कौशल्या-दशरथ के नंदन, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, जन्मभूमि है नगर अयोध्या, पतित पावनी है श्रीधाम । सत्य सनातन धर्म विजेता, संस्कृति के अनुपम पर्याय, भारत के जन जन के नायक, अतुलित अद्भुत सर्वहिताय ।
सर्दियों की धूप में बैठ कर कुछ गुनगुनाना, सूर्य की किरणें सुनहरी कर रहीं दिन सुहाना। चुस्कियां हैं चाय की संग यादों का तराना, लग रहा है जैसे हमें मिल गया कोई खजाना । -@ वन्दना नामदेव
ज़िंदगी हाथ से रेत जैसे फिसल जाती है, ये उम्र बेशक़ देखते-देखते निकल जाती है। हाथ में हाथ रख न बैठो किस्मत के सहारे, कर्म और मेहनत से, लकीरें बदल जाती हैं। वन्दना नामदेव