वक्त पर मिली ही ख्वाहिसें रख लेनी चाहिए
नहीं तो अधूरी रह जाती है 😊
~vaibhav shukla
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मैं सफ़र में यह ख्वाब संग ले चला,
रास्ते को भी अपने घर ले चला
यूँ ना तुम आओगे हमकों मालूम था
फिर भी अधरो की मुस्कान घर ले चला
देखा था जो आईना तुमने कभी,
सोच कर ख़ुश हूं की बो संग ले चला
मैं सफ़र में तुमको संग ले चला,
रास्ते को भी अपने घर ले चला!!
उसको पाना भी इतना मुमकिन नहीं,
मैं ख़ुश हूं की दिल का दिल ले चला
मैं सफ़र में यह ख्वाब संग ले चला,
रास्ते को भी अपने घर ले चला!!
~Vaibhav shukla
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कुछ नज़्म
प्यार, दर्द, मुस्कुराहट क्या क्या छुपा लोगे
इन आँखों से सब बता दोगे,
इक हम ही अकेले थोड़ी है इस शहर में ग़ालिब
ये आँखे बता रही है की वीरान तुम भी हो!!
पलकों के परदे हटा कर देखों
इन आँखों से भी मुस्कुरा कर देखों,
सुना है सच झूठ सब फरेब है चेहरे का
दिल की बात आँखों से बता कर देखों!!
यू हीं मुस्कुराया मत करो
हर बात बताया मत करो,
हम पढ़ लेंगे लब्ज़ तुम्हारे
नज़रे हमसे मिलाया मत करो!!
किसी रोज हम ग़ज़ल लिख रहे थे
इस चेहरे को कमल लिख रहे थे
लिखा जब हमने शब्द "खूबसूरत"
कलम तुम्हारे "नयन" लिख रहे थे!!
~Vaibhav shukla
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इतना भी गुमान मत कर आसमां अपनी ऊंचाई पर,
लोग तुम्हें ज़मीन से नाप लेते हैं
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तुम मेरी मुस्कुराहट रख लो
मैं तेरे आंसू रख लेता हूं
तुम मेरी आंखें रख लो
मैं तेरा अक्स रख लेता हूं
तुम रख लो फिजा की खुशबू बेशक
मैं यह गुलाब रख लेता हूं
तुम महको जहां में गुलाब सा
और मैं सारा जहां रख लेता हूं
तुम चमकते रहो इस चमन में
मैं यह चांद रख लेता हूं
धुंधला ना करे इस चांदनी को
मैं वह दाग रख लेता हूं
चांदनी ओढ़ नीला समुंदर रख लेना
मैं शांत किनारा रख लेता हूं
तुम रख लो मेरा यह दिल
मैं तुम्हारा मन रख लेता हूं
तुम रख लो मेरी यह गजल
मैं तुम्हारे लब्ज़ रख लेता हूं
बेशक,
न होकर भी साथ होता रहूंगा मैं
तेरी मुस्कुराहट पर मुस्कुराता रहूंगा मैं
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बस यही रात आखिरी होगी
तुमसे मुलाकात आखिरी होगी
दूर रहकर कितना तड़पे हैं हम
तुमसे अब बात आखरी होगी
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मैं शजर में शोखियां रख लेता हूंँ
अक्सर प्यार में दरमियां रख लेता हूंँ
मुबारक हो तुमको ये समां जनवरी का
मैं बीता हुआ दिसंबर रख लेता हूंँ!!
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तुमसे मिलने की तमन्ना बार-बार करता है
यह दिल फिर जां निसार करता है
तुमको बना लूं अपना यह ख्वाब तो नहीं
पता नहीं यह दिल बार बार धड़कता है
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कि उजाला नहीं है शहर में तुम्हारे,
साथ जो आज तुम हो हमारे!
अकेले हम ही थोड़ी है शहर में यहां,
इतना भी ना मुस्कुराया करो मेरी जान!
खफा होती हो तो और भी अच्छी लगती हो,
एक दाग तो होता ही है चांद पर!
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बैठकर उसको गले लगा लेता हूं
साहब,
अपनी ही जिंदगी है मना लेता हूं-