Vibhor Vyas   (@ Vibhor Vyas)
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Joined 19 June 2017


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Joined 19 June 2017
2 MAR AT 15:56

रुख़सत मिले रूह को, तो ये ख़ुदा में मिल जाए।
ख़ुदा दे इजाज़त तो, अपने बिछड़ों से मिल जाए।।
सजदा नही होता, न होती है इबादत मुझसे।
ख़ुदा माफ़ करे मुझको, तो मुझे जिंदगी मिल जाए।।

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18 OCT 2023 AT 18:34

~ Our Teacher ~

He, who loves us for our wishes,
He, who scolds us for our failures,
He, who is passionate about our desires,
He is our pathfinder for our success.

If he is interrupted, he feels angry,
If he does not get answers, we feel the fury,
He wants us in time, very fast and active,
He is like tom and we are all jerry.

His love for children is very prudent.
He scolds hard and motivates every student,
His youthful nature pacifies us all,
His knowledge of delivery always seems ardent.

"Yes Sir! Yes Sir!" we all raise our voice,
He teaches us that winning is the only choice,
He is the one, paving path for our future,
We wish for 'Our Teacher, he must always rejoice.

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25 SEP 2022 AT 0:12

बिखरी ज़ुल्फ़े, माथे पे हैरानी की सिलवटें,
तेरे सजने संवरने से बेहतर अदा है,
आंखों की चमक, गालों की ये सुर्खियां,
ख़ुदा भी जानता है कौन इन पे फ़िदा है,
लबों की कशिश और मुहज्जब सी बोली,
कानों में गूंजती मोहब्बत की सदा है...

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16 MAY 2022 AT 1:26

क्या कहूं? के शमा, शोला, अंगारा या आफताब हो,
जल के बुझना, बुझ के जलना, अब आदत हो गई...

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19 DEC 2021 AT 17:23

It's better to mourn and weep, rather repent and cry...

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4 OCT 2021 AT 7:40

‌ख़ुदा ने बनाया तुझे उन्वान-ए-मुहब्बत,
दुनिया को इश्क़ की नई कहानी देने!

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1 OCT 2021 AT 22:03

कुछ तो बात है, तेरे मेरे दरमियान,
तू भूलता नहीं है, मैं भुलाना नहीं चाहता!

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17 JUN 2021 AT 15:54

वो पल जो तेरे साथ बीतें, आम नहीं वो ख़ास थे!
पुरानी टोकरी में छुपे थे जो, फल आम नहीं वो ख़ास थे!!

मेरे गाँव तुझे भूला नहीं हूँ, पर आऊं कैसे शहर छोड़कर!
तेरी मिट्टी के घर अब भी हैं पक्के, घर आम नहीं वो ख़ास थे!!

मेरे आँगन में है एक आम का पौधा, बड़ा नहीं हो पाता वो!
क्या खूब बोये थे दादा ने, बाग़ आम नहीं वो ख़ास थे!!

कच्ची उम्र में थे हरे-भरे हम, पक कर पीले पड़ गए!
फिर टूट गिरे हम उन शाखों से, पेड़ आम नहीं वो ख़ास थे!!

दादी ने खिलाये जो दसहरी - लंगड़ा, स्वाद ज़बां पे बाक़ी है!
क्या कहना उनकी कहानियों का, किस्से आम नहीं वो ख़ास थे!!

गर्मियों के मौसम वो, छुट्टियाँ बड़ी ख़ास थीं 'एहबाब'!
वो गाँव, मोहल्ले, छतों के टप्पे, इश्क़ आम नहीं वो ख़ास थे!!

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7 MAY 2021 AT 21:38

खुशियों का हाथ थामकर,
ग़म क्यों नहीं बांट लेती मुझसे?

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22 DEC 2020 AT 23:46

मुश्किल वक्त आया, तो वक्त मुश्किल से गुज़रा,
रात भर ना आंख लगी, दिन बेचैन गुज़रा,
मंदिर जाते, मस्जिद जाते, पर सब सबसे दूर हुए,
कुछ ख़ुदा के पास गए, कुछ ख़ुदा के क़रीब हुए।

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