व्यस्तता असंवेदनशीलता बढ़ाती है!
दुनिया कहती है व्यस्त लोग ग़मों से दूर रहते हैं।
दो लोग एक साथ एक दूसरे को नहीं भूल सकते
एक भूलता है एक रोता है।
एक जाता है छोड़कर
दूजा ताउम्र सहता है।
रिश्तों का खात्मा पहले अंदर होता है
बाहर तो केवल घोषणा की जाती है
"नहीं जम रहा, अपने अपने रास्ते चलते हैं।"
बीमार ज़ेहन दिल नहीं तोड़ते
वो तोड़ देते हैं हर यकीं की नींव।
बुलाने पर वो कभी वापस नहीं आएगा
जो रोकने पर नहीं रूकता।
व्यस्तता असंवेदनशीलता नहीं बढ़ाती;
दर्द कम करती है एक पेन किलर की तरह
और ज्यों ही दवा का असर कम हो
त्यों ही खोजनी होती है दूसरी व्यस्तता।-
है हर एक चीज मेरी सो भी नहीं मांग रहा ,
तेरा दीवाना तवज्जो भी नहीं मांग रहा ।
खैर, हक़ तो है बहुत दूर ,कि अब तो तुझसे
जो तू दे सकता है , मैं वो भी नहीं मांग रहा ।।
- वैरागी-
When I said I hope you're happy, didn't mean it
Never thought you'd be so good at moving on
When I'm lying wide awake, you're probably sleeping
And maybe what I'm thinking is wrong
I want you to cry for me, cry for me
Say you'd die for me, die for me
And if you can't, then baby, lie for me, lie for me
'Cause you haunt me when I'm dreamin'
And it's time you know the feeling
So cry for me-
कि जब जब भी किसी बच्चे की उंगली बाप के हाथों में देखूं तो
मेरे अब्बू मुझे तब तब तुम्हारी याद आती है
मुझे जब देखना होता है तुमको हाँ मेरे अब्बू
मैं ख्वाबों में नही जाता ,खलाओं में नही तकता
न ही मैं ढूंढता हूँ तुमको तारों और सितारों में
मैं उस पल मुड़ के अम्मी की ही जानिब देख लेता हूँ
मुझे तुम दीख जाते हो तुम्हे मालूम है ?
कि अब अम्मी तुम्हारी ही तरह संजीदा रहती है
तुम्हारी ही तरह घर का वो सारा बोझ ढोती है
तुम्हारी ही तरह चुपचाप सारे दर्द सहती है
किसी से कुछ नही कहती मेरे अब्बू
मैं अक्सर टूट जाता हूँ
कि जब भी दोस्त मेरे बात करते हैं
कि ऐसे हैं मेरे पापा,क़ि वैसे हैं मेरे पापा
उन्हें मैं क्या बताऊँ अब
के ऐसे 'थे' मेरे पापा,या वैसे 'थे' मेरे अब्बू
मुझे उन सारे लड़कों पे बहुत ही रश्क आता है
जो अपने बाप से अब थोड़े लम्बे हो चुके हैं
या फिर उनके बराबर हैं सुनो अब्बू
जो तुम होते तो मैं भी नापता कि कितना लम्बा हूँ
और कितना और होना है मुझे तुम तक पहुचने में
मगर सच है कि मैं तुम तक पहुच भी तो नही सकता
वो भी हाँ इसलिए क्योंकि सुना था एक दिन मैंने
कि हर इक बाप अपने आप में नायाब होता है ।
मेरे अब्बू मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है
किसी बच्चे की उँगली बाप के हाथों में देखूं तो
तो आँखें भीग जाती हैं ।-
अनजान है थोड़ी जानता हूँ
मैं खाक राह में छांटता हूँ
कुछ भावनाएं आहत की तो
