यूँ तो मर्ज़ की कोई कमी नहीं पर एक दवा ही काफी है,
जो दे जाए सुकूँ की नींद वो तेरी गोद ही काफी है|
हमने कब माँगे है तुझसे प्यार के दिन कई हजार,
तेरी जुल्फ़ों की छाँव में बीती शाम ही काफी है|
तू भले न बोले एक लफ्ज़ कभी हमारे कानों में,
बस आकर मेरे बगल बैठ जा, बगल बैठना काफी है|
तू खिलखिला के हँसी कभी भी होगी किसी महफिल में,
सामने मेरे आकर, तेरा मुस्काना ही काफी है|
दुआ को जब भी हाथ उठे तो क्या माँगू मैं उसके दर,
एक दुआ जो सबसे बड़ी, बस तुझे माँगना काफी है|
जब लिखने को गज़ल बैठूँ और कलम उठा कर सोचूँ मैं,
चौबिस घंटे रहता जो, वो ख़्याल तेरा काफी है़|
अक्सर सोच में रहता हूँ की किस बारे में सोचूँ मैं,
बस सोच लिया तेरे बारे में, तुझे सोचना काफी है|
आँखों को अक्सर एक शिकायत, रहती है तुझे देखने की,
मैं समझा लेता हूँ उनको की तस्वीर देखना काफी है|
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