Varsha Jaiswal   (Varsha Jaiswal)
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Joined 28 February 2019


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Joined 28 February 2019
29 MAR AT 0:20

मन‌ कि ख़ोज तलाशो में
आवाजें बस तन‌ तक
कितना ख़ोजो घुटन बस
नैन निर भरें और मन दर्पण में
दर्पण सच और हम झूठ सही...

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23 SEP 2024 AT 22:47

कितने ही स्याह बिखरें
हर शब्द पिरो जाता है
मन के शब्द बिखर जाते है
और सारे भाव उमड़ जाते हैं
पिडा़ मन का हो या तन का
सारे भाव सिमट आते हैं।



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5 JUL 2024 AT 23:24

कभी कभी जिम्मेदारी इतनी होती है
कि शौक़ कहीं खो जाते हैं।

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25 MAY 2024 AT 8:00

भिड़ बहुत थी बाज़ार में
शाम हो आई थी हवाओं में
साथ चल रहे हम निकल आए थे
उन भिड़ से
बस हाथ टकरा गया
कांच के भरे हुए चुड़ी के ठेले से
खन-खन सी आवाज हों आईं
मुझे वो लाल कांच कि चुड़ी बहुत भाए
और वो हाथ पकड़ मेरा दुर लें आए
नज़र वहीं रह गया
और मन उनके साथ चला गया
सुनी सी कलाई रह गई
और भिड़ और हो गया।

-Varsha Jaiswal

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15 APR 2024 AT 23:51

कभी कभी बोलने वाले इंसान भी ख़ामोश हो जाते हैं
क्योंकि सुनने वाले अक्सर कहीं खो जाते हैं किसी भिड़ में!

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27 OCT 2022 AT 23:41

भर जाता है दिल
बातों कि गहराई से
ऊब जाता है मन
सौ सवालों से
खो जाता है सब
यूं बेख्याली में
कि खो जाता है मन
सारे जज़्बातो से
यूं ही भर जाता है दिल।



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26 OCT 2022 AT 22:45

विश्वास रहता है
झिलमिल सी आंखों में आस रहता है
मीठे से मन का शोर रहता है
दिल के एक कोने में
आईना सा दिखता है।.

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25 OCT 2022 AT 15:22

बह गया कहीं ओर
था एक रिश्ता उससे
कुछ खट्टे मीठे से
कुछ खाली पन्ने सा
था वो मुझमें कुछ स्याह सा
कुछ तो था नाता उससे
पर ठहरा न था कुछ भी
ठहरा नहीं मुझमें वो

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2 SEP 2022 AT 19:32

समन्दर सी गहराई हो
उम्मीद कि नांव पर
मन कि चंचलता से
बीच की मझधार में
उठती तुफानों में
सागर के रस्ते लहरें हो
मंजिल किनारा हो
देखो तो बसेरा कैसा हो

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1 SEP 2022 AT 19:49

शायद ये इश्क़ अब साझा न होगा
शायद तुम सा कोई अब प्यारा न होगा
ये ख़ुमारी अब दुबारा न होगा
कोई तुम सा हो ऐसा कोई सिंतारा न होगा
शायद ये इश्क़ अब साझा न होगा
कोई तुम सा अब हमारा न होगा

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