भेजी हुई दुवाओ का लौट के आना सुना है
हमने सोने का खोना "बुरा होना सुना है"
अब जो खो गये हो
तो लौट के न आओगे
हमने दिए का "अकेले बुझना सुना है"
सुना है हमने अब बड़े गुलाबी है
आपके शहर के मौसम
ये ऋतुएं क्षणिक है "हमने मुसाफ़िरो से सुना है"
अखरी क्षण भी इतने बेरहम न बनो तुम
हमने जनाजे का भी "फूलो से सजाना सुना है"
हमेशा से इतने शांत नही थे शोर
हमने स्थिर रहना "बड़ा होना सुना है"
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take a deep breath
smile and start again……!
वो जाना पहचाना सा चेहरा
भुला नही मैं रातें कितनी गई…
वो मेरे दूर जाने से सहम जाना तेरा
भुला नही मैं रुत कितनी गई
गुस्से मे नाक का ख़ुद-ब-ख़ुद लाल पड़ जाना
भुला नही मैं पल कितने गए
यू धीरे धीरे तेरा मुझे भूल जाना
भुला नही मैं जाना तेरा……-
दूवाओ में भी मिल पाना मुमकिन नही उनका
बिछड़ जाना जिनका नामुमकिन सा लगता था!
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कुछ तुमसे सिखा है, कुछ तुमको सिखा रहे है
तुमसे सिखी हुई चीजे,तुम पे ही अजमा रहे है
शिकस्त खाई है रिश्ते मे,अब मतलब से रिश्ता निभा रहे है
थे नही हम जैसे,वैसे बने जा रहे है
तुमको ही याद करके हम, तुमको भूलना चाह रहे है
कैसी है ये टीस मन की
ना छिपा पा रहे है; ना दिखा पा रहे है
अब हमे है समझाना की, हम दूर जा रहे है
भरी दुपहरी में जैसे, तारे टिमटमा रहे है
वैसे ही हम; हमारे गम सांझ से छुपा रहे है
देखने भर से तुमको
कविताएं बन जाती है हमारी
तुमको बिन बताए तुम्हे
लिखे जा रहे है …
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सबके पास है उनके हिस्से की दलील
अब देखना बस ये है ;
तुम तुम्हारे दलील से बचा लेती हो
या हम हमारी दलील के साथ डूब जाते है …
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क्या मैं मनाए जाने के काबिल नही था;
देखा है तुमको सही होने पे भी
मानते हुए लोगो को
पूछने पे बोलते हो
देखा है किसी अपने को मानते हुए
अपने है कहा ही जाएंगे
लौट के घर ही आयेंगे
मुझे खास बोलते हो
क्या मैं उस किरदार के काबिल नही रहा
मुबारक हो तुम्हे तुम्हारे घरौंदे की खुशियां
हमे हमारी बस्ती के गम काफी है
हर बार अपने भी नही आया करते लौट के
हा रह जाता है कुछ खाली सा उनके दिल
फिर से आपको किसी और को मनाता देख
हस लेते है ख़ुद पर
और पूछते है खुद से
क्या इतना ही अपना था मैं ………-
खामोशियां हमारी इतनी ख़ामोश कहा थी
ये अलग बात है तुम सुनने नही आए
रातों में हमारे सपने तो थे
वो अलग बात हैं तुम वहां भी नही आए
यू बेकरार बस हम कहा थे
वो अलग बात हैं तुम जाहिर करने नही आए
बे_शक सारी गलती हमारी थी
इकरार भी किया हमने तुम सुनने नही आए
अब हाल यहां आ पहुंचा हैं
खो गए हो तुम
और हम भी खुद्दार इतने तुम्हारे पीछे नही आए....
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अंखियों के मुस्कुराने से
क्या फ़र्क पड़ता हैं दूर जाने से
छुपाने वाले छुपा लेते है गम_ए _जुदाई
जाने वाले निशा भी मिटा जाते हैं
उनके रुसवाई के
कोई कब तक ढोएगा उल्फत_ए_बेकरारी का बोझ
डाली फिर से झुक ही जाती हैं बहार आने से
यू बेवफ़ा ना कह देना हमे जमने के सामने
हमने भी सुनाए हैं किस्से हमारे फसाने के
दिल में एक निशा हमेशा रहेगा तुम्हारा
लेकिन वो भी भरता जायेगा किसी और के आने से
हम भी यक-ब-यक कहा बदले
दिखाना पड़ा खुद को ऐसा आपके जाने से…!-