vaishali Chaudhary   (वैशाली‌ चौधरी ✍️)
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कागज, क़लम और दवात ही नहीं जज्बातों से भी राबता है।
Joined 5 December 2019


कागज, क़लम और दवात ही नहीं जज्बातों से भी राबता है।
Joined 5 December 2019
8 FEB 2022 AT 15:04

रात के मुसाफिर थे हम ! खो गये उजालो में,

जिंदगी कितनी किताबी है ! बस बीती जा रही है सवालों में।

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8 FEB 2022 AT 15:00

अकेला मैं नहीं जिसके हिस्से में दर्द आया है,

बहुत हैं यहां जिन्हें उनके करीबी ने रूलाया है।

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6 FEB 2022 AT 15:42

जरा बताओ ! आज कौन-सी नयी बात हुई ,

कुछ खोये से हो लगता है आखिरी मुलाकात हुई ।

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5 FEB 2022 AT 19:09

आज फिर दिल जा रहा था अपनी हदें लांघने,

आज फिर लगे हम उसे अपनी सरहदों में बांधने।

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2 FEB 2022 AT 13:17

दिल पर लगी तस्वीर मेरी अब उसने हटा दी है,

खुद में मशरूफ कहुं या दुनिया में तन्हा पर इश्क ने मुझे यही सजा दी है

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1 FEB 2022 AT 20:40

मैं अपनी सुबह शाम यूंही गुजार लेता हूं ,


हंसी का मुखौटा जो औढ़ा होता है महफिलों में उसे तन्हाई में उतार देता हूं ।

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17 JAN 2022 AT 17:43

तस्वीर तेरी दिल से हटाएं कैसे


तू गैर है अब दिल को समझाएं कैसे


यकीं हो नहीं रहा अब किसी बात पर


तूझे भूलने के लिए दिल को मनाएं कैसे ।

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3 JAN 2022 AT 17:40

लोग दाएं बाएं हमारे हजार रहते हैं

हम ही जानते हैं कि हम दरिया-ए-गम के पार रहते हैं

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2 JAN 2022 AT 12:54

एक आस थी तेरा साथ पाने की

एक आस थी तुझे अपना बनाने की

दिल राजी था तोड़ने को बंदिश जमाने की

और तुझे जल्दी थी रकीब का हो जाने की ।

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20 DEC 2021 AT 10:28

पता नहीं ज़माने में क्या ढूंढती फिरती हूं मैं,

पुरानी किताबों में गुलाब की खुशबू लिए फिरती हूं मैं,

वो जो आवारा कहते हैं ! उन्हें बता दीजिए जरा ,

बस जरा सुकून पाने के लिए लिखती हूं मैं।

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