नफ़रत मत कर आँधियों से, तू लौ को फड़फड़ाने दे,
हौसले को जमाने में, थोड़ा-सा लड़खड़ाने दे|
पता चलने दे कितना दम भरा है, तिरी बाजुओं में,
ख़ातिर इसके कदमों को तू थोड़ा डगमगाने दे|
बातें करके बड़ी-बड़ी, हितैषी बन जाते जो लोग,
पीठ के पीछे के उनके, तू चेहरे सामने आने दे|
मुश्किल में जो नही टिके अपने पराए रिश्ते थे,
वो दिल से उतर चुके है उनको फिर वापस न आने दे|
अरमानों का जो पौधा तूने बोया है तिरी आँखों में,
उस पौधे को तू रोज-रोज पसीने से नहाने दे|
लेकर तेरे होंठो तक जब भरे जाम साकी आए,
ख्वाबों के पूरे होने तक, नये-नये उसे बहाने दे|-
First cry on 8th January... read more
तुम क्या जानो
तुम क्या हो मेरे,
तुम कितना रहते हो मुझमें
मैने ख़ुद को ना पाया कभी
जितना पाया तुमको ख़ुद में
सुबह-शाम, सोते-जगते
ये आँखे कैसे हैं जीतीं,
जबसे तुमसे मिला अकेली रात नहीं बीती।
(Full poem read in caption)-
अब तलक़ जो जिंदगी, कई दरियों से होकर गुज़रा मैं,
सोच रहा हूँ अब तिरी इन आँखों में डूबा जाए|
डूब जाऊँ जब आँखों में और पानी सर से ऊपर हो,
तब चुपके-चुपके फिर तेरे इन अधरों को चूमा जाए|
चूम रहा तिरे अधरों को चुपके-चुपके, हौले-हौले
तब हाथ तिरा मेरे सर पर बालों को ऐसे सहलाए|
जैसे नदी किनारे पवन चले और कश्ती ड़गमग-ड़गमग हो,
बदन के जर्रे-जर्रे में कुछ ऐसी हलचल हो जाए|
तुझे छूने को ये हाथ बढ़े़ है चाह रही तेरी लट भी,
बार-बार मिरे हाथों से ये लिपट लिपट उलझी जाए|
साथ रहे जब हम दोनों इक-दूजे की यूँ बाँहों में,
चिंगारी धीरे-धीरे शोला बन-बन भड़़की जाए|-
यूँ तो मर्ज़ की कोई कमी नहीं पर एक दवा ही काफी है,
जो दे जाए सुकूँ की नींद वो तेरी गोद ही काफी है|
हमने कब माँगे है तुझसे प्यार के दिन कई हजार,
तेरी जुल्फ़ों की छाँव में बीती शाम ही काफी है|
तू भले न बोले एक लफ्ज़ कभी हमारे कानों में,
बस आकर मेरे बगल बैठ जा, बगल बैठना काफी है|
तू खिलखिला के हँसी कभी भी होगी किसी महफिल में,
सामने मेरे आकर, तेरा मुस्काना ही काफी है|
दुआ को जब भी हाथ उठे तो क्या माँगू मैं उसके दर,
एक दुआ जो सबसे बड़ी, बस तुझे माँगना काफी है|
जब लिखने को गज़ल बैठूँ और कलम उठा कर सोचूँ मैं,
चौबिस घंटे रहता जो, वो ख़्याल तेरा काफी है़|
अक्सर सोच में रहता हूँ की किस बारे में सोचूँ मैं,
बस सोच लिया तेरे बारे में, तुझे सोचना काफी है|
आँखों को अक्सर एक शिकायत, रहती है तुझे देखने की,
मैं समझा लेता हूँ उनको की तस्वीर देखना काफी है|-
तू उसके इश्क़ में है और बेबस यूँ ही तन्हा है,
उसको, है ख़बर लेकिन वो पत्थर दिल का इन्सां है|
उसको यादकर चाहत में तूने लिख दिए कई शे'अर,
वो पढ़कर भी बने अन्जान तो फिर कसूर किसका है?
तुझको क्या मिला है इश्क़ में बस जिल्लतों के सिवा,
फिर भी चल पड़ा नज़रे उठा यार बेशर्म कितना हैं|
तुझे तो ढूँढना था तिरी मंजिल सीधे रस्तों में,
टेढ़े रस्तों पें चलकर कहाँ तुझको मंजिल मिलना है|
छोटी उम्र में ये सर्द रातें कितनी अच्छी थी,
सोच उनको हसीन कितना, वो वक़्त लगता है|
मुझको रास न आता है अब यह सर्द का मौसम,
रात लम्बी है कितनी और ये दिन, कितना छोटा है|
सारी रात आँखे हिज्र में हैं रहती नम-नम सी,
सफ़र इन अश्क़ो का इन रातों में हाए कितना लम्बा है?
फ़ना भी करना है ख़ुद को तो तू कर खुद को उसके नाम,
देख तेरे उदास चेहरे, जिसको डर-सा लगता है|-
मैं तिरे खिलाफ़ नहीं, मगर ज़मीर इजाजत नहीं देता,
तिरे नाम का दिल में दिया मुझे शब़ भर सोने नही देता|
आँखो की नमी बयाँ करती है, जख़्मों का मिरे गहरापन,
इसीलिए अश्क़ों को मैं, आँखों में इजाजत नहीं देता|
तू चली थी मुझको गै़र बना, न देखा पीछे मुड़कर भी,
वो लम्हा मिरे कदमों को तिरे पीछे आने नहीं देता|
जिस मैसेज को तुने सीन किया, और छोड़ दिया बस ऐसे ही
वो मैसेज, इनबाक्स में तेरे मुझको आने नहीं देता|
मैनें चाहा था, मैं चाहता हूँ और चाहूँगा तुझको उम्र तलक़,
ये गुरूर तेरा, तेरे मुँह पर मुझे इश्क़ माँगने नहीं देता|
तूने ही बतलाया मुझे अपनों से ब़गावत का ये हुनर,
मैं सपने में भी किसी अपने को ऐसी ब़गावत नही देता|-
है तो रंजिशें तमाम,
लेकिन जैसी तुमसे वैसी कोई नहीं,
लड़ने का मन बहुत करता है
पर मैं लड़ नही सकता|
सोचता हूँ, कह दूँ तुमसे
कि मैं तुम्हारे प्रेम में हूँ,
पर मैं चाह कर भी तुमसे
यह कह नहीं सकता|-
हम आज कसम खा कहते है,
तेरा सर ना झुकने देंगें माँ।
चाहे मुश्किल कितनी बड़ी खड़ी,
ये कदम नहीं डिगेंगे माँ।
इक तेरे ही ख़ातिर हमने
ये जान अपनी गवानी हैं।
तीन रंगो से रंगी
इस दिल में तिरी निशानी हैं।
करता है हर जर्रा-जर्रा
माँ तुझे ही नमन,
वन्दे मातरम्।
बोलो वन्दे मातरम्।-2-
एक दिन सब धुआँ हो जाएगा,
हमारी बातें,
तुम्हारी याद,
मेरा सफ़र,
और ये चेहरें।
सब कुछ।
पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़े:)-
ग़र आओ तुम मेरी जिंदगी में तो ऐसे आना,
जैसे सुब्ह-सुब्ह सूरज का पानी में उतर जाना।
सूनसान खड़े दरख़्त में किसी चिड़िया का चहचहाना।
काली स्याह रातों में किसी तारे का टिमटिमाना।
ग़र आओ तुम मेरी जिंदगी में तो ऐसे आना।।
Full poem Read in caption:)-