माना बेवफ़ाई उसका हक था,तो हक अदा किया उसने
अब उससे कहो कि मुझपर यूं हक ना जताया करे.......— % &-
जिसकी रक्षा का लिया खुद भगवन ने भार
उसको मारे क्या भला ये बैरी संसार.......
यश अपयश जीवन मरण सब है उसके हाथ
जो ईश्वर का भक्त है, ईश्वर उसके साथ....-
इन वादियों की ठंड और पश्मीना की तपिश
लगता है तुम लिपट गई हो आकर के मुझसे
गर्म चाय की प्याली संग तुम्हारी वो मीठी यादें
मानो सारे खयालों को मेरे ढंक लिया है तुमने
मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ती लोगों के बीच
तुम्हारी यादें बेशक तुमसे बेहतर हैं हर मायने में
एक दफा फिर तुम्हे रूह की तस्कीन दिखाते हैं
सर्द बढ़ गई है थोड़ी इश्क की अलाव जलाते हैं
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कोई शिकवा नहीं, कोई शिकायत नहीं
हमसब किरदारों में ढलते हैं....
मोहब्बत जो तुम्हे आई,तुमने की
जैसी हमे आई वो हम करते हैं....-
बाज़ारु तो हम सब हैं यहां
कुछ जिस्म बेचते हैं,कुछ ज़मीर
ना भाग सबके पीछे अब और
खुद लिख अपनी खुद की तक़दीर
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जाना है तो जा,या मुकम्मल आभी जा
यूं बीच में आकर सबके रास्ते ना रोक
तेरी तड़प में जल राख़ हो ही गया हूं
अब इस राख़ को तो आग में ना झोंक-
सब्र कर के तेरी कद्र उसे वक्त बताएगा
आज वो आसमां में है,उड़ लेने दे उसे
कभी तो ज़मी पर वो लौट ही आएगा...
मेरे दोस्त! ये दुनिया बड़ी ज़ालिम है
बयां मत करना अपने ग़म को यहां
वो तेरा है, एक रोज़ तुझे मिल ही जायेगा...
जब वो लौटे,गले लगाना उसे यार की तरह
किसीकी बेवफाई में चोट उसने भी खाई होगी
अब तू समंदर है,वो अब तुझे क्या जला पाएगा...
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हैरां क्यूं है अभी तो शरारत बाकी है
लफ्ज़ बेख़ौफ़ हैं पर शराफ़त बाकी है...
तेरी रूह को छुआ था हमने तफ़्सील से
तेरे जिस्म की अभी तिजारत बाकी है...-
मुझे मेरी गुस्ताख़ीयों पे सज़ा देने वालों
फैसले कभी कुछ ख़ुद के भी किया करो...
माना मेरी बद्तमीज़ीयों से रौशन है फिज़ा सारा
पर आपकी शराफतों के निशाँ कहां छिपे बैठे हैं...
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महसूस किया था खुद को कभी मुकम्मल तुझ संग
उस अलाव की तपिश आज भी मुझे छू सी जाती है
कोशिश कर रहा बेवफ़ा बन किसी से दिल लगा लूं
पर इन सर्द हवाओं की आहट भी अब मुझे जलाती है-