मैं गलती मेरी मानता हूँ ।
हाँ गलती मैंने स्वप्न चुना
ना बात के आप की लाज रखी
पर क्या सपनों को जन्म देके
सपनों को ही मारना पाप नहीं ।।
कही ना रुका स्वयं का पहिया
ना धीमा हुआ किसी घर्षण से
अब तो पिता जी थोड़ा मुस्कुराओ
तोरा लाल आया दूरदर्शन पे ।
छवि आपकी है बस मुख में
श्लोक आप का दर्पण है ,
अब तो पिता जी थोड़ा मुस्कुराओ
तोरा लाल आया दूरदर्शन पे ।।
ओ रे पिता मैं तोसे बना हूँ
बाँह पकड़ तेरे साथ बढा हूँ ।
चाह यही तेरे सब गम ले लूं
सारी खुशी तेरे चरण संजों दूँ ,
ओ रे पिता सब तुझ पे लुटा दूँ
आन मोरे तोरी शान बढा दूँ ।।
@श्लोका
-
ओ रे पिता मैं तोसे बना हूँ ,
बाँह पकड़ तेरे साथ बढ़ा हूँ ।
चाह यही तेरे सब गम ले लूं ,
सारी खुशी तेरे चरण संजों दूँ ।।
ओ रे पिता सब तुझ पे लुटा दूँ
आन मोरे तोरी शान बढा दूँ ।।
आज बात पे बात चली
मेरे जगत के उस खुदा की
जिनकी वजह से अस्तित्व मेरा
जिसने सब जिद उठायी ।
हाँ हृदय काट के बाँट दिए
एक एक इच्छाओं के पीछे
मेरी लेखनी की औकात नहीं
कि लिख दूं उनकी खुदाई ।।
मैं जानता आपकी रज़ा
पर कोशिश तो कर रहा
अब समझे थोड़ा आप भी
मेरा जीवन मेरी कला ।
हुए सारे वारदात मेरे साथ
सपनों का बन गया अज़ाब
रोया ज़ार ज़ार मैं कितनी रात
कितने लहू जाते तोरी बात काट ।।
@श्लोका
-
मुझे नहीं मालूम तुम आने वाले प्रेमियों को बताओगी
मेरे बारे में या नहीं, लेकिन अगर बताओगी तो वो जरूर
महसूस करेंगे जलन कि उनके अलावा कोई
और भी रहा है तुम्हारे इतने करीब और मैं इसपे खुश
हो लूंगा, और अगर तुमने उन्हें ना बताया मेरे बारे में
तो मैं इसपे खुश हो लूंगा,कि तुमने उनसे छुपाई
हैं बातें,और मैं मान लूंगा कि वो नहीं है इतने काबिल
कि तुम बता सको उनसे अपना हर एक राज। सच में
मैं अब भी मानता हूँ खुद को खुशनसीब कि तुमने बांटे
अपने दुःख मेरे साथ जबकि सब बाँट रहे थे खुशियां
तुम्हारे साथ,मैं अब भी तुम्हे खुशियां देने का वादा नहीं
करता लेकिन जब कभी अपना दुख साझा करते
हुए आ जाएंगे तुम्हारी आँखों में आंसू तो उन्हें पोंछने के
लिए बढ़ जाया करेंगे मेरे हाथ । मैं तुम्हे बहुत सारे तोहफे
देने का भी वादा नहीं करता लेकिन मेरे काँधे हमेशा
खाली रहेंगे तुम्हारे सर का इंतज़ार करते हुए।मेरे हाथों
की लकीरें करेंगी इंतज़ार कि कब मिल जाएं वो तुम्हारे
हाथों की लकीरों से और बाँट लें एक दूसरे की तकदीर
या दुःख सुख।जब दुनिया भर के लोग चाहेंगे तुम्हारा
प्रेम मैं तब भी अकेला खड़ा करूँगा ये दुआ कि दुनिया
भर का प्यार तुम्हें मिले। जब दुनिया भर के
लोग तुम्हे अपना बनाना चाहेंगे, मैं तब भी इस दुनिया
की भीड़ से परे,चाहूंगा तुम्हारा होना।तुम्हे पाने की कोई
ख्वाइश नहीं रही कभी,मैं हमेशा से तुम्हारा होना चाहता
था।
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रिंदों की बस्ती में कोई अग्यार नहीं होता,
