हम कैदी अपनी इच्छाओ के
रहते हैं डरे और कुंठित से
बर्फ़ों में जलते से
धूप में ठिठुरते से
हम कैदी अपनी इच्छाओं के
किसी माथे पर ना ही
ख्वाब उगाते हैं
किसी की हथेलियों को
ना ही सहला पाते हैं
हम कैदी अपनी इच्छाओं के
पंछियों की चहचहाट
और शंख ध्वनियों से
परहेज़ रखते है
रोप नहीं पाते प्रेम को
अधूरा सा जीवन जीते हैं।-
चाँद सबको मिले, ये ज़रूरी तो नहीं
वफादारी बने हमसफ़र,ये ज़रूरी तो नहीं
इश्क के पाक कलमे में,नाम मेरा ज़रूरी तो नही
दिखावे में दिखावा हो,ये ज़रूरी तो नही....-
चलो हज़ारों बातें करते हैं फिर से
जो कुछ समय से करनी छोड़ दी थीं
दिल के पर्दों से निकल बेपर्दा हो जाते हैं
वैसे पर्दानशीं होने में भी कोई हर्ज नहीं-
वो भीड़ में दौड़ता रहा उम्र भर
और गिला ये भी रहा कि रास्ता नहीं मिला...-
रेत से खेलने वाले,
बारिशों से परहेज़ रखते हैं..
बेघर हो जाते हैं वो,
जो दूसरों का घर बनाते हैं..
हम कहानियों में सफर करते हैं,
वो किस्सा बन ,खत्म हो जाते हैं....
दो वक्त रोटी जुटाने की ज़रूरत
उम्र छोटी कर देती है...-
हर खेल जीत पर खत्म हो
ये हरदम तो मुमकिन नहीं,
हार कर जीत जाने के स्वाद
की लज्ज़त तुम चखना कभी.-
ज़िन्दगी गुलज़ार कर लो
बर्बादियों को ख़ाक कर दो
फ़ूल खिलाओ आंगनों में
मुस्कुराहटों की बरसात कर दो-
इन कंक्रीटों से उठते धुएँ में ना वजूद अपना उलझाइये..
इक नया रास्ता,नयी इक सोच बनाइये..
पत्थरों का स्वभाव, तो है ही चोट देना...
चलो नदी सा बेपरवाह,आज़ाद बन उन पर से बह जाइये....-
यूँ बिलख के रो दिया
इक आँसू वो कोर से
किसी ने गोद में जब
माँ की तरह सुला दिया...-