गलतियां जो मैने की हैं
जिंदगियां जो मैंने जी है
ख्वाहिशें जो मैने दफनाई है
वो बारिशें जो न मेरे हिस्से आई है
उन्हें मेरे हिस्से लाना है मुझे
अर्जियां जो मैने उस रब से की हैं
खुदगर्जियां जो मैने तुम सबसे की है
मनमर्जियां अब तक की जिंदगी जी है
ऐसे ही आगे भी जीते जाना है मुझे
तरीके मुझे तुमसे जानने ही नही है
सलीके मुझे ये तुम्हारे मानने ही नहीं है
बारीकी मुझे करनी नही आती आज भी
आगे भी अपनी धुन में चलते जाना है मुझे
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मेरे पास रास्ते कई थे पर
मैंने तेरे तक जाने वाली राह को चुना था
अमूबन मैं गलती करता नही हूं पर
मैने पहली दफा अपनी धड़कनों को सुना था
तूने जख्म कई दिए मेरे दिल पर
तोड़ा हर ख्वाब तेरे साथ जो बुना था
तुझे शायद रब जो मैं मान बैठा था
मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा वो गुनाह था
कभी सोचा भी नही था कि शायद
जिंदगी में देखूंगा मैं भी कभी वो मंजर
जिसे कतरा कतरा चाह रहा हूं
होगा उसी के हाथ में मेरी मौत वाला खंजर
होगा बीरान सा जहां ये सारा
होगी मेरी भी आंखें नम और रो रो कर के बंजर
बेवजह मुस्कुराता सा मेरा चेहरा
हो जाएगा एक दिन बेवजह गम का एक संजर
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भटकते भटकते थक गया अब मुसाफिर
खुद ही खुद में रहने वाली एक कैद चाहता है
कड़वाहट भरी थी उसकी जो सोच में भयंकर
छोड़ कर उसे अब वो मीठी सोच शहद चाहता है
सभी ने उसे नचाया अब तक अपने अपने हिसाब से
उन सबको दर किनार करने वाले राज भेद चाहता है
करे दुआ अब अमन की हाथ में जो लिए था खंजर
हर गुस्ताखी के लिए अब वो माफी और खेद चाहता है
जो राह में मिली थी, मुश्किलों को है मात उसने दे दी
इस लड़ाई में उसको मिली चोटें भरे ऐसा एक वैद्य चाहता है
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वो बोले करते नही क्या मुझको तुम याद
मैंने कहा मेरी कहानी में तेरे जैसा कोई नाम नहीं
वो बोले करते नही क्यो तुम मुझसे अब बात
मैने कहा मेरी जिंदगी में तेरा अब कोई काम नही
वो बोले अभी भी भटके हो या पाया मुकाम
मैने कहा हर घड़ी रोशनी है अंधेरी मेरी कोई शाम नही
वो बोले क्या अब भी हो नशे का शिकार
मैने कहा हां हूं में हरदम नशे में पर अब झलकाता जाम नही
वो बोले लिखते हो क्या अब भी फिजूल ही वो किस्से तमाम
मैने कहा जारी है बहना स्याही पर उसमें तेरी समझ का कोई काम नही
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आज भले ही चाहे किस्मत ने गालों पर जड़े चांटे हैं
जितने मिलने जिसको रब ने सबको चुन चुन कर बांटे हैं
उसने शायद छांटें हैं चंद लोग और शायद तुम भी उनका एक हिस्सा हो
कहानियां चलती जा रही है और तुम भी शायद उन में से एक किस्सा हो
रखो उम्मीद एक दिन जरूर होगी सुबह भले आज जिंदगी में काली रातें हैं
लोगो पर ध्यान न दो उनको करने दो बातें क्युकी उनकी बातें सिर्फ बातें हैं
हूं मैं नास्तिक तो शायद समझ पाता नही चाहे आज भले कि उसकी क्या रजा है
पर एक दिन हो जाएगा सब ठीक आज भले कट रही जिंदगी मेरी तुम्हारी जैसे कोई सजा है
