Varısh Aŋsarı   ("Kitab_E_Ansari" (VarIѕH))
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Instagram:- kitaab_e_ansaarii
Palace :- Indore, Maheshwar
Whatsapp :- 7869268166
Joined 1 April 2019


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17 MAR 2021 AT 20:19

कितनी चप्पलें घिसी कितने डोरे बाधें नाम के,
इश्क़ किया या की हवस सोच लो दिल थाम के.?

क्योंकि तुम्हें तो सिर्फ़ चाहत हैं उसके जिस्म की,
हैं...! वगेरह वग़ैरह रिश्ते उससे सारे हराम के,

बारहा सुना था के मोहब्बत एक मरतबा होती हैं,
पर यहाँ रोज बदलती है वफ़ा बाद-ए-शाम के,

इश्क़ में बहकने से अच्छा तो युही बहक जाइये,
ज़िना से रखा हैं दो घुट मार लीजिए जाम के,

उसकी इजाज़त के बिना उसके हाथ तक न छूना,
बड़े फायदे होते हैं "वारिश" इश्क़ में ऐहतराम के,

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10 MAR 2021 AT 13:37


इक उम्र गुजारी हमनें फिर भी कुछ चीजें अधूरी थी,
जो पीछे मुड़ के देखा तो कुछ यादें वही पे खड़ी थी,

न जाने कौन से स्टेशन पर छोड़ आए उन यादों को,
जिसका इंजन बचपन और सवारी तमाम ख़ुशी थी,

उस वक़्त ना तो फ़िक़्र थी ना ही कोई चिन्ता बड़े ही,
मजे से कागज़ की कश्तियों पे हमारी नावें चलती थी,

वो बचपन में दादी नानी की कहानियां,हँसना,खेलना,
यारों मोबाइल के बिना भी हमारी कोई जिंदगी थी,

आज हजारों अज़ीज़ हैं मेरे "वारिश" पर कुछ गिने चुने
दोस्तों में जिंदगी सिमटी हुई बहुत खूबसूरत सी थी,

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27 NOV 2020 AT 16:23

सुकून-ए-दिल को तबाह कर याद आया दिल को कुछ गलतफहमियां हुई हैं,

ये जो दिल धड़क रहा हैं किसी और का हैं इसमें कुछ ना कुछ कमियां हुई हैं,

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26 NOV 2020 AT 15:43

कोई कितना भी पत्थर दिल क्यूँ न हो पिघलता जरूर हैं,
ठोकर लगती हैं तो आदमी गिरकर सँभलता जरूर हैं,

और जब दम में दम हैं सुरज से लड़ते रहो साहब,
धूप कितनी भी तेज़ क्यूँ ना हो सूरज ढलता जरूर हैं,

ज्यादा मेहनत मन्जिल-ए-मक़सूद तक पहुँचाती हैं
किस्मत बदलती हैं तो आदमी हवाओं से बातें करता जरूर हैं,

अपने इस ग़ुरूर को इस दुनियां में ही दफ़न कर देना,
"वारिश" मौत मुअय्यन हैं आदमी मरता जरूर हैं,

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18 NOV 2020 AT 12:53

.......

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16 NOV 2020 AT 13:38

भर आँखों मे पानी सागर हम को फिर से बना,
मैं तेरी तस्वीर बनाऊं मिट्टी की कुजागर
हम को फिर से बना,

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31 OCT 2020 AT 15:04

जो जी लिया वो जीवन है,
बाकी व्यर्थ हैं,

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31 OCT 2020 AT 15:01

कही तुम्हारा इंतजार करते-करते ये आँखे पत्थर ना बन जाए,
इन आँसुओ को रोको वारिश कही बह-बह कर ये समंदर ना बन जाए,

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31 OCT 2020 AT 9:13

बैल की तरह बढ़ना चाहूँ
तेरे जिस्म पर धीरे धीरे,
रूह से लेकर हर अफरात चूमना चाहूँ
तेरे जिस्म पर धीरे धीरे,

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16 SEP 2020 AT 11:41

कटे हुए पंखों से हवाओं में उड़ना चाहता हूँ,
करके साकार सपनें कुछ बनना चाहता हूँ,

ये तूफानों के रुख मेरा कुछ कर नहीं सकते,
ये नामुनकिन है तो मुनकिन करना चाहता हूँ,

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