आज कल सर पे सवार बस ख़्याल तुम्हारा है,
यह किस्सा नया नहीं बल्कि बरसों से यही हाल हमारा है।
अभी एक दिन नहीं गुज़रा तुमसे मुलाक़ात को,
फ़िर से मिलने का इस दिल को इंतज़ार तुम्हारा है।
कुबूल करो लफ़्ज़ों को मेरे, ये लफ्ज़ नहीं इज़हार हमारा है,
पर "कितनी मोहब्बत है मुझे?" ये कैसा सवाल तुम्हारा है,
तो ज़रा ख़ामोश हो कर गौर फ़र्माओ मेरी धड़कनों पे,
वो जो दिल में गूंज रहा है ना वो नाम तुम्हारा है।
हाँ तुम्हें इसी तरह चाहना, यही अंदाज़ इज़हार हमारा है,
जिसे कहने की ज़रूरत ना हो, कुछ ऐसा इज़हार हमारा है,
और रही बात तुम्हारे सवालों की तो...
धड़कनों से गूंजता शोर ही जवाब हमारा हमारा है,
फ़िर भी अगर क़सर रह गई हो मन में,
तो आँखों में देखो...
वो जो नजरों में छपा है ना, वो अक़्स तुम्हारा है।
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