Vatsal Darji  
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Joined 14 October 2017


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Joined 14 October 2017
30 NOV 2024 AT 12:18

"देखता हू"

जैसे किसी दुश्मन को देखता हू
मैं अपनी किस्तम को देखता हू

मैं भी अपने दिल के अंदर जाक लेता हूँ
वहा दफन ख्वाहिशों का मकबरा देखता हू

दफ्तर से लौट के टूटे फूटे मकान मैं
आईने मैं अपनी भी वही हालत देखता हू

प्लेटफॉर्म और पटरियां हट चुकी है
अभी भी जहां मैं रेल की राह देखता हू

पता है पेड़ ये सुख गए है मगर 
फिर भी हर रंग भर के देखता हू

वैसे तो प्यार नहीं मिलता प्यार के बदले 
चलो एक और बार कोशिश करके देखता हू

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21 JAN 2024 AT 16:54

"नही आती"

उसे शिकायत आशिकी हमे नही आती,
जी लेकिन चाय तो उसे बनानी नही आती ।

खुदकुशी का ख्याल तो नही,
पर अफसोस ये भी के कयामत नही आती ।

इतवार को ही दिखता हूं में उसे,
बाकी दिन शाम मुझे मिलने नही आती ।

उसकी एक ही बात से मान जाऊं मैं,
पर उसे वही एक बात नही आती ।

अपने यार के तौफे दिखाता है हर बार प्यार से,
उसे मेरे चेहरे पर नाराजगी नजर नहीं आती।

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7 APR 2023 AT 21:24

"कम होते जा रहे है"

रिवाज़ ये आम दुनिया के मंजूर होते जा रहे है,
मेरी तनख्वाह तो बढ़ रही है, पर मेरे ख्वाब कम होते जा रहे है ।

बारिश धूप ठंड यहा बेमौसमी होते जा रहे है,
हमारे गांव में मकान तो बन रहे है, पर यहां पेड़ कम होते जा रहे है ।

कुछ दोस्तो से मुलाकात होती है काफी से अब कम होते जा रही है,
हर बात पर हस लिया जो करता था, वैसी मेरी करामते कम होते जा रही है ।

तुझे लगता है दूर रहकर दूरी के गम कम होते जा रहे है,
तुझे देखकर ही लिखता हू, मिला कर मुझे, मेरे शेर कम होते जा रहे है ।

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22 DEC 2022 AT 19:44

"हिसाब कर दे"

वो जो बेहिसाब था ना, उसका आज हिसाब कर दे,
मेरे गवाएं जवानी के दिनों का हिसाब कर दे ।

कुछ खत जो भेजे थे तूझे, वो वापिस कर दे,
उन बेजवाबी खतो का हिसाब कर दे ।

जो लिखी , तेरे लिए ही लिखी गई,
तेरे लिए रसहीन रही उन शायरिओ का हिसाब कर दे ।

तेरे साथ ही रेहना है मुझे, तेरे साथ ही रहूंगी मैं,
वो जूठी आश, उन जूठे वादों का हिसाब कर दे ।

बाते लंबी होती थी, राते छोटी होती थी,
उन जागी रातों का, उन सोये सपनो का हिसाब कर दे ।

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9 OCT 2022 AT 13:15

"क्यों नही हो रहा"

हसरतों के आसमां पे इसका सफ़र तय क्यों नहीं हो रहा,
पिंजरे से निकलने पर भी ये परिंदा आज़ाद क्यों नही हो रहा ।

सुख गए है पैड बगीचे के जहा हम तुम मिला करते थे,
अब बारिश में भी वो दरख़्त हरा क्यों नही हो रहा ।

पता नही तूने ये क्या करके छोड़ा है हमे,
कोशिश करने पर भी में किसी और का क्यों नही हो रहा ।

मुझे कुछ सिकायते करनी है खुद से,
मेरा कभी खुद से राब्ता क्यों नही हो रहा ।

उसे भी होती मोहब्बत तो वो भी परेशान होता,
में तो हो चुका पर वो बेरंग क्यों नही हो रहा ।

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24 JUL 2022 AT 23:31

"निकला है"

फिर एक इतवार के बाद सूरज निकला है
कोई मजदूर गमछा तो कोई टाई पहेनके निकला है ।

ये तो लोगो ने वाह वाही दी है बोलने पर
वरना मेरे मुंह से तो मेरा गम ही निकला है ।

वैसे तो स्कूल से जानते है लोग हमारे बारे में ,
मेरी तरफ ही देखते सब जब जब किताब में कही तुम्हारा नाम निकला है ।

एक ही सख्स से तुम्हारा मिलना हमे पसंद नही था
और देखू तो वो आज फिर तुम्हारे घर से निकला है ।

कुछ और साल तो लगेंगे ही हमे,
यूही थोड़ी कोई किसीके दिल-ओ-दिमाग़ से निकला है ।

तुम्हारी सहेली ने बताया मिलना है तुम्हे,
क्या हुआ, फिर कोई हमारा काम निकला है ।

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18 JUN 2022 AT 19:08

"मुलाकातें बढ़े"

कुछ उसने चाहा दूरियां बढ़े
कुछ हमने चाहा मुलाकातें बढ़े ।

बस खबर रखना हमे तू जहा जाए ताकि,
इत्तेफ़ाक से होती हमारी मुलाकातें बढ़े ।

तेरा दूर जाना ठीक नही रहा हमारे लिए,
जो भरने थे जख्म वो और भी ज्यादा बढ़े ।

इतनी बेशकीमती चमक उस चेहरे की,
देखने पे दुआ निकले की काश अब मेरी हैसियत बढ़े ।

सुनके मुझे तेरे बारे में पूछते है लोग,
और मुझे लगा मेरे चाहने वाले बढ़े ।

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8 MAY 2022 AT 22:49

"शायद"

पैर तेरे चल पड़े मेरी तरफ शायद,
मेरी नही, तेरी मर्जी से एक मुलाकात हो शायद ।

शायरी से तो तेरा ये गम कम ना होगा,
अय्याशी का हुनर अब सिख ले हम शायद ।

तारों ने ख्वायिशे मांगी यहां देख कर,
धरती पर कोई इंसान टूटा होगा शायद ।

साथ दोस्त ने कहा वो तुझे देखता तक नही,
मैने कहा उसे उसकी नजर नही पड़ी होगी शायद ।

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21 APR 2022 AT 22:24

"रोज़ आता है"

ऊंचाई पर उड़कर ज़मीन पर रोज आता है,
एक परिंदा मेरी खिड़की पर रोज आता है ।

तु दिखा आज रास्ते में मुझे शायद,
वैसे ये ख्वाब तो मुझे रोज आता है ।

कुछ बच्चे खिलौनों की जिद में खाना नही खाते,
खिलौने बेचने वाले बच्चों के सपनो में खाना रोज आता है ।

यूं तो बाते मोहब्बत की लिखता बोहत हूं,
बोल नही पाता जब तू सामने आता है ।

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23 FEB 2022 AT 19:54

"मिले है"
खुशी से ज्यादा गम तो हरेक को मिले है,
खैरात क्यों नहीं करता अगर तुझे कम मिले है ।

पलको को मालूम आंखो के इशारे सारे,
झपकी नही ये जब जब हम मिले है ।

उसके झुमके उसकी पायल को पता है हमारी मुलाकातों का,
की हम इतने दिनों में कितना कम मिले है ।

आखरी बार कल मुलाकात हुई थी,
बस ऐसे जैसे दो अजनबी मिले है ।

में तो निकाल नही पाता दिल से किसीको,
पता नही ये ऐब तुझे कहा से मिले है ।

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