जो तुम्हें चाहे उससे कभी प्यार नहीं होता
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तुम्हें तो सिर्फ बीयर की बोतल दिखाई दे रही है
तुम्हें क्या पता कि किस जहर को काटने के लिए
इस जहर को प्रयोग में लाया जा रहा है
तुम तो उसे आवारा कहने से भी गुरेज नहीं करते
तुम्हें तो इश्क की तौहीन करने में भी लुत्फ़ आता है
तभी तो उसकी मुहब्बत को 'लड़कीबाजी 'कह देना
इतना आसान है तुम्हारे लिए
तुम्हें क्या पता कि लॉज के सन्नाटों ने कितनी चीखें पी हैं
तुम क्या जानो हॉस्टल के कमरों में कई
दिनों तक बल्ब क्यों नहीं जलता
तुम्हें तो ये भी नहीं पता होगा कि
पानी की बोतलें भरी भराई क्यों फेंकी जा रही हैं
क्या हुआ जो सोयाबीन पसंदीदा हो गयी
क्यों बनती है खिचड़ी रोज- रोज
तुम क्या जानो दीवारों पर इतनी कवितायें
क्यों लिखी जा रही हैं
क्यों कही जा रही हैं चाकू, छूरी, माचिस,
रस्सी और पंखों पर ताबड़तोड़ ग़ज़लें
तुम्हें तो ये भी नहीं पता होगा कि इतनी
कश्मकश से जूझते दिल पर
तुम्हारे एहतियातों का तंज क्या असर डालता है
तमाम सख्तियों के बावजूद वो कभी
इतना सख्त क्यों नहीं हो सका कि
फोन काटकर मोबाइल बंद कर दे
तुमने तो बस जलती हुयी सिगरेटें देखी हैं
तुम्हें क्या पता कि उस धुएँ से कहाँ कहाँ की आग बुझाई जाती है
तुम क्या जानो सीने पर हाथ रखकर क्यों सोते हैं लोग
तुम क्या जानो देवा को चन्द्र्मुखी और पारो में क्या अलग दिखाई देता था-
अकेले रहने वाले आदमी के दिमाग़ में एक साथ कितनी बातें घूमती है ?
सुबह उठ कर वो अलार्म क्यूँ बंद कर देता और फिर क्यूँ सो जाता है स्नूज़ करके ? उठते वक़्त वो तकिये में अपना मुँह क्यूँ छुपा कर पैरों से बिस्तर को नीचे की तरफ़ खींचता है ?
उठने के बाद वो क्यूँ आइना देखता है और फिर घड़ी देख कर दुखी हो जाता है , वो फ़ोन पे नोटिफ़िकेशन क्यूँ चेक करता है ? वो दस सेकंड में ब्रश कैसे कर लेता है ?
वो सुबह ब्रेकफ़ास्ट क्यूँ नहीं करता है और सिर्फ़ पानी पीकर दफ़्तर क्यूँ चला जाता है ? उसकी रात को हद से ज़्यादा पी गायी शराब क्यूँ उतर जाती है ? उसको उसकी याद क्यूँ आती है ? “जो होंठो से न कह सका
हर्फ़ वो भी तो है
जो आँखो से ना बह सका
दर्द वो भी तो है “
ये गाना किस इक्स्प्रेशन के साथ लिखा गया है ? क्या ये गाना उस अकेले आदमी के लिये लिखा गया है जो बाल्कनी में बैठ कर अख़बार तो देख रहा है लेकिन पढ़ता नहीं है ? या उस आदमी के लिये जो लाइटर से गैसचूल्हा नहीं जला पता ? “कोई जान के जान से तो गुज़रता नहीं कभी अपनी मर्ज़ी से कोई बिछड़ता नहीं “
कोई बिछड़ता नहीं , किसी को बिछड़ना नहीं चाहिये , मर जाना चाहिये ताकि आदमी कम से कम वापसी के इंतज़ार में अकेला न मरे , दिल्ली में प्लेग कब फैलेगा ?-