यूँ तो बाकी कुछ भी नहीं है जीने में
लेकिन मुर्दा ना बन जाऊं
इसलिए जी लेता हूँ थोड़ा थोड़ा
याद बहुत आती है उसकी
लेकिन बहक ना जाऊँ फिर से कहीं
इसलिए भुलाने को उसे पी लेता हूँ थोड़ा थोड़ा-
लिहाज उनकी नजरों में न थी
मिठास उनकी जुबां पे न थी
और इल्जाम बेवफाई का
अपने कंधों पर हमें उठाना पड़ा-
सामने एक दूजे के बैठे हों
इक अपनी ऐसी मुलाक़ात हो
ना तू कुछ कहे और मेरे भी लब शांत हों
बस आँखों ही आँखों में सारी बात हो
हाथों में मेरे तेरा हाथ हो
इश्क़ की वो ऐसी अनोखी रात हो
क़भी छूटे ना ऐसा हमारा साथ हो
लगे कि खुदा की दी हुई सौगात हो-
कैसे कह दूँ कि
मैं धोखेबाज नहीं
आँखें मूँदकर
अक्सर लोगों पर
भरोसा कर लेता हूँ
धोखा हर बार
मैं ख़ुद को ही तो देता हूँ-
जो मैं भी
यूँ तुम्हारी तरह
चुप्पी साध लूँ
तो बचाने को रिश्ता भी न बचेगा-
रण के मैदान में
टूटी शमशीर
जिंदगी के मैदान में
रूठी तकदीर
हार का सबब बन जाती हैं-
बहुत कुछ पास होकर भी
कहीं न कहीं हम अधूरे रह गए
बहुत अच्छे थे हम पर
कुछ ज़ाहिलों के लिए बुरे ही रह गए-
प्यार था कभी दरमियाँ
अब महज बैर रह गया
हुआ कुछ यूँ
बेवफ़ा वक़्त मुझसे
खास था कभी किसी का
अब बस गैर रह गया-