कभी गैरों, तो कभी अपनों का ही शिकार हुई जाती हूँ मैंआज भी खुद के ही बेगुनाही का सबूत ढूंढने जाती हूँ मैंथा! यकीनन यकीं खुद पे ख़ाता ना हुई कभी होशगी में,तो फिर! किस ख़ता का इल्जाम ख़ुद के सिर पाती हूँ मैंथी मुहब्बत, कभी जिन अपनों की मेरे... ग़ुरूर का कारण,क्यूँ उन अपनों की उठी उंगली पे टूटके बिखर जाती हूँ मैंहैं कुछ सवाल जिनकी उलझन मेरे अश्क़ों ने ना सुलझाई,आज भी उन सवालों के कटघरे में खुद को खड़े पाती हूँ मैंमेरी इन ख़ामोशीयों का सबब मेरा गलत होना हो अगर,तो चलो ठीक है फिर अभी से ही गुनहगार कहलाती हूँ मैं -
कभी गैरों, तो कभी अपनों का ही शिकार हुई जाती हूँ मैंआज भी खुद के ही बेगुनाही का सबूत ढूंढने जाती हूँ मैंथा! यकीनन यकीं खुद पे ख़ाता ना हुई कभी होशगी में,तो फिर! किस ख़ता का इल्जाम ख़ुद के सिर पाती हूँ मैंथी मुहब्बत, कभी जिन अपनों की मेरे... ग़ुरूर का कारण,क्यूँ उन अपनों की उठी उंगली पे टूटके बिखर जाती हूँ मैंहैं कुछ सवाल जिनकी उलझन मेरे अश्क़ों ने ना सुलझाई,आज भी उन सवालों के कटघरे में खुद को खड़े पाती हूँ मैंमेरी इन ख़ामोशीयों का सबब मेरा गलत होना हो अगर,तो चलो ठीक है फिर अभी से ही गुनहगार कहलाती हूँ मैं
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यूँही बेवजह.... निहारा नही करतेतेरी तस्वीरों को वक्त बेवक़्त ऐ दिल....कुछ इक मूरत!मुझे भी चाहिए... मेरे इश्क़ के मंदिर में इबादत के लिए,,।। -
यूँही बेवजह.... निहारा नही करतेतेरी तस्वीरों को वक्त बेवक़्त ऐ दिल....कुछ इक मूरत!मुझे भी चाहिए... मेरे इश्क़ के मंदिर में इबादत के लिए,,।।
किसी रूठे हुए को मना के आजकिसी रोते हुए को हँसाते हैंकिसी आँख से आँशू छीन आजउसके होंठों पे हसी सजाते हैंचलो आज दीवाली कुछ ऐसी मानते हैं..किसी को अपना बनाके आजकिसी के अपने बन जाते हैं जो भटक रहा उम्मीद लिएउसका भी दामन भर जाते हैंक्यूँ ना आज दीवाली कुछ ऐसी मानते हैं...बिजली की लड़िया तोड़ आजघर माटी के दिये से सजाते हैंकाली अधियारी अमावस रातीदिया-बाती संग पूनम बनाते हैंआओ फिर आज दीवाली कुछ ऐसी मानते हैं... -
किसी रूठे हुए को मना के आजकिसी रोते हुए को हँसाते हैंकिसी आँख से आँशू छीन आजउसके होंठों पे हसी सजाते हैंचलो आज दीवाली कुछ ऐसी मानते हैं..किसी को अपना बनाके आजकिसी के अपने बन जाते हैं जो भटक रहा उम्मीद लिएउसका भी दामन भर जाते हैंक्यूँ ना आज दीवाली कुछ ऐसी मानते हैं...बिजली की लड़िया तोड़ आजघर माटी के दिये से सजाते हैंकाली अधियारी अमावस रातीदिया-बाती संग पूनम बनाते हैंआओ फिर आज दीवाली कुछ ऐसी मानते हैं...
सुनो ,,,आते आते कुछ इक कतरा सुकूँ के संग ले आना आप अपने ,,,क्योंकि आप से दूर.......इस ज़िन्दगी की साझेदारी ने हमारी बेचैनियाँ ,,,बढ़ा रख्खी हैं....... -
सुनो ,,,आते आते कुछ इक कतरा सुकूँ के संग ले आना आप अपने ,,,क्योंकि आप से दूर.......इस ज़िन्दगी की साझेदारी ने हमारी बेचैनियाँ ,,,बढ़ा रख्खी हैं.......
