हो पछतावा तुम्हें, तुम्हारे फैसलों पर,
इतना काबिल करूँगी अपने आप को...-
(true perfection has to be imperfect)
अब प्यार नहीं रहा तुझ पर ऐतबार नहीं रहा,
जा ऐ झूठे सनम, मुझे तेरे लौट आने का अब इंतज़ार नहीं रहा।
तेरा किया हर वादा भूल गई,
तुझसे जो किया वादा मैंने वो भी भूल गई।
साथ जिन रास्तों पर हाथ थामा था कभी,
अब उन रास्तों के लिए गुमनाम मैं हो गई।
जो सितम तूने ढाए वो कबूल कर गई,
तेरी वसीयत से जो जलालत तूने मेरे नाम की मैं वो भी झेल गई।
हर किसी की उठती उंगलियों का सबब बन गई,
और तेरा नाम बदनाम किए बिना उस उठते कीचड़ को पवित्र कर गई।
क्या बताएं क्या क्या झेला तेरे प्यार में,
जो अब प्यार किया तो लानत होगी इस शब्द प्यार पे।
ना रहा दिल मेरा ना रहा दिमाग भी,
तुझे भूलने में इतनी मेहनत की ना बचा मेरा ईमान भी।
दी जो वफ़ा तुझे उससे खुद से मैंने बेवफाई की,
ना मिला सुकून कहीं और ना मिला ज़हर सही,
मेरे सनम, तूने ऐसी मुझे रिहाई दी।
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साधारण सी सोच मेरी,असाधारण किस्सो से जुड़ी हुई
जितनी सादी फितरत मेरी,उतनी ही उलझनों से मैं घिरी हुई।
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हम शायद तब बड़े नहीं होते जब अपने तकलीफ के बारे में बात करना बंद कर के आगे बढ़ने का फैसला करते हैं... तब भी बड़े नहीं होते जब खुद की तकलीफ से पहले हम दूसरों की तकलीफ को रखते हैं... या खुद की तकलीफ को इस तरह छुपाना सीख लेते हैं कि ये सब करते-करते एक दिन हम अपने ही दुख पर हँसना शुरू कर देते हैं... उस पर दुखी होने के बजाय मजाक बनाना शुरू कर देते हैं... शायद तब हम बड़े हो जाते हैं... शायद तब हम सही मायने में आगे बढ़ चुके होते हैं...
मेरे हिसाब से इसके बीच का जो भी सफर हम तय करते हैं, वो सब बड़ा ही खोखला होता है... जिस दिन हम अपने तकलीफ पर हँस देते हैं, उस दिन से ही हम बड़े हो जाते हैं... और फिर शायद कभी उस बचपने में लौट नहीं पाते या शायद लौटना ही नहीं चाहते... कभी-कभी जिंदगी में आगे बढ़ना ऐसा ही होता है...-
जीवन में अगर सब सबक ही सिखाएंगे,
तो प्यार कौन जताएगा?
बनते रिश्ते यूँ टूट जाएंगे,
तो मकान को घर कौन बनाएगा?
उलझी हुई जिंदगी में सब उलझ ही जाएंगे,
तो प्रेमिका की लटें कौन सुलझाएगा?
कतरा कतरा जो जिंदादिली बचा रखी है,
जब जिंदगी ही नहीं बचेगी तो उस पर अटखेलियां कौन लगाएगा?
कमी की खदान में सफेद पोशाक पहने अगर लोग जाएंगे,
तो खून के कुछ छींटे लाजमी हैं उन पर भी आएंगे।
सब बेहतर ही तलाश करने जाएंगे,
तो बेहतरीन को कैसे संजो पाएंगे?
शीशे में बंद गुड़ियां की तलाश है जिन्हें,
जो शीशा टूट गया एक दिन तो उसकी किरचनें क्या संभाल पाएंगे?
अधूरा जो रह गया वो छोड़कर कुछ नया शुरू करने की हिम्मत कैसे जुटाएंगे?
जीवन में अगर सब सबक ही सिखाएंगे,
तो जीवन भर का साथ कैसे पाएंगे?
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एक दिन आपको वही खामोशी महसूस होगी जो आपने किसी ऐसे व्यक्ति को दी थी जिसे सिर्फ़ आपकी आवाज़ कि चाहता थी...
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How I changed in the last 6 months...
And "Changed " means "Changed"
"One day it all crashes...And the next day I start building again."
Learned in a bitter way but this changed me in a better way.
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you can't feed me crumbs of love and disappear, assuming I am a fool who'll stick to your trap...honey, If you show me once you are busy I would understand, if you show me that twice I would still understand but if this becomes the pattern trust me I am long gone emotionally from your life ..even before you realize....so if you want me in your life show me that urge, that respect, that dedication, show me that dire desire of yours to keep me in your life..coz anything less would lead me to leave your way....I am not a bare minimum accepting women...coz what I serve is full of dedication so if you want me...earn me...Be a man or let me go.
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दुनिया हमारा आधा-पौना रूप देखकर सोचती है कि वो हमें बेहतर जानती है, मेहनत से पाल-पोसकर बड़ा करने वाले घरवाले सोचते हैं कि वो हमें सबसे बेहतर जानते हैं, साथ बैठा चाय पर चुस्की लेने वाला दोस्त को लगता है कि वो हमारे सब राज़ जानता है, इसलिए दुनिया और घरवालों से भी ज़्यादा बेहतर वो हमें जानता है, सफर के भागीदार हमसफ़र को भी लगता है कि वो हमें इन सबसे बेहतर जानता है। जिन भी रिश्तों का नाम नहीं लिया, शायद वो सभी कहीं न कहीं अपनी दुनिया में हमें बेहतर जानते हैं। किसी और को जानने से पहले या किसी और के जान लेने से पहले, हम हमारी एक ही दुनिया में अनगिनत दुनिया बनाए हुए हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या हम खुद को बेहतर जानते हैं?
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"When life's carefully crafted facade crumbles, and everything slips through one's grasp, the line between the living and the dead blurs. Like a fish struggling in shallow waters, once promising freedom, now trapped in its own turmoil, suffocating in the very depths it once called home."
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