते।

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30 MAR 2020 AT 0:55

बिन कहे कभी-कभी सब कुछ कह जाती हूँ मैं,
अक्सर लबों पर ताले और नज़रों में बहुत सारी कहानियों को रखती हूँ।
अल्फ़ाज़ मेरे कभी थम से जाते हैं,
कहीं किसी को चोट न पहुँचा दें, थोड़ा सहम सा जाते हैं,
हर छोटी चीज़ का इतना खयाल रखते हैं ये, आहत के डर से आहट करने से भी कतराते हैं।
अक्सर लोग कहते हैं तुम शांत क्यों हो?
पर उन्हें क्या पता कि मन के उस वीरान समुद्र में सैकड़ों भाव और विचार आपस में लड़-झगड़ कर, कभी-कभी साथ में भी गोते लगाकर एक मुकाम तक पहुँचने की कोशिश में जुटे हैं,
क्या पता उन्हें की कभी-कभी हर लम्हे में खुद से ही जंग लड़ती हूँ मैं, दूसरों के ग़म दूर करते-करते खुद को ही ज़ख़्म दे जाती हूँ,
इन भावनाओं के भँवर में, खुद को अकेले ही जूझता पाती हूँ मैं।
कह तो नहीं पाती कुछ बस मुस्कुरा कर टाल देती हूँ,
क्योंकि मेरी मुस्कुराहटें मेरे ज़ख्म छुपाने की नाकाम कोशिशें हैं ये कभी पहचान ही नहीं पाते हैं लोग।

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17 MAR 2020 AT 22:19

दर्द तो दिल के कम हो जाते अगर मन में उमड़ते जज़्बात लफ़्ज़ों में बयां हो पाते।

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16 MAR 2020 AT 0:12

अपनी मुस्कुराहट में वो हर ग़म को दबा लिया करती थी,
आँखें प्याज़ काटते हुए नम थीं कहकर अपने आँसुओं को अपनों से छुपा लिया करती थी।

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8 FEB 2020 AT 22:10

अभी भी कह सकते हो,
जो दिल की गहराइयों में छुपा है,
जो कह कर भी अनकहा सा है,
जो चुभता तो है तुम्हे पर बयां नहीं हो पाता है,
जो बताना तो चाहते हो पर बताने से पहले ही खुद को थाम लेते हो तुम,
हाँ जानती हूँ, कुछ बातें बिन कहे ही समझी जाती हैं,
पर अनकही उन बातों को मुझतक पहुंचने का एक ज़रिया तो दो।
खोल दो उन बन्द दरवाजों को, आज़ाद कर दो अपने अल्फ़ाज़ों को,
तोड़ दो हर बेड़ी को, पहुंचा दो दुनिया तक अपने खयालों,
कभी न सोचना की देर हो गयी है,
याद रखना, मुझसे कभी भी कुछ भी कह सकते हो तुम।

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7 FEB 2020 AT 0:47

We don't lose people, they are intentionally removed from our lives because we can't hear them, but, the God listens to each and every word they utter for us in our absence.


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