Vatsala Pundhir   (Vatsala pundhir)
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Joined 5 September 2020


Joined 5 September 2020
1 SEP 2022 AT 16:24

सफ़र ए मंज़िल मुसलसल जारी है ,
तलाश ए मंज़िल में हर रोज़ एक नया सबक
मिलता है,
लेकिन राह ए मंज़िल अभी भी पोशीदा हैं
दरयाफ़्त करूं भी तो किससे
शिकायत करूं भी तो किससे
हम सभी तो रांह ए मंज़िल के
मुसाफिर हैं,
तवक्को ये है के वक्त ए मुनासिब पर
मंज़िल मिल ही जाएगी।।

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22 MAY 2022 AT 1:46

लिखने को अल्फाज़ नहीं,
हर लम्हा मायूसी अता फरमाता है;
क्यों ख़ामोश है दिल की आवाज़,
चारों तरफ पसरा क्यों सन्नाटा है।।
मायूस हूं वक्त से,या ख़ुद पर गुस्सा कुछ ज़्यादा है,
इक उम्र गुज़ार ली; दरिया ए जहां में,
अदना सा इक मुकाम फिर भी न बन
पाया है।।

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22 MAR 2022 AT 1:21

यूं तो ज़िन्दगी बड़ी ख़ूबसूरत है,
मगर बेमुरव्वत इसकी फितरत है।
तूसोंच चाहे जितना अपने रूआब से,
देगी तुझे वो अपने हिसाब से,
एक तिनका भी ज़ाया न होगा तेरे कर्म का,
करेगी हिसाब तेरे हर मर्म का।
न ज़्यादा न तुझे कुछ कम मिलेगा,
बोया जो वहीं फल मिलेगा।।।

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24 JAN 2022 AT 0:37

दौड़ रहे हैं एक अरसे से, तलाश ए मंजिल में;
हर कदम पर धड़कने बदस्तूर
उम्मीद बढ़ाती जाती हैं।
लगता है जब के अब फासले नहीं है
हमारे और मंज़िल के दरमियां;
ऐ ख़ुदा ये तो एक क़दम और आगे खिसक जाती है ‌
है आरज़ू के छूलूं झट से निशान ए मंज़िल को
पर बेबस हूं करूं तो क्या करूं, वो इतरा कर
आगे और आगे चली जाती है।।।

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18 JAN 2022 AT 22:21

मज़मून दिल का अपने बयां कर न सके,
इज़हार ए मोहब्बत करने की जुर्रत न थी।
तो खता क्या, दिलबर की हमारे,
जो ग़ैरों से उसने दिल्लगी कर ली।।।😍❤️

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18 JAN 2022 AT 18:51

मुसलसल चलता ये ज़िन्दगी का सफ़र,....
कब थम जाए क्या मालूम,
मुसलसल चलता ये ज़िन्दगी का.........
दर ए ख़ुदा से पैग़ाम कब आजाए क्या मालूम,।
दर ए ख़ुदा से पैग़ाम.....
जी ले ख़ुशी से,ना कर शिकायत ज़िन्दगी से ।।
बेमुरव्वत बड़ा है दिन क़यामत का...,
दस्तक किस रोज़ दे जाए, क्या मालूम...।
दस्तक किस रोज़.......।


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18 JAN 2022 AT 17:27

अरसा गुज़र गया बड़ा लम्बा,
कोई नज़्म तसव्वुर न हुई । यूं तो ज़हन में ख्यालों
का ज़लज़ला खौलता सा रहता है,
पर वक्त ए मुनासिब में लिखने की
सोंची तो कम्बख्त, बेवफा यार सा दग़ा दे
गया।।।

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17 APR 2021 AT 18:54

उनके इन्तज़ार में बैठे हैं पलकें बिछाए,
आमद का उनकी कोई इशारा न हुआ ।
डरते हैं कि जब वो आएं,पलकें हमारी कहीं
बन्द न हो जाएं। तमन्ना उनके दीदार
की मेरे दिल में न रह जाए।ऐ ख़ुदा उम्र आता
फर्मा इतनी कि दीदार ए यार कर सकूं,
उनकी आमद का हर लम्हा जी
भर के जी सकूं।।।

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10 APR 2021 AT 22:54

ख़तो किताबत मुझे आती नहीं
लफ्ज़ों अल्फाजो़ का इल्म कुछ
कच्चा पक्का सा है,लिख लेती हूं अदने से
कल्मे कुछ, कलमोएस्याही से
यूं ही दोस्तों ने कह दिया की
शायरी बन गई।।

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8 APR 2021 AT 0:31

अज़्म ए ज़ीन्दगी समझ ले ,
इल्म रिश्तों का,
जज़्ब अपनी रूह में करले।।
कद्र करना सीख ऐ इंसा,
मुकद्दस प्यार की,ना दिखा बेरुखी अपनों से
न कर रुसुआ रिश्तों को।
कर फरेब अपनों से,पर सोंच ज़रा
कि दर ए खुदा पर,
क्या सजदे का तू हक़दार होगा।।।


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