"घर में हैं बस छः ही लोग चार दीवारें छत और मैं"
"रात सांवली एक सहेली गोरा चिट्ठा दिन है दोस्त"
"घर में हैं बस छः ही लोग"...
"टहलने निकले तन्हां परछाईं
मैं भी उसके पीछे चलूं"
"नीले अम्बर से कागज़ पर
पंछी होकर चित्र बनूं"
"इंद्रधनुष की तिरछी डाली पर
चिपकी गीली गीली ओस"
"घर में हैं बस छः ही लोग चार दीवारें छत और मैं".....
[लेखक- अभिनेता नाना पाटेकर]-
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
चलती राहों में यूँही आँख लगी है 'फ़ाकिर'
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मशहूर कवि सुदर्शन फाकिर साहब
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जब आप ग़लत चीज़ों का
पीछा करना छोड़ देते हैं
तभी आपको सही चीज़ों को
पकड़ने का मौक़ा मिलता है..
🌅☕🌹स्नेह शील शुभ प्रभात ☕🌹🌅-
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन
[ अज़ीम शायरा परवीन शाकिर साहिबा ]
🌅☕🌹🙏सप्रेम सुप्रभात 🙏🌹☕🌅-
इक नज़र देख ले तू उधर ज़िंदगी
कैसे होती है तुझ बिन बसर ज़िंदगी
रूह से दिल से रिश्ता रहा ही नहीं
लोग जीते रहे जिस्म-भर ज़िंदगी
जो कहीं भी ठहर जाए सो और है
ऐ शजर है मुसलसल सफ़र ज़िंदगी
[ प्रख्यात राष्ट्रीय कवि श्री सन्दीप शजर जी ]
🌅🌹🙏सप्रेम शुभ दोपहरी 🌹🙏🌅
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शिखर पर कामयाबी के मुझे चढ़ना अकेले है
मुझे किरदार भी अपना यहाँ गढ़ना अकेले है
भले नन्हा दिया हूँ पर, ज़माने शुक्रिया तेरा
मुझे मालूम है अँधियार से लड़ना अकेले है [ सुप्रसिद्ध कवयित्री उर्वशी अग्रवाल "उर्वी" ]
🙏🌹 स्नेह शील शुभ प्रभात 🌹🙏-
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
न हो क़मीज़ तो पाँव से पेट ढक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए
वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बे-क़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए
[ मशहूर ओ मारूफ कवि दुष्यंत कुमार जी ]
🙏 🌹सप्रेम सुप्रभात 🌹🙏
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ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम
बच कर चले हमेशा मगर क़ाफ़िलों से हम
बरसों फ़रेब खाते रहे दूसरों से हम
अपनी समझ में आए बड़ी मुश्किलों से हम
जब भी कहा कि याद हमारी कहाँ उन्हें
पकड़े गए हैं ठीक तभी हिचकियों से हम
[ मशहूर अज़ीम शायर आलोक श्रीवास्तव जी]-
बुत की मानिंद न अपने को बनाए रखना
जिस जगह रहना वहाँ धूम मचाए रखना
तुझ को देना हो अगर ज़ुल्मत-ए-हिज्राँ को शिकस्त
शम्अ' बुझ जाए मगर दिल न बुझाए रखना
जिस से मिलती हो हर इक लहज़ा ग़ज़ल की ख़ुश्बू
सेहन-ए-एहसास में वो फूल खिलाए रखना
[ मोहतरमा मीनू बख्शी साहिबा ]
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हम उसे प्यार का तोहफ़ा भी नहीं दे सकते
मसअला ये है कि धोका भी नहीं दे सकते
दरिया-दिल वो के हमें सौंप दी ग़म की जागीर
ख़ुद-ग़रज़ हम उसे हिस्सा भी नहीं दे सकते
चाँद भी दूर इधर और हवा भी है ख़िलाफ़
हम तो उड़ता हुआ बोसा भी नहीं दे सकते
सुप्रसिद्ध कवि गीतकार श्री सन्दीप शजर जी
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