प्रेम में पड़ी लड़की,
अपनी दहलीज़ में रहकर,
तोड़ देती है प्रेम की मर्यादा,
प्रेमी का अभिमान और
उसका आत्मसम्मान।-
तथ... read more
सभी के साथ शामिल तुम भी हो
मेरे जज़्बा के क़ातिल तुम भी हो
यहाँ आँखों आँखों ही में ढलती जाती है रात अब
इस बदगुमाँ मंज़र के नाज़िर तुम भी हो-
हूबहू तुमसा तुम्हारे पीछे आ रहे हैं
ये मेरे ऑंसू भी मुझे छोड़ कर जा रहे हैं-
पता नहीं अब कैसी हो तुम!
मैंने सुना है अच्छी हो तुम,
याद में मेरी तो अच्छी हो,
क्या सचमुच में अच्छी हो तुम?
अब भी क्या झगड़ा करती हो?
छिपकलियों से डरती हो,
अब भी क्या दिनभर पढ़ती हो?
क्या अब भी ऋतिक पर मरती हो?
वैसी ही सच्ची सी हो तुम,
सुन्दर सी अच्छी सी हो तुम,
या अब इस दुनिया की खातिर,
भाई, पिता और माँ की खातिर,
अपने ख़्वाब का सौदा की हो!
छोड़ के तुम मेहनत की नगरी,
अनजाने बंधन में बंधी हो?-
तुम्हारी आँखें!
कितनी साधारण हैं तुम्हारी आँखें!
और चूंकि साधारण चीजें मिलकर ही दुनिया बनाती हैं,
तुम्हारी साधारण सी आँखें मुझे आश्वस्त करती हैं,
हमारी दुनिया भी बनेगी और ज़रूर बनेगी।-
अभी कुछ और भी वादे निभाने वाले हैं
आए नहीं हैं जो अबतक वे आने वाले हैं
इस धरा पर मूल्य है गर ज़िंदगी फ़िर
हम इस धरा से भी तो जाने वाले हैं
देखता हूँ रौशनी जो चारो ओर
ख़ौफ़ खाता हूँ दस्तक अंधेरे देने वाले हैं
तुम आ रहे हो इस तरफ़ तो आओ भी
कल तलक तो हम भी जाने वाले हैं
कुछ और भी हैं रास्ते दरिया के आगे
बस तय अगर हो जाए अब हम पार पाने वाले हैं-
यूॅं ऑंसूओं से वक्त को लिखा करोगे
किसी के बाद किसी की याद भी कितना करोगे
कहो अच्छा हुआ जो भी हुआ
बुरा कह-कह के भी बुरा भला कितना करोगे
ज़ेहन में और कुछ आए न आए
जो बातें आ चूॅंकि वो ही महज़ कितना करोगे
कोई रास्ता भी जिस तरफ़ जाता नहीं हो
उधर को दौड़ भी जाओ सफ़र कितना करोगे-
मैंने दुनिया चाही और तुम मिली
मैंने तुम्हें चाहा और दुनिया मिली
चुकीं ये सब कहते हैं जब जो मांगों तब वो नहीं मिलता
इसे मानते हुए एक और ख़्याल सुनिश्चित हुआ
तुम मेरी दुनिया नहीं हो,
तुम और दुनिया अलग-अलग हैं।-
कोई तो आदमी होगा कोई एक औरत होगी
बाद मोहब्बत के भी दुनिया कहाँ बे-ग़ैरत होगी-