Vibha Mishra   (रोज🌹 ©विभामिश्रा🦋)
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Joined 19 November 2017


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Joined 19 November 2017
16 AUG 2021 AT 18:41

क्या दुआ करूँ क्या दवा करूँ,
ये मंज़र,ये कत्ले आम देखकर,
जहाँ दुआ अमन की करी थी सबने,
भारत ने भी साथ निभाया था,
संसद, स्कूल, स्टेडियम, लाइब्रेरी
आख़िर क्या क्या नहीं बनवाया था,
अब मन डर सा जाता है,
उस जगह पर तालिबान देखकर,
दिल सिहर सिहर सा जाता है,
अफगानों का ये अंजाम देखकर
आख़िर अब क्या दुआ करूँ
ये मंज़र ये कत्ले आम देखकर..

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9 MAY 2020 AT 18:10

इश्क़ दरख़्त.. सांद्र घोल
(कृपया caption में पढ़ें 🙏☺️)

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26 APR 2020 AT 18:07

दिमाग द्वन्द्व में उलझा हुआ था..
सुलझाते-सुलझाते ज़रा सी उनींदी हो उठी थी..
कि..
तभी कृष्ण आये..
मेरा दिल निकाला और रख दिया मेरे हाथों पर..❤️
आँखे खुली.. मैं स्वयं ही सुलझ चुकी थी..☺️

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2 APR 2020 AT 18:58

जिस रोज़ कविताएं सर चढ़ जाती हैं.. उस रोज़ सर पर दर्द का असर भी नहीं चढ़ पाता..
(पूरा नीचे पढ़े..☺️👇🙏)

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16 MAR 2020 AT 23:43

किस पर लिखूँ?
(बस कुछ मन की- बस यूँ ही) 👇

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29 JAN 2020 AT 23:48

हर रोज़ वक़्त के बहते हुए पानी में,
मल मल कर हाथ धोया..
नहाया..
फिर वक़्त की बिखरी हुई धूप में,
गीले बालों को सुखाया,
वक़्त के कतरों में ही
भोजन पकाया.. खाया..
सब कुछ तो वक़्त के साथ किया,
पर वक़्त के साथ ऐसे सोई,
कि वक़्त का ख़्याल भी नहीं रहा..
और अब वक़्त के खोने से रो रही थी मैं..
कोने कोने में वक़्त को ढूँढ रही हूँ मैं..
तुम्हें कहीं वक़्त मिले तो कहना
मुझे फिर से वक़्त चाहिए
पर अबके वो सिर्फ़ मेरा रहना चाहिए.
जिसे मैं अभिभूत हो कह सकूँ कि
ये है.. मेरा सिर्फ़ मेरा..
मेरा अपना वक़्त!

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26 JAN 2020 AT 20:44

सोचती हूँ,
वक़्त की तरह बीत जाऊँ मैं भी;
पर एक सवाल है,
वक़्त तो अमर है ना?
आज भी बीता,
कल भी बीतेगा,
परसों फिर नया सा बन,
बीतने की ख़ातिर आ जायेगा..
पर..
मुझे तो मौत चाहिए थी।

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12 JAN 2020 AT 15:42

बंजर मिट्टी
(Please read in caption)👇

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28 DEC 2019 AT 12:20

मेरी ही कहानी को किरदार बना कर बैठा है,
बस ज़रा सी ही तो ज़िन्दगी है मेरी,
ना जाने क्यों?
वही मुझे रोज़ का अखबार बना कर बैठा है..

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22 NOV 2019 AT 17:21

किसी ने चाहा होगा,
कि उदास आसमान जब,
रो रो कर थक जाये और,
उदासी के रंग से थोड़ा उबर जाये,
ठीक तभी..
आसमान थोड़ा रंगीन हो जाये..
तो रंग खोज कर,
बना दिया होगा उसने,
इंद्रधनुष..
एक रोज़ फिर
जब काली रातों में
चाँद छुट्टी पर होगा
या कुछ गुरुर में
चाँद बस आधा निकला होगा..
और उसी रोज़
वो सोया होगा (वही जिसने इंद्रधनुष बनाया)
खुले आसमान के नीचे
उसने फिर सोचा होगा
कि क्यों न आसमान सजाऊँ
फिर से क्यों न इसको बहलाऊँ?
और बना दिये होंगे तारे
टिमटिमाते तारे..
और सौंप दिया होगा
आसमान को..
अब उसने चाँद बिना भी,
आसमान को चमकना सीखा दिया था..


और हाँ..
अब आसमान ज्यादा दिन उदास नहीं रहता..

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