Title- "जरा सोचिए"
कहाँ है मानव मैं तो अक्सर ही उसकी खोज करता हूँ,
क्या मुझको मनुष्य कहा जाए ये स्वयं से भी पूछता हूँ
ऐसा नहीं कि इस संसार में अच्छे लोगों का अकाल है,
पर क्या हम वाक़ई मनुज हैं खड़ा यह प्रश्न विकराल है।
जब देखता हूँ सर्वत्र ही असत्य अन्याय और भ्रष्टाचार,
तब ढूंढता हूँ मैं प्रायः सत्य शान्ति स्नेह और सदाचार।
आज हर व्यक्ति दिखाई देता है स्वार्थसिद्धि करते हुए,
कैसा समय है जिसमें सही आदमी रहता है डरते हुए।
माता पिता गुरु हो या नारी किसी का कोई मान नहीं,
क्यों ऐसा है मानव कि अपनी मानवता का भान नहीं।
निर्धन और निर्बल का कोई भी सहायक नहीं है यहाँ,
सामर्थ्यवान को इस युग में दोष देता भी है कोई कहाँ?
भौतिकता की अंधी दौड़ में प्रकृति की कोई चिंता नहीं,
स्वार्थी मनुष्य लालसा पाले अपने पाप भी गिनता नहीं।
आए दिन प्राकृतिक आपदा और रोगों से त्रस्त रहते हैं,
किन्तु फिर भी मानव अपनी ही दुनिया में मस्त रहते हैं।
अब भी समय है हम सभी जागकर सद्गुणों को अपनाएं,
प्रकृति से खिलवाड़ बंद कर उसकी रक्षा हेतु आगे आएँ।
मानव जो आदर्श जीवन जीते हुए प्रकृति से जुड़ जाएगा,
निश्चित रूप से वह तब सच्चे अर्थों में मानव कहलाएगा।
©drvibhav-
प्रेम..
क्या है यह प्रेम...
सृष्टि का सुंदर अनुभव.......
एक अनूठा सा रिश्ता...
एक मनमोहक बंधन.....
और भी बहुत कुछ है ये....!!
एक अनछुआ स्पर्श...
मन को भिगोता....
आत्मा को छूने वाला....
बिना किसी रिश्ते के....
दिल से दिल को.....
जोड़ने वाला मधुर संबंध....!!
पुरुष का पुरुषत्व...
नारी का नारीत्व....
बच्चे का बचपन....
इन सबको पूर्ण करता...
मानव को मानव से जोड़ता...
सचमुच अद्भुत है ये प्रेम....!!
न जाने क्यों अब ऐसा नहीं...
कहीं स्वार्थ सिद्धि का पर्याय...
तो कहीं शारीरिक आकर्षण...
कहीं धन का लालच तो कहीं...
कुछ पाने की लालसा पाले...
अब कुछ ऐसा हो रहा है प्रेम...!!
काश प्रेम की परिभाषा को...
समझ सकें हम सभी....
और मन की गहराइयों से...
बिना किसी शर्त या मतलब के..
कर सकें एक दूजे से सच्चा प्रेम..
और दें जीवन में उसे सही मायने....!!
©drvibhav-
पुलवामा के बाद....
देश के रक्षकों पर कायर की भांति वार किया,
पाक के चहेतों ने भारत-वीरों को मार दिया।
वो हुए शहीद और उनके परिवारीजन रोते हैं,
धिक्कार है उनपे जो फिर भी चैन से सोते हैं।।
राजनीति फिर शुरु हुई आरोपों का दौर चला,
चकित हूँ देखकर मैं देश मेरा किस ओर चला?
वेलेंटाइन मना रहे सब मस्त हैं अपनी मस्ती में,
लगता है कि रहते हैं हम कायरों की बस्ती में।।
बहुत हुआ अब नेता बेतुके प्रलापों को करें बन्द,
देखते ही मार दो चाहे जहाँ कहीं मिलें जयचन्द।
भारत माँ के हर लाल की हत्या का हिसाब लो,
आतंकवाद का हर हाल में मुंहतोड़ जवाब दो।।
©drvibhav-
तेरी दया के बिना इस संसार में सब कुछ असंभव है,
तेरी कृपा से ही माता बुद्धि, ज्ञान, यश और विभव है।
युगों युगों से वीणापाणि तीनों लोकों पर तेरी दृष्टि है,
तेरे ही आशीर्वाद से चलती हंस वाहिनी यह सृष्टि है।
देवों पर भी जब संकट आया बनी सहायक तब तुम,
तेरी महिमा का गुणगान करने में सक्षम कहां हैं हम?
