हसीं तो गुम सी हो गई
मुस्कान भी उनकी याद से ही आती है
किताब खोल दी है क्या उन्होंने मेरी गलतियों की?
पता नहीं क्यों आजकल हिचकी ज्यादा आती है...
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आँखों में नमी के साथ गुम हो गया शामियाने में मैं यूँ ।।
ना ही वो बेवफा मिला ना ही कुछ पुराने साथी, बस अकेला रह गया मैं यूँ ।।
गम तेरी हरक़त का नहीं, दिए सिले का था ।
जो तूने मुझे मेरे वक़्त के बदले तोहफ़े में दिया यूँ ।।-
क्यूँ मैं वो नहीं जो मैं हूँ
क्यूँ इस भीड़ में गुमनाम चुप हूँ ।।
ज़रूरी तो नहीं मसला इश्क़ का ही हो
क्या पता इस बार ज़ख्म पुराने रिश्ते ने दिया हो ।।
क्या इस पर भी दुनिया सवाल उठाती है?
या बस इनको इस मुक़दमे के लिए अलग पाती हैं?
सुना है मैंने दर्द प्यार से कम होता है
पर क्या बार बार इस इलाज़ का असर होता है?-
मुताबिक़ नहीं तु मेरे, ओ जिंदगी
या तो मुझे अपनी राह पर चला ले
या मंज़िल मेरी, तू भी अपनी बना ले...
क़ाबिल हूँ मैं, अंत तक तो जाऊँगा
तू कितना भी बुरा दिखा ले, सब्र से कदम बनाऊँगा ।।।
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जब अंधेरे में साथ चलना ही नहीं था ।।
मशगूल थे जब हम अपनी दुनिया में सही
तो तुम्हें कहीं और मुड़ ना क्यूँ था ।।
पूरे नहीं पड़े क्या हम तुम्हें
जो किसी और की बाहों को तुम्हें ढूंढ ना प़डा ।।
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दस्तूर मोहब्बत का था
जुदा तो होना ही था
इश्क़ शीशे सा साफ़ जो किया था
चूर तो होना ही था
अल्फाज जो पूरे बयां कर दिये थे
उनपर सवाल तो होना ही था
जब हसे थे खुलकर उन बारिशों में साथ
तो आज विरह में तो रोना ही था.....-
Dastak tumne di ho iska hi intezaar krte hai...
Agar tum milo bhi na, toh bhi bs tumhari parchayi se baat krte....
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Khaamosh badalte waqt ki wajah se hu...
Warna badalte log toh kai baar dekhe hai...
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तन्हा ये किस्सा हुआ
तू ढूंढ रहा था गालियों मैं मुझको कहीं....
पर मैं तो तेरी यादों मैं खोया रहा...-
ना ही किसी के कहने से चला हूँ
ना ही किसी के जाने से रुका हूँ
हवा के झोके सा हूँ मैं यारों
अपनी मर्ज़ी से ही आसमाँ में उड़ा हूँ...-