VANSHAJ KUMAR  
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हिंदी का छात्र। गज़लें कहता हूँ। उन्नावी।
Joined 8 January 2021


हिंदी का छात्र। गज़लें कहता हूँ। उन्नावी।
Joined 8 January 2021
1 FEB 2022 AT 11:47

हो चुकी ख़्वाहिश हमारी और मत दिखलाइये
ओ मदारी बस करें झोला उठाकर जाइये

चाहिए हमको ठिकाना तुम हमें सुनते नहीं
ना सुनो तुम अब हमारी वोट लेने आइये

जा रहे हैं हम यहाँ से बद्दुआ देते हुए
जिस तरह हम जा रहे हैं आप भी चल जाइये

क्या करें इस पेट का जो साथ सिमटा ही रहे
ठीक है हम देख लेंगे आप बिस्कुट खाइये

बस अकेली भूख सत्ता की उसे घेरे हुए
रो रहे जो भूख से वो भूख से टकराइये— % &

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22 JUL 2021 AT 10:21

जो खबर दिखाए, रहे ख़बरदार
उसकी ख़बर लेने में तेज हैं सरकार

सच दिखाते ही छोड़ते हैं तोते सच पर
फिर हाथ पैर धोकर पीछे पड़ जाते हैं सरकार

सच बोलिये भला रोकता है कौन यहाँ
बशर्ते वही सच हो जो बोलते हैं सरकार

एक ही तो था जो बोलता था सच यहाँ
लगता है डुबा देंगे अब भास्कर भी सरकार

सोचते हैं वो कि पहना है जादुई लिबास
जानती है जनता सच, कि नंगे हैं सरकार

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13 JUN 2021 AT 22:02

हर शाम को एक शाम आये
हर साँस के बाद तेरा नाम आये

मिलने बुलाती थी तुम छुप छुप कर
जब हम आये तो सर ए आम आये

आरजू थी जो तेरी एक शाम गुफ़्तगू की
लो पूरी उम्र हम तेरे नाम कर आये

तेरी मोहब्बत में इस क़दर हुए बीमार हम
घर बार अपना सब नीलाम कर आये

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7 JUN 2021 AT 19:05

मोहब्बत की ज़ानिब से इश्क़ नज़र फरमाया जाए
आओ साथ मिलकर घर को घर बनाया जाए

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17 MAY 2021 AT 18:40

जकड़ लो कितनी ही बेड़ियोँ में तुम मुझे
देर से, धीरे ही मग़र लिखूँगा इंक़लाब ही
है क़लम में आग अब, कौन रोकेगा इसे
उगलेगी ये आग ही,दम है तो रोक लो
देर से, धीरे ही मग़र लिखूँगा इंक़लाब ही

रोक लोगे तुम मुझे डाल दोगे जेल में
सोच लोगे करके ये अब हो कामयाब तुम
मनाओं खूब जश्न इस खोखली सी जीत का
कर लो ढेरों जुल्म तुम,बस ये ध्यान में रहे
देर से, धीरे ही मग़र लिखूँगा इंक़लाब ही

बिखरी होगी राख़ कुछ,कुछ होंगी गिट्टियाँ
कुछ होंगी चिट्ठियाँ कुछ दास्तानें ज़ुल्म की
उतार दूँगा हू-ब-हू लफ्ज़ हर दीवार पर
कुछ लिखूँगा राख से कुछ गिट्टियों के ज़ोर से
देर से, धीरे ही मग़र लिखूँगा इंक़लाब ही

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9 MAY 2021 AT 9:46

मोहब्बत है माँ से इसमें बताना क्या है
वो जान है मेरी इसमें जताना क्या है

लोग बताते हैं अब हर बात स्टेटस पर
एक 'ग़ुम' ना बताये तो इसमें हरज़ाना क्या है

फ़कत मैं ही हूँ क्या जो चुप चाप करता है मोहब्बत
इश्क़ का ठौर है माँ उससे मोहब्बत में चिल्लाना क्या है

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8 MAY 2021 AT 23:40




तबाह कर रहे हो तुम जितना
ये शराब निखार रही है उतना

तमाम जिल्लतें उठाते हैं तुम्हारे लिए
पता नहीं समझ रहे हो तुम कितना

ख़याल संभाल कर रखा है तुम्हारे नाम का
पता नहीं जबान पर आ रहे हो तुम कितना

नसीब में नहीं है शायद हिस्सेदारी तेरी
पता नही के कोशिश कर रहे हो तुम कितना

रवायतें तो कहती हैं कि मोहब्बत है हमसे
पर पता नहीं असल में कर रहे हो कितना

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22 MAR 2021 AT 9:06

ना तमन्ना रही ना आरजू
ख़्वाहिश करूँ तो आख़िर किस से करूँ
बुतखाने पत्थरों से पटे हैं
तो मज़ारें चद्दरों से
मज़हबी हो गए हैं वहशी
इंसानियत हो रही है रुख़सत
उसको जिंदा रखने की थी जद्दोजहद
जिनमें थी थोड़ी सी
जिन्होंने रखी थी संभाल कर
सारे हो गए काफिर
रख दिया चोगा उतार कर

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21 MAR 2021 AT 22:06

तमन्ना थी किसी रोज़े पे उसके इफ्तार खाऊँ
बुलाया भी था उसने मग़र कैसे जाऊँ
दोस्ती दिल मोहब्बत और ईमान से होती है
ये मैं तो समझता हूँ मग़र
इन मज़हबी ठेकेदारों को कैसे समझाऊँ

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8 MAR 2021 AT 12:15

स्त्री और स्त्रीत्व सदा
पर्याय रहा है शक्ति का
क्षमाशील उर-कोमल और
मानवता की भक्ति का

नारी तुम पतित पावनी हो
जीवन जग कल्याणी हो
तुम केवल नहीं हो मनुज मात्र
तुम देवी रूप बखानी हो

सच इससे एक है इतर यहाँ
ये बातें सब बेमानी हैं
विश्वास पटल पर देखो जग के
नारी कमजोर निशानी है

नारी अब तुमको जगना होगा
अन्याय विरुद्ध लड़ना होगा
तुम कितनी शाश्वत हो जग में
खुद तुमको स्थापित करना होगा

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