फिर घबरा न जाऊं इस ख़याल से
तन्हा न गुज़रूं इश्क-ए-रहगुज़र से
खारे बादलों से कभी होंगी पलकें भारी
सहम जाऊं न अपनी ही धड़कनों के शोर से
हाथों में लेकर हाथ मेरा संग ही रहना
सर्द रातें में भी सुकून होगा तेरे स्पर्श के अलाव से
हैं तेरी ज़रूरत मुझे ज़िन्दगी की सफ़र में
छत मेरे घर की है तेरे आंचल की छांव से
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