रात के मुसाफिर थे हम ! खो गये उजालो में,
जिंदगी कितनी किताबी है ! बस बीती जा रही है सवालों में।
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अकेला मैं नहीं जिसके हिस्से में दर्द आया है,
बहुत हैं यहां जिन्हें उनके करीबी ने रूलाया है।
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जरा बताओ ! आज कौन-सी नयी बात हुई ,
कुछ खोये से हो लगता है आखिरी मुलाकात हुई ।
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आज फिर दिल जा रहा था अपनी हदें लांघने,
आज फिर लगे हम उसे अपनी सरहदों में बांधने।
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दिल पर लगी तस्वीर मेरी अब उसने हटा दी है,
खुद में मशरूफ कहुं या दुनिया में तन्हा पर इश्क ने मुझे यही सजा दी है
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मैं अपनी सुबह शाम यूंही गुजार लेता हूं ,
हंसी का मुखौटा जो औढ़ा होता है महफिलों में उसे तन्हाई में उतार देता हूं ।
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तस्वीर तेरी दिल से हटाएं कैसे
तू गैर है अब दिल को समझाएं कैसे
यकीं हो नहीं रहा अब किसी बात पर
तूझे भूलने के लिए दिल को मनाएं कैसे ।
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लोग दाएं बाएं हमारे हजार रहते हैं
हम ही जानते हैं कि हम दरिया-ए-गम के पार रहते हैं
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एक आस थी तेरा साथ पाने की
एक आस थी तुझे अपना बनाने की
दिल राजी था तोड़ने को बंदिश जमाने की
और तुझे जल्दी थी रकीब का हो जाने की ।
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पता नहीं ज़माने में क्या ढूंढती फिरती हूं मैं,
पुरानी किताबों में गुलाब की खुशबू लिए फिरती हूं मैं,
वो जो आवारा कहते हैं ! उन्हें बता दीजिए जरा ,
बस जरा सुकून पाने के लिए लिखती हूं मैं।
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