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दर्द और गम इस कदर भरा है दिल में कि अब बताएं कैसे
कोशिश जारी है की हसी लौटे इस चेहरे पर हम मुस्कुराएं कैसे
खामोशी छाई है जिंदगी में और होठों पर अजीब सी साथ साथ
बातें मन में चल रही है लाखों अनकही सी होठों पर लाएं कैसे
रातों से नींद गायब है खुली आंखों के सपने भी हैं काले काले
कोई बताओ मुझे कि फिर जिंदगी को रंगीनियत से सजाएं कैसे
नज्में लिखी हैं किताब में वेहिसाब चुन चुन कर कई मशलों पर
पर निजी जिंदगी में मेरी जो कई मशले हैं उन्हें सुलझाएं कैसे
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आखों के नीचे हैं अब काले से घेरे
आधी रात के वक्त मेरे होते हैं सवेरे
आता घर याद जब रहूं मैं अकेला
और अनकहे से गम ने दिल पर डाल रखे डेरे
आजकल एक जिंदगी में मेरी दो जिंदगी हैं
एक है रंगीन झूठी और एक सच्ची हो चुकी है बर्बाद
दिन भर झूठा हंसता रहता हूं साथ ही
भागने के लिए फीते कसता रहता हूं होना चाहूं में आजाद
जाना चाहता था दूर पर अब होकर मजबूर
में जाना चाहूं बस एक मेरे घर
काफी ठोकरें खाली हैं जिम्मेदारी उठा ली है
और फिर लिया है मैने बहुत दरबादर
जो रिश्ते पुराने हैं कुछ जाने अंजाने हैं
उनसे करना चाहता मैं बस अब खुलकर के बात
अब मैं रोना नहीं चाहता कुछ पाना या खोना नही चाहता
बस सोना मैं चाहता हूं चैन से सुकून वाली रात
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जो अब नजरों से गिर गया हूं मैं तो पलको पर बिठाओ मत
अब रूठ गर गया हूं मैं तो यूं ही बेवजह मनाओ मत
तुम्हारी जिंदगी से मेरा अब दूर चले जाना ही बेहतर है
इस बार दूर मैं जो चला गया हूं तो मुड़ के पास फिर बुलाओ मत
हम शायद फिर से साथ होंगे ऐसा तुम्हारा एक ख्याल है पर
मेरे ख्याल से ख्याल को ख्याल ही रहने दो उन्हे ख्वाहिशें बनाओ मत
मुझे नही पसंद कि कोई कभी चाहे मुझे टूट कर
एक दिन मैं रोता छोड़ जाऊंगा तुम्हे तो इस तरह से मुझे चाहो मत
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सिद्धत से चाहा तुम्हे पर तुम चोर निकले
सुकून की तलाश थी तुमसे पर तुम शोर निकले
मेरे सपनो से भी ज्यादा खूबसूरत हो तुम भले बेशक
पर सपनो तक ठीक था हकीकत में तो तुम कुछ और निकले
करीब से जाना तो महसूस हुआ ह्रदय है काला तुम्हारा
जब तक दूर दूर से देखा था तुम दूध से भी ज्यादा गौर निकले
और वो करना बातें वफा की तुम्हारा सलीके तारीफ था
जब निभाने की बारी आई तो तुम बेवफाई का क्या दौर निकले
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तेरी जुल्फों के जाल मैं फंसता मगर
मेरे हालात हैं गंभीर मुझ पर बहुत सारी जिम्मेदारी हैं
तेरी मीठी मीठी बातों पर मैं हंसता मगर
मजबूरी में मैंने रोते रोते अपनी आधी जिंदगी गुजारी है
तेरे साथ खड़ा होकर शायद जंचता मगर
रुकने के लिए समय नही मुझे फिलहाल सफर रखना जारी है
शायद तेरा हाथ भी मैं पकड़ता मगर
तुझे क्या रोशनी दिखाता जब मेरी खुदकी भी रातें कारी हैं
तेरी दुख तकलीफें सब समझता मगर
खुद को ही सम्हाल नही पा रहा फिलहाल निजी तकलीफें भारी है
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