अपने इश्क पर मरती जा रही है वो ,
हसके दोहज़त मे उतरती जा रही है वो
कोइ सयाना शख़्स उसके पाव चूमता ,
देखो किस बीमार के पाव दबा रही है वो
वो जिसके हाथों मे तितलियां ठहरती ,
रोटी जल ना जाये तो उंगलिया जला रही हे वो
वो जिसे ये जहां खूबसूरत करना था ,
बेड़ियों मे बंधकर घर सजा रही है वो
कोई तो जीन उसकी ख्वाहिश पूरी करता ,
चिरागों - प्यालों को रगड़े जा रहीं है वो
बदन जलाकर प्यास भुजाने वाले क्या जाने?
क्यू पतझड़ मे बीज़ लगा रही है वो !-
सीने पर सिर रख दे वो तो , साँसें धीमी कर लेता हूं ;
और दो बाहें भर लेता हूँ, आखिर इश्क़ किया है मैंने |
चूमती है वो ज़ख्म मेरे तो, ज़ख्म नए - मैं कर लेता हूं ;
लबों को छल्ली करलेता हू, आखिर इश्क किया हैं मैने |
उसको सजते देख रहा है ,आईने से लड़ लेता हूं ;
खुद तारीफें कर लेता हूं, आखिर इश्क़ किया है मैंने |
उसकी आंखों से निकला तो, दरिया लब पर ठहर गया है ;
दरिया झूठा कर लेता हूं, आखिर इश्क किया हैं मैंने |
पैर उतारो तुम बिस्तर से! , मेरी बाहों पर लानत हैं ;
कहकर बाहें भर लेता हूं, आखिर इश्क किया है मैने |-
उसको देखने की साजिश मे , मैं कुछ यूं खो जाता हूँ
वो चुरा लेता है साँसें , और मैं लुटता जाता हू !
मांगे तो दू सारी खुशियां , फूल जो दू शर्माता हू
और सुनाके - दिल की ख्वाईश , उसको ग़ज़ल बताता हूं !-
मेरी रुह - मेरे हमसाज़ नहीं , हाँ वैसे तो कोई बात नहीं
ये जिस्म जला ही दूंगा मै ; रह जायेगी कोई छाप नहीं !
मैं चीखुंगा जी-भरके तो भी , आयेगी आवाज़ नही !
बस होंठ है सूखे, आंख नहीं ; हाँ वैसे तो कोई बात नही |
क्या इश्क़ जताऊ ? आज नहीं ,
खुदको दे वारू ? आज नहीं ,
कहने लगे वो वक़्त था जो ; कुछ यादें थी अब याद नहीं !
आशिक़ तो अच्छे हो तुम बस , मेरे दिल मे आबाद नहीं !
देखो मुझको , देखो खुदको ; देखो हाथों मे हाथ नहीं
उम्मीद के मारें क्या जानें ; उम्मीदों का इलाज नहीं !
साँसें है टूटी आस नहीं ; हाँ वैसे तो कोई बात नही |-
तेरे चाहने वाले तो सब आशिकी मे ;
मेरे चाहने वाले है नाराज़गी मे |
तो क्यू आए वापिस , कहो तो हुआ क्या
नहीं पैर दाबे किसी आदमी ने?
गले ना लगाया , नहीं पोंछे आंसू ?
बताओ मै डुबा नहीं था तुम्हीं में ?
तुम्हारी हथेली मे रखता , मैं दुनिया ;
सितारे भी उगने लगे थे ज़मी मे |-
मेरे महबूब सी है , ये रातों की नींद
मै हारा हू मुझको , जताती है नींद ;
कि जिसके लिए मैने दफनाए , रिश्ते
ये कातिल भी मुझको बताती है नींद |
बिछड़कर हू जिंदा , तो हू बेवफा मैं
मेरे वादे सारे गिनाती है नींद ;
अगर लौट आये , गले लग पढ़ूंगा
यही सोच करके ना आती है नींद |
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दिल लगाया दोस्ती से , दिल टूटा आशिकी पर
दिल ने चाहा था बागीचा , हाथ आया बस कली भर
अब शहर मे जानते है , लोग मुझको - मेरे ग़म से ,
जो उड़ रहा था ख्वाब मे था , नींद टूटी तो ज़मी पर ...
देख-लेती तुमको आंखें , छू जो लेती ये हथेली
जानती हो मेरे ग़म को? कब रहीं हों तुम अकेली ?
क्या ही बदला जिंदगी मे? एक शख़्स ही तो खोया?
एक शख़्स ही तो था मेरा, मेरी एक थी सहेली...-
फिर किसी सफर में मिले नहीं वो
फिर किसी सफर में सोया नहीं मैं,
कभी मेरे आंसू थे उसको रुलाते
यही सोच करके तो रोया नहीं मैं,
बिछड़ा नहीं मैं उसके शहर से
गली से उसकी पर गुज़रा नहीं मैं,
जितने भी वाकिफ पैमाने ए मोहब्बत
किसी भी पैमाने अधूरा नहीं मैं |-
मेहनताना क्या मिला , बाती को जल जाने का ?
क्या मिला तुमको सिला - उसको गले लगाने का ?
अब तो उसकी बेटियों के नाम भी तुमपर नहीं ,
क्या हुआ तुमको जुनून फिर लौटकर के आने का ?
छोडकर मुझको , कोई आदत बदलनी है नहीं !
तोड़ कर के घर , कहीं वहशत सम्भलनी है नहीं ,
शहर से आती है अर्थी , गांव कंधे ढूंढती ,
क्या मिला तुमको सिला घर छोड करके जाने का ।-
क्या कुछ लिखकर बयां करूं मैं
किसी तो रोज हाल नया करू मैं ,
तुझे रोकु भी कैसे , खस्ता आशियाने मैं
पर तुझे चाहकर फिर कैसे रिहा करू मैं |
मैं खाली दिल मे क्या ढूंढूंगा
कुछ यादें रखलू , कुछ फना करू मैं ,
जीना नहीं चाहता जिंदगी अब और दहशत मैं
पर टूटे दिल से कैसे इश्क किया करू मैं |
अब जो मुझे चाहें, ख़फ़ा हो शायरी से
रातों के ऐब छोड़ , सोया तो करु मैं ,
भूलपा रहा हूं , शर्म से इस सर नहीं उठता
बता अब कोनसा ज़ख्म हरा करू मैं |-