यूँ तो बाकी कुछ भी नहीं है जीने में लेकिन मुर्दा ना बन जाऊं इसलिए जी लेता हूँ थोड़ा थोड़ा याद बहुत आती है उसकी लेकिन बहक ना जाऊँ फिर से कहीं इसलिए भुलाने को उसे पी लेता हूँ थोड़ा थोड़ा
सामने एक दूजे के बैठे हों इक अपनी ऐसी मुलाक़ात हो ना तू कुछ कहे और मेरे भी लब शांत हों बस आँखों ही आँखों में सारी बात हो हाथों में मेरे तेरा हाथ हो इश्क़ की वो ऐसी अनोखी रात हो क़भी छूटे ना ऐसा हमारा साथ हो लगे कि खुदा की दी हुई सौगात हो