तुम्हें हक़ नहीं है रोने का उसके लिए जो खो चुके हो तुम,
तुमने उसे खोने से पहले 'ठीक से' सम्भाला ही कब था?
अब खोने के ठीक बाद याद आती हैं वो सारी बातें,
जो खोने से ठीक पहले तक हम याद करना नहीं चाहते
और एक बात बोलूँ, चीज़ें कभी खोती नहीं है,
बस चली जाती हैं, एक ऐसी जगह
जहां तुम उन्हें खो नहीं सकते...
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