भर आँखों मे पानी सागर हम को फिर से बना,
मैं तेरी तस्वीर बनाऊं मिट्टी की कुजागर
हम को फिर से बना,-
Palace :- Indore, Maheshwar
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नादारी क्या देखी दर पर दरगाहें बदल ली,
काटें थे क्या मेरे बदन पे जो बाँहें बदल ली,
तबाह कर पूछती हैं क्या अब भी मोहब्बत हैं..?
हमने भी उन्हें देखा और निगाहें बदल ली,-
शराफ़त क्या इख्तियार कर ली गिरेबान पकड़ने लगें हैं लोग,
ये कैसा ज़ुल्म हैं मुझ पर अब तो ईमान पकड़ने लगें हैं लोग,
जबतक बेईमान थे तब तक हमें पूछता नहीं था कोई जहां में,
ज़रा सी सुर्खियों में क्या आए पहचान पकड़ने लगें हैं लोग,
अभी अभी उड़ना सीखे थे हम खुले आसमानों में मगर,
बुलन्दी क्या हासिल कर ली उड़ान पकड़ने लगें हैं लोग,
जब से सच को सच, झूठ को झूठ कहने की हिम्मत की हैं,
"वारिश" भरी बज़्म में मेरी ज़बान पकड़ने लगें हैं लोग,
और मुझें जैसे अनपढ़ ने "किताब_ए अंसारी" क्या लिख दी,
हर "कोरे कागज़" से लेकर कमलदान पकड़ने लगें हैं लोग,-
कितनी चप्पलें घिसी कितने डोरे बाधें नाम के,
इश्क़ किया या की हवस सोच लो दिल थाम के.?
क्योंकि तुम्हें तो सिर्फ़ चाहत हैं उसके जिस्म की,
हैं...! वगेरह वग़ैरह रिश्ते उससे सारे हराम के,
बारहा सुना था के मोहब्बत एक मरतबा होती हैं,
पर यहाँ रोज बदलती है वफ़ा बाद-ए-शाम के,
इश्क़ में बहकने से अच्छा तो युही बहक जाइये,
ज़िना से रखा हैं दो घुट मार लीजिए जाम के,
उसकी इजाज़त के बिना उसके हाथ तक न छूना,
बड़े फायदे होते हैं "वारिश" इश्क़ में ऐहतराम के,-
इक उम्र गुजारी हमनें फिर भी कुछ चीजें अधूरी थी,
जो पीछे मुड़ के देखा तो कुछ यादें वही पे खड़ी थी,
न जाने कौन से स्टेशन पर छोड़ आए उन यादों को,
जिसका इंजन बचपन और सवारी तमाम ख़ुशी थी,
उस वक़्त ना तो फ़िक़्र थी ना ही कोई चिन्ता बड़े ही,
मजे से कागज़ की कश्तियों पे हमारी नावें चलती थी,
वो बचपन में दादी नानी की कहानियां,हँसना,खेलना,
यारों मोबाइल के बिना भी हमारी कोई जिंदगी थी,
आज हजारों अज़ीज़ हैं मेरे "वारिश" पर कुछ गिने चुने
दोस्तों में जिंदगी सिमटी हुई बहुत खूबसूरत सी थी,-
सुकून-ए-दिल को तबाह कर याद आया दिल को कुछ गलतफहमियां हुई हैं,
ये जो दिल धड़क रहा हैं किसी और का हैं इसमें कुछ ना कुछ कमियां हुई हैं,-
कोई कितना भी पत्थर दिल क्यूँ न हो पिघलता जरूर हैं,
ठोकर लगती हैं तो आदमी गिरकर सँभलता जरूर हैं,
और जब दम में दम हैं सुरज से लड़ते रहो साहब,
धूप कितनी भी तेज़ क्यूँ ना हो सूरज ढलता जरूर हैं,
ज्यादा मेहनत मन्जिल-ए-मक़सूद तक पहुँचाती हैं
किस्मत बदलती हैं तो आदमी हवाओं से बातें करता जरूर हैं,
अपने इस ग़ुरूर को इस दुनियां में ही दफ़न कर देना,
"वारिश" मौत मुअय्यन हैं आदमी मरता जरूर हैं,-
कही तुम्हारा इंतजार करते-करते ये आँखे पत्थर ना बन जाए,
इन आँसुओ को रोको वारिश कही बह-बह कर ये समंदर ना बन जाए,-