Vandana Malav   (©vandana)
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शिक्षिका
अवतरण दिवस _12जुलाई
कोटा राजस्थान
आपका अन्दाज ही आपकी पहचान है.....
Joined 9 January 2020


शिक्षिका
अवतरण दिवस _12जुलाई
कोटा राजस्थान
आपका अन्दाज ही आपकी पहचान है.....
Joined 9 January 2020
6 HOURS AGO

देखो मेरी आँखों में क्या नजर आता है।
तुम्हारे सिवा इनमें ना कोई नजर आता है।
जब जब भीगती है ये पलकें तुम्हारी याद में,
तब तब तुम्हारे भीगने का ख्याल आता है।

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8 HOURS AGO

भारत माँ की बेटियों का सिंदूर उजाड़कर
अब तक जो इतराया है!
उसी माँ के बेटियों ने
ऑपरेशन सिंदूर से
उसे क्या खूब तमाचा लगाया है!
जय हिंद 🇮🇳

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6 MAY AT 20:04

बेबस निगाहें ढूँढ रही है तेरी एक छवि पाने को।
कान तरस गए तेरे कदमों की आहट सुनने को।

मन चाहे आकर एक बार गले लगा लो मुझको
बैचेन है बाहें मेरी भी बस तुमको गले लगाने को।

कहीं ना कहीं तो होंगे तेरे कदमों के निशान यहाँ,
मन कर रहा है मेरा उस माटी को ही चूम आने को।

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4 MAY AT 14:31

कुछ हसरतें ऐसी थी
जिनको कभी
मुकम्मल होना ही नहीं धा
फिर भी जानें क्यों
उनको पूरा करने के लिए
हम दोनों ही
नसीब से और
अपने आप से लड़ रहे थे...

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4 MAY AT 14:25

तुम,क्या जानो तुमसे बिछड़कर कैसे जी रहे हैं हम?
दिए हैं जख्म तूने दिल को उनको कैसे सी रहे हैं हम?

आँखों से दर्द बहता नहीं किसी को ख़बर होने के डर से
ना जाने एक एक कतरा आँसुओं का कैसे पी रहे हैं हम?

ये बात बात पर आकर तसल्ली देने वाले लोग क्या जाने
अपने लोगों की कड़वी बातों के घूंट कैसे पी रहे हैं हम?

जिंदगी के हर मोड़ पर खुशियां हासिल है जिन लोगों को
वो,क्या जानेंगे? कि रोज मरकर भी कैसे जी रहे हैं हम?

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2 MAY AT 17:24

एक खुली किताब सा,
मेरा मन
तेरे आने के बाद,
बंद लिफ़ाफ़े सा हो गया
जिसके अंदर का मज़मून
सिर्फ तुम्हारे लिए था
जिसे तुमने कभी पढ़ने की
कोशिश ही नहीं की....
अगर करते तो
शायद तुम देख पाते
मेरे मन के कोरे कागज पर
किए हुए अपने प्यार के दस्तख़त.....

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27 APR AT 18:39

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27 APR AT 18:31

और कुछ न चाहूँ रब से मैं,
खुशी तुम्हारी मेरे लिए सबसे बढ़कर है।
तू ही तो है मेरी हर खुशी।
तू मेरे लिए मेरी जान से भी बढ़कर है।

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27 APR AT 18:24

देखो तुम जाया ना करो मुझे यूँ छोड़कर,मन मेरा भरता ही नहीं बातों से तेरी।
जी चाहे रख लूँ तुझे पास अपने उम्रभर के लिए,जाने ये हसरत कब होगी पूरी।

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15 APR AT 18:19

आज मन में तुमसे मिलन की अगन लग रही है।
ना जाने क्यों तुम्हारी बातों की तलब लग रही है।

करवटें बदल बदल कर गुजर रही है रात मेरी,
यह सेज भी तुम्हारे बिन आज सूनी लग रही है।

तुम बिन छत पर भी जाकर देख लिया है मैंनें
ये चंद्रमा की शीतल चाँदनी भी गर्म लग रही है।

आ जाओ अब तो किसी बहाने से पास मेरे तुम
तुम बिन अब ये रातें भी बड़ी लंबी लग रही हैं।

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