मन कि ख़ोज तलाशो में
आवाजें बस तन तक
कितना ख़ोजो घुटन बस
नैन निर भरें और मन दर्पण में
दर्पण सच और हम झूठ सही...-
जरूरी नहीं तुझसे हर चीज़ मिलें
ऐ जिन्दगी
तुझे पाकर ही खुश हैं
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कितने ही स्याह बिखरें
हर शब्द पिरो जाता है
मन के शब्द बिखर जाते है
और सारे भाव उमड़ जाते हैं
पिडा़ मन का हो या तन का
सारे भाव सिमट आते हैं।
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भिड़ बहुत थी बाज़ार में
शाम हो आई थी हवाओं में
साथ चल रहे हम निकल आए थे
उन भिड़ से
बस हाथ टकरा गया
कांच के भरे हुए चुड़ी के ठेले से
खन-खन सी आवाज हों आईं
मुझे वो लाल कांच कि चुड़ी बहुत भाए
और वो हाथ पकड़ मेरा दुर लें आए
नज़र वहीं रह गया
और मन उनके साथ चला गया
सुनी सी कलाई रह गई
और भिड़ और हो गया।
-Varsha Jaiswal
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कभी कभी बोलने वाले इंसान भी ख़ामोश हो जाते हैं
क्योंकि सुनने वाले अक्सर कहीं खो जाते हैं किसी भिड़ में!
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भर जाता है दिल
बातों कि गहराई से
ऊब जाता है मन
सौ सवालों से
खो जाता है सब
यूं बेख्याली में
कि खो जाता है मन
सारे जज़्बातो से
यूं ही भर जाता है दिल।
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विश्वास रहता है
झिलमिल सी आंखों में आस रहता है
मीठे से मन का शोर रहता है
दिल के एक कोने में
आईना सा दिखता है।.
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बह गया कहीं ओर
था एक रिश्ता उससे
कुछ खट्टे मीठे से
कुछ खाली पन्ने सा
था वो मुझमें कुछ स्याह सा
कुछ तो था नाता उससे
पर ठहरा न था कुछ भी
ठहरा नहीं मुझमें वो
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समन्दर सी गहराई हो
उम्मीद कि नांव पर
मन कि चंचलता से
बीच की मझधार में
उठती तुफानों में
सागर के रस्ते लहरें हो
मंजिल किनारा हो
देखो तो बसेरा कैसा हो
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शायद ये इश्क़ अब साझा न होगा
शायद तुम सा कोई अब प्यारा न होगा
ये ख़ुमारी अब दुबारा न होगा
कोई तुम सा हो ऐसा कोई सिंतारा न होगा
शायद ये इश्क़ अब साझा न होगा
कोई तुम सा अब हमारा न होगा
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