vasundhara pandey  
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Joined 25 February 2019


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3 HOURS AGO

सुना है उनके शहर में दिवाली चल रही है

जानिब उन्हें रब उम्र बख़्शे
हमारी तो उनके सहारे कट रही है

✍🏻वसुन्धरा पाण्डेय

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18 SEP AT 22:10

अगर उसने बाल संवरना छोड़ दिया है
तो समझ जाओ तुम्हें बदलने की ज़रूरत है!

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11 SEP AT 18:57

तुम्हारे बिन हमें दीवारें काटने को दौड़ती हैं
तुम जो इक पल दूर होते हो ये सांसें बोझ लगतीं हैं

और तुम सोचते हो हम जबरन तुम्हें नियंत्रण में रखते हैं
नहीं हम बस हमारी साँसें तुम्हारे संग बुलाते हैं
अपना सुकून तुम्हारे वक्ष पर पाने को मरते हैं

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22 AUG AT 16:17

मेरी सुन्दरता देखनी है तो मेरे पति की बेफिक्री और बचपने में देखो
मेरे बच्चे के खिलखिलाते हुए खुले लहजे को देखो
मेरी सास के चमचमाते श्रृंगार में देखो
शारीरिक सौंदर्य तो बाज़ार में भी भरा पड़ा है !

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20 AUG AT 17:02

मैं ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की तरह जीना चाह रही थी
तकलीफ़ थी कबीले को ये गाय क्यों नहीं हो रही !

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6 AUG AT 14:39

अच्छा बताओ शिकायत तो होगी ना तुम्हें उस से…

हम्म्म, क्या फ़र्क़ पड़ता है…

कितना और चल पाओगी साथ उसके ?

जब तक उसका सब संभल नहीं जाता!

फिर?

ख़ुद से प्यार करूँगी , ख़ुद के लिए जियूँगी, ख़ुद से ख़ुद का रिश्ता जोड़ूँगी !

और वो ?

भूल जाऊँगी कोई है मेरा और क्या! 🙂

भूल पाओगी!

हाँ दो रोटी थोड़ा सा अचार और चाहिए ही क्या जीने को !

आज मेरी समझ से बाहर हो प्रिया!

और तुम्हारे सवालों के जवाब मेरे मन:स्थिति से बाहर हैं प्रिय…!

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17 JUN AT 0:26

मानना चाहती हूँ कि वो हसीन ही नहीं हसरत भी है मेरी
पर क्या मेरी हसरतों में कभी तन्हा हो सकती थी ज़िन्दगी !

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8 MAR AT 15:27

Happy women's day!

एक स्त्री अगर एक स्त्री को संभाल ले तो स्त्रीत्व को किसी एक दिन जरूरत ही नहीं रह जाएगी
संपूर्ण धरा पर "यत्र नारयस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता "
सिखाना ही नहीं पड़ेगा!

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7 MAR AT 15:51

कैसी हो?

मुस्कुरा रही हूं!

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30 NOV 2024 AT 18:18

जीवित होने का ढोंग करते करते थक रही थी एक मृतात्मा!

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