अपने कर्ब को दिल में छिपा लिया,
उनके नहीं आने पर हमने
खुद को समझा लिया,
एक वक़्त मेरे होने के एहसास पर देख लेते थे,
आज मैं सामने से निकल गया और
उन्होंने मुंह घुमा लिया.....-
इन आंखों में,
क्या राज़ दबाए बैठे हो,
बता दो ,
अपनी पलकों की चादर में
कुछ ख्वाब छुपाए बैठे हो,
दिखा दो ,
एक अर्से से आस लगाए बैठे हो,
मिटा दो,
इस ख़ामोशी में हक मिलाए बैठे हो,
जता दो........
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थका हूं
हारा हूं ,
अकेले जीना सीख गया हूं ,
लोग पूछते हैं
कैसे हो????
मैं मुस्कुरा कर ,
झूठ बोलना सीख गया हूं....
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जो तुम्हें बता दें हम ,
ऐसा कौन-सा हक का टुकड़ा,
तुम पर जता दें हम ,
जब मिले थे ,
उस पल से हर कहानी में हो तुम,
अब इसमें कौन-सा किस्सा,
तुमको सुना दें हम,
अब क्या है !
जो तुम्हें बता दें हम .....-
रिंद को जाम और मैखाने में खोए रहने दो..
मैं गर आपके साथ ज़िंदा हूं ,
तो हमें थोड़ा जी लेने दो...
हर बात को हर्फों से भरने की जरूरत क्या है..
कुछ खामोशी बिखरी है अगर दरमियान
तो उसे भी जिंदा रहने दो....-
जब इतनी दूर आए है,
तो मंज़िल मिल ही जाएगी,
अंज़ाम चाहे कुछ भी हो ,
ज़िन्दगी ख़ूबसूरत रंग दिखायेगी....-
अपने जख्मों पर अब तरस खाना छोड़ दिया है,
जो खुद को मेरा अपना बताते थे, उनपे
हक जताना छोड़ दिया है,
ऐसे तो बहुत लोग है इस शहर में,
पर अब हमने अनजानों से ,
दिल लगाना छोड़ दिया है......
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मुद्दत बाद
मेरे
सब जख्म पायाब है ,
क्योंकि हर
शख़्स
अब बेनकाब है ....-