तेरे कारण ही होता आया सदा दुर्जनों का पराभव है,
तेरी कृपा से ही माता बुद्धि, ज्ञान, यश और विभव है।
अज्ञान के अन्धकार में मानव सदा भटकता फिरता,
तेरी कृपा जो न होती तो ज्ञान का भंडार न मिलता।
न होती वाणी जगत में न सुर सरिता मनोरम बहती,
ऐसी स्थिति सुख से भला कैसे मानव जाति रहती?
तेरे आशीष से मिलता जीवन का सुखद अनुभव है,
तेरी कृपा से ही माता बुद्धि, ज्ञान, यश और विभव है।
हम सब हो जाएं प्रत्येक दुर्गुण से दूर यही वर दो माँ,
प्रेम और बंधुत्व के हर मनुष्य के हृदय में भर दो मां।
एक दूसरे के साथ मिलजुल कर रहें सदैव हम सभी,
सत्कर्म एवं सन्मार्ग से जीवन में न हों विचलित कभी।
तेरी कृपा हुई तो हो सकता माँ यह सब कुछ संभव है,
तेरी कृपा से ही माता बुद्धि, ज्ञान, यश और विभव है।
©drvibhav-
कैसी है ये दुनिया क्यों होते हैं यहाँ इतने सवाल-जवाब,
क्यों हर किसी को अजीब लगा करते हैं दूसरे के ख्वाब?
कोई किसी को दिल से चाहे तो खड़ी होती है परेशानी,
अगर किसी बेसहारा को अपना ले कोई तो भी हैरानी।
लोगों को अच्छे लगते हैं केवल दूसरों की राह में काँटे,
कोई नहीं चाहता कि किसी और को मिल जाए गुलाब।।
किसी का घर न बसे तो भी उसको यहाँ ताना सुनाते हैं,
लोग तो दोस्ती के रिश्ते पर भी अक्सर सवाल उठाते हैं।
किसी का यूँ ही खुश होना दूसरे की आँखों में चुभता है,
यहाँ बिना मतलब कोई खैरियत भी नहीं पूछता जनाब।।
प्यार और अपनापन तो जैसे बस एक सपना लगता है,
अपने हो जाते हैं पराये तो कोई गैर भी अपना लगता है।
लोग मतलब के लिए दूसरे को इस्तेमाल किया करते हैं,
अपनी कमियाँ छिपाकर औरों को बता देते हैं वो ख़राब।।
काश कि हम एक दूसरे की अहमियत को जान भी सकें,
सब एक जैसे ही नहीं हो सकते ये सच्चाई मान भी सकें।
छोड़कर हर बुराई इंसानियत की राह पे चलें अब तो हम,
दुनिया को बेहतर बनाकर आओ कमा लें थोड़ा सवाब।।
©drvibhav-
दुनिया में परेशान सब हैँ अकेले मैं और तुम नहीं,
इसलिए जो ना मिल सका उसका करो ग़म नहीं।
यहाँ कई लोग तरसते हैँ छोटी-सी खुशी के लिए,
जो तुमने पाया है ज़िंदगी में वो भी कुछ कम नहीं।
©drvibhav-
बेवक्त ही ऊपरवाले ने जिसे अपने पास बुला लिया,
अंग्रेजों ने जिसको डर से मौत की नींद सुला दिया।
जो हंसकर झूल गया फांसी पर हमारे देश के लिए,
अफसोस उस महान भगतसिंह को हमने भुला दिया।।
©drvibhav-
अब कोई भी जश्न मुझे अच्छा ही नहीं लगता,
कि इस ग़म के दौर में खुशी मनाऊँ भी तो कैसे?
©drvibhav-
यहाँ कोई अपना बनकर दगा करता है,
तो कोई दूर होकर भी वफा निभाता है l
बड़ी अजीब-सी है ये दुनिया मेरे दोस्तों,
यहाँ रोता वही है जो सबको हँसाता है l
©drvibhav-
मैं खुश रहता हूँ हजार तकलीफें सहकर भी,
क्यूंकि मेरी हंसी कई उदास चेहरों की दवा है l
©drvibhav-