@Vartika Singhal   (Vidhi)
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Joined 10 April 2018


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11 JUN 2022 AT 23:33

अब सपने नहीं देखे जाते


बहुत सारे सपनों में से एक पूरा हो जाए,
तो उस रात अपने आप ही आ जाता है एक नया सपना।
पर जब एक एक कर सब ही टूट जाएं,
तो, सपना भी हिम्मत नहीं जुटा पाता, आँखों में उतर जाने को।

दूसरों के सपनों को आँखो में भर,
देख लिए जाते हैं फिर सपने।
उन टूटे सपनों वाली आँखों में।
कभी किसी रात पानी बन आँखों से बाहर आते सपने।
जैसे कह रहे हों,
हाथ पकड़ कर कस लो,
मैं फिर आऊंगा,
जब तुम पूरा कर सको तब तक मैं रोज़ ऐसे ही,
कभी किसी रात, आऊंगा

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9 JUN 2022 AT 16:05

आमदनी का शून्य हो जाना

इंसान का सबसे बड़ा डर क्या है?
मर जाना?
या,
किसी चाहने वाले को खो देना?
सोच के जब देखा तो पाया,
"आमदनी का शून्य हो जाना"
यही सबसे बड़ा डर है।

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23 MAR 2022 AT 21:49



जो रात में टूटे कहीं के ताले तो,
पुलिस ने उसको ही पकड़ा है।
शक के घेरे में है तू यहीं बैठे कह के,
रात भर उसकी कमर और बाजुओं को तोडा है।
मजदूर है वो चोर नहीं है,
क्यों शक उनपर जाता है?
क्या गंदे कपड़े और काले हाथ ही,
एक मापदंड केहलाता है?

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9 MAR 2022 AT 0:07

वार चल रहा है,
आवाज़े आ रही हैं, कहीं से बंदूक की,
कहीं से बम की विस्फोट की।
चीख की चिल्लाने की।
और सैनिकों के ठोस जूतों की;
एक टुकड़ी जा रही हैं,
ऊँचे कद के, फौलाद से सैनिकों की।
पर सम्मान में सर नहीं झुक रहे हैं।

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9 MAR 2022 AT 0:05

वार चल रहा है,
आवाज़े आ रही हैं, कहीं से बंदूक की,
कहीं से बम की विस्फोट की।
चीख की चिल्लाने की।
और सैनिकों के ठोस जूतों की;
एक टुकड़ी जा रही हैं,
ऊँचे कद के, फौलाद से सैनिकों की।
पर सम्मान में सर नहीं झुक रहे हैं।

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8 MAR 2022 AT 10:25

स्त्री
मैं स्त्री हूँ।
तो क्या हुआ मुझे आज़ादी पसंद है।
तो क्या हुआ मेरे अपने कुछ सपने हैं।

हाँ मैं स्त्री हूँ,
मुझे श्रृंगार पसन्द है,
पर आज़ादी भी पसंद है।
मुझे मेरा घर मेरा पुरा संसार लगता है।
पर स्वतंत्रता मुझे भी बहुत प्यारी है।।

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8 FEB 2022 AT 21:14

आज तुमसे एक बात करनी है,
ये मेरी जिंदगी तुम्हारे नाम करनी है।
मैं जो न कह पाऊँ कभी,
आज बैठ कर वो बात करनी है।
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5 FEB 2022 AT 23:01

मेरा घर,
किसी चार दीवारी मे सिमटी
सिर्फ़ एक प्रोपर्टी नहीं है।

मेरे घर की कीमत,
उसकी size और उसका furniture नहीं है।
मेरा घर मेरा बुजुर्ग है,
जिसने देखा है, मेरे पिता के बचपन से लेकर ,
मेरी बेटी के बचपन तक का सफ़र।

(अनुशीर्षक में पढ़ें) — % &

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31 JAN 2022 AT 22:57

मेरे हर दिन की शुरुआत,
और अंत तुमसे है।
तुम जानते हो, मैं नास्तिक हूँ,
पर तुम वो ग्रंथ हो,
जिसे मैं रोज़ एक नए तरीके से पढ़ना चाहती हूँ।
सिखाते हो रोज़ तुम एक नया पाठ मुझे,
और मै फिर वही गलती दोहराती हूँ।
मुझे पहले से ज्यादा और सुधारने के लिए,
तुम्हारा होना ज़रूरी है।
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31 JAN 2022 AT 22:47

मेरे हर दिन की शुरुआत,
और अंत तुमसे है।
तुम जानते हो, मैं नास्तिक हूँ,
पर तुम वो ग्रंथ हो,
जिसे मैं रोज़ एक नए तरीके से पढ़ना चाहती हूँ।
सिखाते हो रोज़ तुम एक नया पाठ मुझे,
और मै फिर वही गलती दोहराती हूँ।
मुझे पहले से ज्यादा और सुधारने के लिए,
तुम्हारा होना ज़रूरी है।
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