विधान   (शारदा प्रसाद"विधान")
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कलम है हम
कलम से है हम
कलम है अना...
💙
Joined 15 June 2017


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25 APR AT 7:30

न कोई शोर किया,न कोई बात की
खैर आप के आगे, क्या औकात थी
कर रहे संघर्ष जो हल्कुओ के बच्चे
ढूढ़ते हो,धर्म क्या था जात क्या थी
~विधान
#UPSC

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25 APR AT 7:16

हमें बंधना चाहिए था जैसे बंधते हैं पेड़ की शाखों में सावन के झूले,हमें उलझना चाहिए था समस्याओ से जैसे उलझती है पेड़ की जड़े खुशी-खुशी अपनों से,मगर हम ऐसे दौर में आ खड़े हुए हैं जैसे प्रगति के नाम पर कट जाते हैं पेड़-पौधे,कुछ वैसे ही आज कल के रिश्ते ...🫂

~विधान

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25 APR AT 7:00

किसी दिन हम भी किस्सा होंगे
किसी के जुबां का हिस्सा होंगे
लिख रहे है दफन होने को पन्ने में
फिर मुक़द्दर में न जाने क्या होंगे।।
~विधान ❤️

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19 OCT 2022 AT 15:59

सुनो प्रिय
तुम मानसरोवर से निकली
एक नदी की तरह हो
पहाड़ो से टकराकर आगे बढ़ी हो
जैसे मैदानी इलाकों में आकर
नदियाँ लाती है खुशी का पैगाम
वैसे तुमने मेरे जीवन में भी

मैं,तुम्हें खुद के हिसाब से
देखता हूँ बहते,तो खुशी होती है
खुशी में तुम्हारी निडरता,चंचलता
झलकती है,और झलकता है
तुम्हारा बचपन सा मन

जैसे तुम खुद में,परिपूर्ण हो
इठलाती हो तो मन हर्षित होता है
मैंने अपने तरीके से कभी
नही मोड़ना चाहा तुम्हें

वैसे भी किसी की राह को मोड़ना
कभी अच्छा नही रहा है
वरना,बहुत कुछ उजड़ जाता है
विश्वास,उम्मीद,सपने,प्रेम

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11 MAR 2022 AT 12:10

बसन्त सा खिलने वाले चेहरे,अब खिलेंगे नही।
मुंतज़िर करेंगे तुम्हारा उम्रभर,मग़र मिलेंगे नही।

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28 FEB 2022 AT 11:44


चुप्पियां बहस कर रही
खूब आजकल मुझसे
घर को हंसाने वाले लड़के
मौन क्यों हो गए....

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25 FEB 2022 AT 14:21

युद्ध के इस खेल में
शायद कभी मिल पाएंगे
हमे मालूम है हम प्रजा है
सबसे पहले
हम ही मारे जाएंगे...— % &

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24 FEB 2022 AT 22:10

युद्ध की चाह रखने वाले,भला
युद्ध में किसकी विजय होती है
कई मोहब्बत पनाह मांगती है
मानवता,गिड़गिड़ाकर रोती है।— % &

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22 FEB 2022 AT 9:48

तुम्हारी रैलियों में आकर,जो इतनी देर टिके हैं।

पता करो पेट के लिए,आज कितने में बिके हैं।— % &

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21 FEB 2022 AT 12:56

समाज धड़ो का है
एक में वह हिन्दू है
दूसरे में बताना पड़ता है..

एक में पैदा होते
हो जाते है सब उच्च कुल के
दूसरे में मरते दम तक
दबे रह जाना पड़ता है....

किसे पसन्द है
कीचड़ के छीटें
मगर कभी कभी लिखने के बदले
ये सब भी लगाना पड़ता है...

कौन करे तुमसे बहस
इस बात से
अधिकार कभी मिलते है
कभी छीनने पड़ते है
कभी चुप रह जाना पड़ता है..— % &

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