कुछ रिश्ते बनते हैं प्यार में नादानी में
और वाकी बनते हैं दौलत के पानी में
जो लडकियाँ बिना मर्जी के ब्याही जाती हैं
उनके दर्द को कहते हैं कौन समझेगा
जिन लडकों को उठानी है जिम्मेदारी घर की
उनके मन की कहते हैं कौन समझेगा
जिन रिश्तों को निभाया जाता है मजबूरी में
पास होते हैं लेकिन होते हैं बहुत दूरी में
वो लडकी जो उस समय चुप थी आज भी मौन है
उस लडके के ख्वाब व्यस्नेश पूछता कौन है
यही दुनिया का सच और यही रीत है
शायद हक के लिए लडना जिंदगी का गीत है
तुम्हें लडना नहीं है जमाने से न उसके इशारों से
तुम्हें तो लडना है अपनों से और उनके अंदर के किरदारों से
इस लडाई में जीत कर तू कौन हो जायेगा
अंत में जीत कर हार कर तू हर हालत में मौन हो जायेगा
क्योंकि तेरे जीने का तरीका लिख दिया था किसी ने किसी जमाने में
बहुत मेहनत और अच्छी खासी तकदीर लगेगी उस लकीर को मिटाने में
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