बहोत जला ली हमने चिताएँ...हर साल उस सतयुग में हुए रावण कीहै ग़र हिम्मत!... तो जला के देख इक चिता तू भी आजखुद में बसे खुदके रावण की... -
बहोत जला ली हमने चिताएँ...हर साल उस सतयुग में हुए रावण कीहै ग़र हिम्मत!... तो जला के देख इक चिता तू भी आजखुद में बसे खुदके रावण की...
चलो... माँ हम लौट चलते हैं.... आज फिर बीते उन खूबसूरत पलों मेंजब तुम्हारे माथे के गोल टीके में मुझे सूरज नज़र आता था ...जब तुम्हारे आंखों काकाजल मुझे हर बुरी नज़र से बचाता था ...जब तुम्हारे पीठ का सहारा मुझे सुकूनभरी नींद सुलाता था ...और जब तुम्हारी इक मुस्कान से मेरा हर दर्द भाग जाता था ... तो चलो ना माँ.. हम लौट चलते हैं... उन्हीं खूबसूरत पलों में। -
चलो... माँ हम लौट चलते हैं.... आज फिर बीते उन खूबसूरत पलों मेंजब तुम्हारे माथे के गोल टीके में मुझे सूरज नज़र आता था ...जब तुम्हारे आंखों काकाजल मुझे हर बुरी नज़र से बचाता था ...जब तुम्हारे पीठ का सहारा मुझे सुकूनभरी नींद सुलाता था ...और जब तुम्हारी इक मुस्कान से मेरा हर दर्द भाग जाता था ... तो चलो ना माँ.. हम लौट चलते हैं... उन्हीं खूबसूरत पलों में।
क्या खूब रंजिशें निकली तूने भी हमे पास बुला कर " ऐ मंजिल " ! की देख तेरा पता पूछते पूछते हम खुद के ही शहर से लापता हो गए! -
क्या खूब रंजिशें निकली तूने भी हमे पास बुला कर " ऐ मंजिल " ! की देख तेरा पता पूछते पूछते हम खुद के ही शहर से लापता हो गए!
कैसे ? एक फटी हुई सी चादर! से किसी ने अपना घर बनाया हैकैसे ? उस घर की सुराखों से उसने खुद को तूफानों में बचाया हैकहने को तो चल पड़ा है ये अपना देश! प्रगति की राहों में अबपर देखो ना! आज फ़िर...इस फुटपथ की ज़िन्दगी ने देश की हक़ीकत को दिखाया है ।। -
कैसे ? एक फटी हुई सी चादर! से किसी ने अपना घर बनाया हैकैसे ? उस घर की सुराखों से उसने खुद को तूफानों में बचाया हैकहने को तो चल पड़ा है ये अपना देश! प्रगति की राहों में अबपर देखो ना! आज फ़िर...इस फुटपथ की ज़िन्दगी ने देश की हक़ीकत को दिखाया है ।।
शायद! हममें इन लफ़्जों कोे सजों कर रखने में अब वो बात ना रही... क्यूँकि! वो पढ़ते तो सब हैं बस हमारे ही अल्फ़ाज़ छोड़ कर...या फिर शायद दिल के एहसासों को बयाँ करने के अब हम काबिल ना रहे... क्यूँकि! वो समझते तो सब हैं बस हमारे ही जज़्बात छोड़ कर...या फिर अब कोई खनक ही ना रही उनके और मेरे बीच बसी खामोशियों में ...क्यूँकि! वो सुनते तो सब हैं बस हमारे रूह की आवाज छोड़ कर.... -
शायद! हममें इन लफ़्जों कोे सजों कर रखने में अब वो बात ना रही... क्यूँकि! वो पढ़ते तो सब हैं बस हमारे ही अल्फ़ाज़ छोड़ कर...या फिर शायद दिल के एहसासों को बयाँ करने के अब हम काबिल ना रहे... क्यूँकि! वो समझते तो सब हैं बस हमारे ही जज़्बात छोड़ कर...या फिर अब कोई खनक ही ना रही उनके और मेरे बीच बसी खामोशियों में ...क्यूँकि! वो सुनते तो सब हैं बस हमारे रूह की आवाज छोड़ कर....
🙏ऐसे ही गुरु सदैव हमपे रहे सहाए.... ( See the caption .... 👇) -
🙏ऐसे ही गुरु सदैव हमपे रहे सहाए.... ( See the caption .... 👇)