Vandna Gaur  
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Joined 2 November 2020


Joined 2 November 2020
22 NOV 2023 AT 21:53

तन खा गयी ये तनखा, ना छोडा मालिक मन का, आँखो के आगे धुँधलका, माया का....
सुबह से किरणे गायब, खुद के थे निर्णय गायब, उठ उठ के गिरणे गायब,पाया क्या? कुछ भी ना.
वे पन्छिया तेरे पर तो बड़े हो गये, पर तुझे उडना आया क्या?
सूरज को डूबते देखे,पंछीयो को घुमते देखे,जमाने हो गये..
हवाओ को चूमके, डालियो को झूमते,
देखे जमाने हो गये..
छोडते रात को दफ़्तर,हार गये अपने लश्कर,
इन झमेलो में पडकर छुडाया क्या?
कोइ भी ना
वे बन्दिया तुने पेसे तो कमा लिये पर भर पेट खाना खाया क्या?
जकडे हैं पैर ये, किस्तों के फ़ेर ये,
इनसे छुडाया जाए ना,चिन्ता के शेर ये,
नोचे दिन दोपहर ये इनसे छुडाया जाए ना ..
रात को छत पर चढ़ कर,
इकादा जाम पकडकर
थोडा राहगीर को पढ़कर बचाया क्या?बताए क्या?
वे बन्दिया तुने कल को तो सजा लिया,
पर तेरा आज तू जी पाया क्या?
तन खा गयी तनखा ना छोडा मालिक मन का....

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3 DEC 2022 AT 10:47

गीता उन लोगों के लिये कतई नहीं है जो युद्ध करना ही नहीं चाहते

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19 OCT 2022 AT 13:38

अध्यात्म वो नहीं है जिसमें चिडिया पिंजरे के भीतर हो,
अपितु अध्यात्म तो वह है जिसमें पिंजरा स्वयं चिडिया के भीतर होता है|

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22 SEP 2022 AT 13:28

जब संघर्ष ही करुंगी
तो स्थति दुर्योधन वाली नहीं,
अर्जुन वाली चुनूंगी

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8 AUG 2022 AT 11:57

घर में हैं बस छः ही लोग
चार दिवारें ,
छत
और मैं



Continued.......

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26 APR 2022 AT 13:40

संस्कृति के जीवन मे सुभगे ऐसी भी घड़ियाँ आएंगी,
जब दिनकर की तमहर किरणें तम के भीतर छिप जाएंगी,
जब निज प्रियतम का शव रजनी तम की चादर से ढक देगी,
तब रवि शशि पोषित यह पृथ्वी कितने दिन खैर मनाएगी,
जब इस लम्बे चौडे जग का अस्तित्व ना रहने पाएगा,
तब तेरा मेरा नन्हा सा संसार ना जाने क्या होगा|
ऐसा फ़िर पतझड आएगा कोयल ना कुक्क फ़िर पाएगी,
बुलबुल ना अंधेरे में गा गा जीवन की ज्योत जगाएगी,
अगणित मृदु नव पल्लव के स्वर मर मर ना सुने फ़िर जाएंगे,
अलि अवली कलि दल पर गुन्जन करने के हेतु ना आएंगे,
जब इतनी असमय ध्वनियो का अवसान प्रिय हो जएगा,
तब शुष्क हमारे कंधो का उद्गार ना जाने क्या होगा,
दृग देख जहा तक पाते हैं तम का सागर लहराता है,
फ़िर भी उस पार खडा कोइ हम सबको खींच बुलाता है,
मैं आज चली तुम आओगे कल परसों सब संगी साथी,
दुनिया रोती धोती रहती जिसको जाना वह जाता है,
मेरा होता मन डग डगमग तट पर ही के हलकोरों से,
जब मै एकाकी पहुँचूंगी मझधार ना जाने क्या होगा.........
इस पार प्रिय......

