पद १
मन हो छैलन,विचार अकाल,,
कूप की भाँति, काया समान।।
कलसी को कर ढ़ोवत ना चाहत,,
विष की भाँति,छलकत कपाल।।
पद २
वृद्ध करत अरण्य तपस्या,,
गवेषण हृदय में भक्ति दूजा।।
वांछा होवत दिखे प्रभु,,
दर्शन कीजै हरे विलासा।।
पद ३
करुणा दयाल श्री कौशल विराम,,
प्रभु चलत है अद्भुत चकार।।
कहीं किसी खग की आरज़ू,,
कहीं सोवत है महल आराम।।
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