Varak Pathak   ('शून्य' वरक)
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'Write your own destiny', they said. I don't see why it cannot be a poem.
Joined 16 August 2021


'Write your own destiny', they said. I don't see why it cannot be a poem.
Joined 16 August 2021
6 NOV 2023 AT 21:38

नर्म सुब्हें, धूप क़ातिल सब की सब देखीं मगर
माह की शोख़ी जो देखी भूल बैठा नींद को।
दिल शहर न रात से उभरा कभी फिर उम्र भर,
इक दफ़ा निकला था चंदा सिर्फ मेरी ईद को।

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4 NOV 2023 AT 21:06

फ़क़त इक लव्ज़ था, शायर ने चुनकर आबरू रखली
ग़लत-फ़हमी थी ये मेरी के मुझपर शायरी होगी

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3 NOV 2023 AT 15:22

जिसकी हौसला-अफ़ज़ाई से मलबे सफ़ीने हो गये,
डूबा तो हर कश्ती सलाह तिनकों की देकर बढ़ गयी

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14 AUG 2023 AT 21:48

वही नगमे पुराने और वही इक शाम बासी
उन्हें आना न था पर हम वहीं बैठे रहे।
उन्हें आना न था पर वक्त पर आए पहर सब,
घड़ी कहती रही सच अनसुना करते रहे हम,
ख़्यालों में कहीं यक-दम से आया खुशनुमा कुछ
कलाई से मलीं आँखें, लबों पर जश्न आया,
अजब था जश्न भी- खारे निशाँ थे आस्तीं पर।
कोई आया नहीं सारे निशाँ कहते रहे पर
ख्यालों ने कहा इक और आने दें सवेरा,
सवेरा भी हुआ पर ज़िद में हम ऐंठे रहे।
पहर बदले- वही नगमे पुराने, शाम बासी,
उन्हें आना न था पर हम वहीं बैठे रहे।

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8 MAR 2023 AT 1:26

मुखौटों पर लगाया रंग इक-दूजे के और फिर
उतारा रंग और चेहरे पे फिर चेहरा चढ़ाया ।

होली है!

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9 OCT 2022 AT 0:54

नाव खेने तक रहे सपने सभी मल्लाह के
वापस, समन्दर लाँघकर, अपने किनारे आ गया


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17 SEP 2022 AT 0:33

इक हादसे से निकलकर नए सदमे की तरफ,
मूई किस्मत में सफ़र ख़ूब है पर सैर नहीं

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15 SEP 2022 AT 21:47

किसी के नाम हो जाना,
यूँ ही बदनाम हो जाना,
शहर में क़ैस बन फ़िरना,
चिलम में शाम हो जाना|

उसे क्या वासता के क्या
बशर, क्या राम चाहता है|
मगर महबूब के दर
ओढ़कर एहराम जाता है

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13 SEP 2022 AT 19:48

सोचा चलो ख़ामोशियाँ लिक्ख़ेंगे कुछ
पर यहाँ धब्बों का बेहद शोर था
याद, तू पहुँची नहीं मौके पे फ़िर
शाम कागज़ पर कलम का ज़ोर था

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3 SEP 2022 AT 1:40

मयस्सर है किसी को मुफ़्त यूँ ही हर ख़ुशी, और हम
लुटाकर आ गए ख़ुद को, वफ़ा फिर भी नहीं पायी

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