सुनो प्रिय
तुम मानसरोवर से निकली
एक नदी की तरह हो
पहाड़ो से टकराकर आगे बढ़ी हो
जैसे मैदानी इलाकों में आकर
नदियाँ लाती है खुशी का पैगाम
वैसे तुमने मेरे जीवन में भी
मैं,तुम्हें खुद के हिसाब से
देखता हूँ बहते,तो खुशी होती है
खुशी में तुम्हारी निडरता,चंचलता
झलकती है,और झलकता है
तुम्हारा बचपन सा मन
जैसे तुम खुद में,परिपूर्ण हो
इठलाती हो तो मन हर्षित होता है
मैंने अपने तरीके से कभी
नही मोड़ना चाहा तुम्हें
वैसे भी किसी की राह को मोड़ना
कभी अच्छा नही रहा है
वरना,बहुत कुछ उजड़ जाता है
विश्वास,उम्मीद,सपने,प्रेम
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