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26 APR 2022 AT 13:09

इस पार प्रिये मधु है तुम हो उस पार ना जाने क्या होगा
यह चांद उदित हो कर नभ मे कुछ ताप मिटाता जीवन का,
लहरा लहरा ये शाखाए कुछ शोक भुला देती मन का,
कल मुरझाने वाली कलिया हस कर कहती है मगन रहो,
बुलबुल तरु की फ़ुनगी पर से संदेश सुनाती जीवन का,
तुम दे कर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देते हो,
उस पार मुझे बहलाने का उपचार ना जाने क्या होगा|
जग में रस की नदियाँ बहती रसना 2 बून्दे पाती है,
जीवन की झिलमिल सी झाँकी नयनो के आगे आती है,
करतालमयी वीणा बजती देती है बस झंकार मुझे,
मेरे सुमनो की गन्ध कही यह वायु उडा ले जाती है,
ऐसा सुनती उस पार प्रिये ये साधन भी छिन जाएंगे,
तब मानव की चेतनता का आधार ना जाने क्या होगा|
ज्वालाए परखी जाएंगी है ज्ञान नहीं इतना हमको,
इस पार नियत ने भेजा है असमर्थ बना कितना हमको,
कहने वाले पर कहते हैं हम कर्मो के आधीन सदा,
करने वालो की परवशता है ज्ञात किसे जितनी हमको,
कह तो सकते हैं कह कर ही कुछ मन हल्का कर लेते हैं,
उस पार अभागे मानव का अधिकार ना जाने क्या होगा|
..........

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20 DEC 2021 AT 18:45

मैं छुपाती हूँ अपने भीतर दर्द
छुपाता है सबूत जैसे हत्यारा
जुआरी अपना अपना दारिद्र्य
ओस अपने भीतर छुपाती है जैसे भाप
बर्फ़ जेसे तरलता


वैसे कि छुपाती है जैसे किशोरी अंतःवस्त्र अपने
कोयल कि जैसे अंडे
सदगृहस्थने छुपाती हैं जैसे अपनी पुरानी चिठ्ठियाँ
मछलियाँ आँसू
समुद्र अपनी प्यास

कुत्ता जैसे छुपाता है
भविष्य के लिये रोटी का टुकडा
उस तरह जिस तरह दियासिलाई छुपाती है अपने भीतर आग
छुआ गया मुझे
तो बिलकुल सम्भव है कि मैं जल जाऊ

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11 DEC 2021 AT 19:13

लोग मुझे पसंद नहीं करते,
मुझे हशिये पर रख देते हैं
मेरा होना गलत माना जाता है
जब जा रहे होते हैं एक और दो-
मेरा उनमे शामिल होना अशुभ माना जाता है|
मेरा होना भीत में उस दरार सा है
जिसके होने से मकां के डह जाने का अंदेशा हो जाता है|
कभी काना तो कभी पूर्ण होते काम में पनौती का credit,
मेरा होना कि जैसे खाने में होना बाल का
होना कि जैसे जिस्म से अलग हुई खाल का
मेरा होना हेय है, देय है
जब सहमा सा जाता हूँ मिलने एक और दो से-
सब कुछ शुभ करने को मुझे काट दिया जाता है
काट दिया जाता है जैसे कि दिवार में यूँ ही उग आये पीपल को,
यकीनन मै अकेला पूर्ण तो नहीं,
वो भी मेरे बिना कमतर तो होंगे ही!
त्रषित हूँ, अभिषप्त हूँ और मैं गमगीन हूँ
actualy वो क्या है ना मैं नम्बर 3 हूँ |

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19 OCT 2021 AT 12:01

मैं लेटा था सिर तक चादर ताने
वो चुपके से आयी और मुझे तकती रही, मुस्कुराई
नजरे झुकाई फ़िर उठाई
दाँतो में चुन्नी दबाई,
वो दबे पाँव
मेरे सिरहाने तक आयी,चादर हटाने को हाथ बढ़ाया
फ़िर दबाया
संकोच से मुडना चाहती थी लौट जाना चाहती थी
लेकिन जा नहीं पाई वो साथ ले जाने आयी थी मुझे
मैं चादर के भीतर से इस तमाशे का आनंद ले रहा था,
आनंद ले रहा था उसकी उहापोह का और इंतजार कर रहा था उहापोह के निकलने वाले परिणाम का,
जानना था वो किस हद तक जा सकती है मुझे ले जाने में,
उसने चुपके से मेरी माँ को देखा था गुसलखाने में
और बहन को जो शायद busy थी अपने दफ़्तरी कागजो के आधुनिक खाने में (computer)
पिताजी! उनका कमरा खाली था
मौका अच्छा था
रास्ता साफ था
उसने झटपट मिरा हाथ पकड़ा और उठा ले चली अपने साथ
पीछे मिरी माँ बहन चिल्लाई मुझे रुकने को
मैं मुस्कुराकर आने आ इशारा करके चलता बना उसके साथ
ये मौत थी जो मुझे लेने आयी थी ,जिसके साथ मैं खुशी से चला गया सबको दु:ख देके
फ़िर कभी ना लौट आने को
शानदार प्रेयशी थी इस कारगुज़ारी से गुजरी थी वो मुझे पाने को 😢

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