आज एक दास्तां लिखती हूं,
कलम से दिल तक का एक वास्ता लिखती हूं,
जो सपने मेरे जीने का कारण है,
आज उसे भी कुछ खास सा लिखती हूं,
माना मिट्टी की मुरत हूं ,
रंग सांवला ही है मेरा, पर फिर भी थोड़ी खुबसूरत हूं,
किस्से मुझ पर ही तो बनते हैं,
कुछ किताबों के पन्नों पर , तो कुछ अल्फाजों में उड़ा फिरते हैं,
दिल के कोने में शायद ही कुछ छुपा है,
शब्दों से तो पता न चला ,
कोने में , आंखें तो फिर भी बयां कर जाती है,
जिस्म के दर्द तो महज एक बहाना है,
उन दिनों में कोई कह दे बस ,
" मैं हूं ना, ये दिन तो बस यूं गुज़र जाना है "
जिन्दगी मेरी , उस सूरज् की जैसी है,
सुबह को किरण हूं , शाम को लालिमा सी बिखर जाती हूं,
वक्त आए तो निडर खड़ी हूं, कभी हालातों से झुक भी जाती हूं ,
आजकल तो मौन को भी राग सी लिखती हूं ,
आज मैं , कलम से अपने दिल तक का एक वास्ता लिखती हूं,
✍️ Vaishu
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