खुद की कमियों पर तरस खाना छोड़ दिया है
दूसरों को सता कर फिर मानना छोड़ दिया है
तुम कहती थी कि दाढ़ी में अच्छे लगते हो
तब से हमने Trimmer को हाथ लगाना छोड़ दिया है-
दिवाली के पहले घर की सफाई करो,
और दिवाली बाद फोन के फोरवर्डे मैसेज की-
शायद मौसम को भी पता है
हमारे रिश्ते की हकीकत ,
बारिश की झूठी उम्मीद देना
सीख गया है आज कल .....
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पता चला था हमें कि
कुछ नये लोगों को अपना बताने लगी हो तुम ,
जिस तरह मुझपे था
वैसा ही हक उन पर जताने लगी हो तुम ,
मेरे स्पर्शमात्र से खुद में ही सिमट जाती थी ,
आज दूसरों के दिए घाव को ,
काले चश्मे के नीचे छुपाने लगी हो तुम......
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अपनी तलाश में हम
दुनिया से लड़ते चले गए ,
वक़्त बिताता गया ,
और लोग बिछड़ते चले गए ,
ग़म ये नहीं कि आज हम अकेले है ,
जश्न इस बात का मना कि इस
राह में हम ख़ुद निखरते चले गए ........
अपनी तलाश में हम......-
ऐसा कुछ ख़ास नहीं बताना है मुझे ,
बेवजह ना कोई हक़ जताना है मुझे ,
पराये ने अपना बन के गम दिया अब,
फिर किसी से दिल नहीं लगाना है मुझे ......-
हर वक़्त जो तुम्हारी बातें थी
फिर कुछ यादें थी
कुछ साथ बिताए दिन थे
पल जितने भी थे
एहसास सबमें भिन्न थे
इन बंद कमरों
चारदीवारी में
रहना सीख गया है दिल
कि तुमको भूल गया है दिल......
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तुम्हारा साथ चाहता हूं मैं ,
अच्छी हो या बुरी ,
अपने रिश्ते में आवाज़ चाहता हूं मैं ,
इस ख़ामोशी से हर वक़्त दम घुटता है मेरा ,
इसलिए कभी - कभी तुमसे बात चाहता हूं मैं ,
तुम तो कह कर चले गए
कि बात नहीं करनी तुम्हें ,
उस बात को समझने के लिए
हर रात जागता हूं मैं ,
कि तुम्हारा साथ ..........
तुम कहती थी कि तुम्हें खुद से शिकायत है,
शिकायत तुम्हारी ,
पर उसकी सजा
हर रोज़ काटता हूं मैं ,
कि तुम्हारा साथ...............
अब पता है कि तुम नहीं आओगे
फिर भी हर दुआ में
तुम्हें मांगता हूं मैं ,
कि तुम्हारा साथ ......-
अभी कुछ खत्म हुआ नहीं,
अभी बहुत कुछ बाकी है,
साथ छूट गया है तुम्हारा ,
पर बात बहुत कुछ बाकी है,
रहे तो थे एक वक़्त के लिए ,
पर जीने को लम्हें अभी कुछ है,
कहा तो तुमसे लगभग सब कुछ,
पर बांटने को जज़्बात कुछ बाकी है,
बेशुमार इश्क़ तुमसे कर लिया,
पर इकरार अभी कुछ बाकी है,
पा ली है कुछ मंजिलें तुम्हारे साथ,
पर जीतने को कुछ बाकी है,
किस्सा पूरा हो गया था शायद,
पर कहानी में,
अभी बहुत कुछ बाकी है........-