तन्हाइयां है और काली रातें...परछाइयों से करते है बातें
तुझे सोचना मेरा काम है, तू हैं सहर, तू ही शाम हैं...-
चोट, मरहम और तकलीफ...
'नफरत की आग' में ये तीनों...' सुकुन '
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या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अंकहीं-
कहानी बदलती है, किरदार याद रह रहते है..
परिस्थितियां बदल जाती है, बात रह जाते है...
अंकहीं-
सुख-दुख जैसे धूप और छाया
सुख-दुख जैसे धूप और छाया, पल-पल आता-जाता है,
सुख में कितना हँसता था, तू दुख से क्यों घबराता है।
घोर अमावस का मतलब है, कल फिर चंदा आएगा,
कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष हो, पखवाड़े का नाता है।
कितनी प्यारी लगती सबको, रामचंद्र की वह गाथा, जिसमें सुख तो नाम मात्र है, दुख संकट ही ज्यादा है।
जिसके सारे सच हों सपने, जग में ऐसा कोई नहीं, तेरा सपना टूट गया, तो क्यों इतना पछताता है।
पत्थर की यदि होती वाणी, तब तुमको बतलाता वह, कितनी पीड़ाएँ सह-सहकर, मूरत वह बन पाता है।
अंकहीं-
साहिल के सुकून से
किसे इंकार है लेकिन
वफ़ा- ईमान अपनी जगह
खुश- किस्मती अपनी जगह
तूफान से लड़ने में मजा ही कुछ और है
जिंदगी क्या है....
सफर की बात है.....
- अंकहीं-
रिश्तें एहसास से निभाए जाते है..... शर्तों पर नहीं
नफा नुकसान धंधों में देखा जाता है
किसी के लिए करना फर्ज कहलाता है....
आज के वक़्त में नेकनियतें, आला-जर्फी से कोई मुतासिर नहीं होता है...
अंकही
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नया साल है आप नए मत होना ....
आप जैसे थे.... और है वैसे ही रहना....-
रिश्तें तोड़ने और टूटने में ज्यादा वक़्त नहीं लगता....
एक ही बात दोनों में वो समझदारी और एहसास की, तो शायद ये तलाक शब्द ही नहीं होता.....
अंकहीं....
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